शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

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 रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

1

शब्द-मंजरी

बिखरी उर-घाटी


प्रफुल्ल-प्राण

दिव्य-सुवास-बसी

तुम मन्त्रमुग्धा-सी।

2

शब्द-निर्झर

आकण्ठ झूमा उर

श्वास-तार पे

गीत हो सुरभित

मंत्रमुग्धा मन  में

 

20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण।
    हार्दिक बधाई आदरणीय।

    सादर

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  3. बहुत सुंदर उत्कृष्ट ताँका। बधाई

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  4. अतिसुन्दर ताँका! हार्दिक बधाई आदरणीय भैया जी!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  5. वाह,बेहतरीन ताँका।हार्दिक बधाई आदरणीय भाई साहब

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  6. सुंदर शब्दों और भावों से सज्जित ताँका । हार्दिक बधाई भैया

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  7. बहुत ही खूबसूरत झाँका,हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  8. कृपया झाँका को ताँका पढें, धन्यवाद ।

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  9. बेहद सुंदर ताँका...हार्दिक बधाई।

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  10. श्याम त्रिपाठी17 जुलाई 2021 को 2:26 am बजे

    बहुत ही सुंदर शब्दों से जैसे चुने हुए मोती ! पढ़कर मन प्रसन्न हो गया |बहुत सारी बधाई -श्याम हिंदी चेतना

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  11. अनुपम सृजन। हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  12. सभी का तहे दिल से आभारी हूँ ।
    रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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  13. आकंठ झूमा उर , अच्छा प्रयोग है।

    सुंदर ताँका सृजन की बधाई।

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  14. बिखरी उर-घाटी
    तुम मन्त्रमुग्धा-सी... वाह !
    बहुत सुन्दर सृजन
    नमन एवं हार्दिक शुभकामनाएँ

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  15. बिखरी उर-घाटी
    'उर घाटी' बेजोड़ रूपक।
    दोनों अति मनभावन, अति सुंदर ताँका ! विभोर करता शब्द-संयोजन।

    उत्कृष्ट सृजन हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय भैया।

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  16. बहुत सुंदर शब्दों से सुसज्जित ताँका हैं भाई साहब हार्दिक बधाई।

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  17. शब्द मंजरी, उर घाटी
    कितनी सुंदर उपमाएं ली हैं, वाह।
    बहुत सरस।

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