शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2021

995

 1-ऋता शेखर 'मधु'

1
लगता सन्त


ये अतिथि
संत
सूनी वाटिका
हो गई सुरभित
हर्ष अपरिमित।
2
ओस की बूँदें
शतदल पर रुकीं
रुकी ही रहीं
सूरज सकुचाया
शुचिता मन भा

3
भोर सुहानी
खगवृंद चहके
पुष्प महके
जग गया संसार
हर्ष अपरम्पार।
4
कूकी कोयल
बच्चे भी दोहराएँ,
मधु मुस्कान
अधरों पर आई
कोयल दोहराई।

5

दूर क्षितिज

अवनि  व अम्बर

कभी न मिले

मिली एक भूमिका

मोह की यवनिका

6

निश्चित क्रम

भोर से साँझ तक

जग में मेला

सूर्य चले अकेला

चाँद संग सितारे

7

मन हो दीप्त

दिखा देता है राह

नन्हा- सा दीप

मन जो बुझा रहे

सूर्य काम न आए

8

साथी निष्ठुर

राह है अवरुद्ध

छाँट दो काँटे

जग से लड़ लेना

अहल्या न बनना

9

भोर-लालिमा

चहकी बुलबुल

जगा है जग

चल पड़े कदम

कार्य है हमदम

10

गुटरगूँ-गूँ

जुटी हैं सहेलियाँ

पुष्पित क्यारी

खुश रहें बेटियाँ

चहके जग सारा

11

खाई ठोकर

हटाया न पाथर

बेबुनियाद

शिक्षा से लाभ नहीं

दूजों से गिला कैसा

12

क्षमा का पाठ

पढ़ाने लगे सभी

खुद न पढ़ा

अनजानी ल्तियाँ

बन जाती है सज़ा।|

-0-

10 टिप्‍पणियां:

  1. प्रकृति और नीति पर आधारित सुंदर ताँका। भावपक्ष भी दृढ़। सुंदर सृजन के लिए ऋता शेखर जी को बधाई

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  2. प्रकृतिपरक व नीतिपरक उत्कृष्ट ताँका।
    सुन्दर सृजन की हार्दिक बधाई आदरणीया।

    सादर 🙏🏻

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  3. बहुत सुन्दर तांका, मेरी बहुत बधाई ऋता दी

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  4. ज्ञान से भरपूर रचना के लिए हार्दिक बधाई ! बहुत उत्तम विचार हैं -श्याम -हिंदी चेतना

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  5. गुटरगूँ-गूँ

    जुटी हैं सहेलियाँ

    पुष्पित क्यारी

    खुश रहें बेटियाँ

    चहके जग सारा।
    भावपूर्ण ताँका सभी उत्कृष्ट हैं-बधाई।

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  6. वाह एक से बढ़कर एक,मन मुग्ध करते सुंदर ताँका।बधाई ऋता जी।

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  7. बहुत सुन्दर तांका... बधाई ऋता जी।

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  8. हमारी रचना को यहाँ पर स्थान देने के लिए बहुत आभार आदरणीय भैया एवं हरदीप जी। प्रोत्साहन हेतु सभी आदरणीय मित्रों का दिल से आभार, धन्यवाद।

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