रविवार, 18 जुलाई 2021

977-रंगों से भरे

 

रंगों से भरे

डॉ. शिवजी श्रीवास्तव

1.

सगुन हुआ

नीलकंठ आ हैं

काला कौआ भी

छत पे काँव करे

आज पिया आएँगे।

2.

दौड़ रहे हैं

नीले नभ के बीच

मृगछौनों- से

काले धूसर मेघ

धरा हो रही हरी।

-0-

 

27 टिप्‍पणियां:

  1. दोनों ताँका उत्कृष्ट बने हैं। नीलकंठ का दर्शन शुभ माना जाता है। बादल हिरण के बच्चों की तरह चंचल हो कर भाग रहे हैं, सुंदर बिम्ब लिया है।

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  2. सुन्दर, उत्कृष्ट भाव से परिपूर्ण ताँका।
    हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ आदरणीय।

    सादर

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  3. वाह!बहुत सुंदर रचना!नीलकंठ झांसी में खूब दिखा करते थे, और बहुत शुभ माने जाते थे....हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ भैया!!💐

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  4. बहुत सुंदर बिम्ब। उत्कृष्ट ताँका। हार्दिक बधाई

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  5. सुंदर बिम्बों से सुसज्जित रचना।

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  6. मृग छौने से मेघ बहुत सुंदर भाव । बधाई आदरणीय शिवजी

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  7. बेहतरीन, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  8. अति सुंदर भावपूर्ण ताँका।
    हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ आदरणीय।

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  9. नीलकंठ अब भी शुभ माने जाते हैं और कौए की मुंडेर पर आवाज़ करना अतिथि बुलाते हैं- अच्छा प्रयोग है। मेघ जो हिरण की तरह हैं और वर्षा से वसुधा को हरी कर रहे हैं सुंदर शब्दांकन- बधाई।

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  10. नीलकंठ, कौओं के प्रयोग से काव्य में जीवंतता आ गई है, लोकजीवन का माधुर्य भी सौंदर्य में अभिवृद्धि कर रहा है।
    "काले धूसर मेघ
    धरा हो रही हरी।"
    उपरोक्त पंक्तियों में धूसर मेघों का धरा को हरी करना भी, रंगों के विरोधाभास से काव्य को मनोहारी बनाता है।
    उत्कृष्ट सृजन हेतु डॉ शिवजी को बधाई

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    1. सराहना एवं समीक्षा हेतु हार्दिक आभार सुशीला शील जी।

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  11. बहुत भावपूर्ण मनमोहक ताँका...हार्दिक बधाई डॉ. शिवजी वास्तव जी।


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  12. वाह । भाई शिवजी श्रीवास्तव जी सुंदर ताँका की रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।

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  13. आद.भाईसाहब शिवजी श्रीवास्तव जी,बहुत ख़ूबसूरत ताँका-सृजन के लिए हार्दिक बधाई आपको।

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