मंगलवार, 20 जुलाई 2021

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 1-सुदर्शन रत्नाकर

1

पर्वत पर

बादल मँडराते

दिल हों जैसे

दीपक आशाओं के

जलते हैं रहते।।

2

श्वेत बादल

बहती ज्यों नदियाँ

आसमान में

कितनी हैं अद्भुत

प्रकृति की  निधियाँ।

3

मेघों का मेला

लगा नभ- गाँव में

धरती जगी

ओढ़ चूनर धानी

बरसा जब पानी।

4

दूर नभ में

उड़ रहे बादल

होड़ लगी है

इक दूजे से आगे

बढ़ने को आतुर।

5

काली घटाएँ

घिर आई अम्बर में

छाया अँधेरा

उजास की आस में 

दमकी है दामिनी।

6

भटक रहे

बादलों के टुकड़े

एक होने को

धरती देख रही

मिल कब बरसेंगे।

7

विभिन्न रूप

विभिन्न आकृतियाँ

कैसे लाते हो

सावन में बादल

रंग अनेक तुम।

8

उड़ी आ रही

बादलों की पालकी

बैठी दुल्हन

वर्षा शृंगार किए

धरती से मिलने।

9

बादल जैसे

लहराया आँचल

हवा के  संग

मिलने को आतुर

प्यासी वसुधंरा से।

-0-

2- डॉ. शिवजी श्रीवास्तव

1.

मेघ बरसे

भरी धरा की गोद

महकी माटी

बँटे गंध के नेग

इठलाई नदियाँ।

2.

सरसों नाची

अमराई बौराई

धरा लजाई

नेह वारुणी लिए

आया है ऋतुराज।

-0-

8 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति और मेघ पर बहुत सुन्दर सुन्दर ताँका. हार्दिक बधाई रत्नाकर जी और शिवजी जी.

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  2. प्राकृतिक छटा बिखेरते एक से बढ़कर एक सुन्दर ताँका।

    आदरणीया रत्नाकर जी एवं आदरणीय शिव जी श्रीवास्तव जी को हार्दिक बधाई।

    सादर

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  3. बहुत सुंदर ताँका...आ. सुदर्शन दीदी तथा शिवजी श्रीवास्तव जी को हार्दिक बधाई।

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-07-2021को चर्चा – 4,133 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  5. मेघों की अठखेलियों पर विविध बिम्ब उकेरते हुए आप दोनों के ताँका उत्कृष्ट हैं।
    बधाई

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  6. बहुत सुंदर ताँका...आद.सुदर्शन दीदी तथा आद.शिवजी श्रीवास्तव जी को हार्दिक बधाई!

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