मंगलवार, 26 अक्टूबर 2021

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 ताँका - सुशीला शील राणा

1.

उबार लेगा


डूबे-डूबे दिलों को

सँभाल लेगा

देव साथ तुम्हारा

हमें सँवार देगा

2.

मिलती रहीं

तारीख़ पे तारीख़

अदालतों में

होता रहा हलाल

गरीब का इंसाफ़

3.

न्याय की देवी

खोल दे काली पट्टी

अब तो रोक

न्याय के मंदिरों में

ये अन्याय का खेल

4.

धन-रसूख

खोलें रात-बेरात

कोर्ट के द्वार

कैसे देखे अँधेरा

अंधी न्याय की देवी

5.

कई वर्षों से

फाँक रही हैं धूल

दीन फाइलें

शायद खुले कभी

न्याय चक्षु से पट्टी

6.

नहीं दिखता

काले पे कोई दाग़

यही जानके

हो गए दाग़दार

कितने काले कोट 

7.

आज छज्जे पे

चहकी है ज़िंदगी

मुद्दतों बाद

खिल उठा एकांत

पाकर एक संगी।

8.

आशा की डोरी

तुम टूट न जाना

सोए ख़्वाबों ने

वक़्त के पालने में

ली हैं अँगड़ाइयाँ

9.

टूटी भी नहीं

बात बनी भी नहीं

भ्रम ने पाले

जलती सड़कों पे

कुछ भीगे सपने

 

10.

शीर्ष पे बैठी

नामचीन हस्तियाँ

खिसिया गईं

देख गर्व से तनी

अदना-सी सीढ़ियाँ

11.

दबती रही

चुप्पी के बोझ तले

कायर आत्मा

व्यवहारिक बुद्धि

जीत-जीत हारी है

12.

रोए ख़ामोश

सहके लाखों दर्द

बूढ़े माँ-बाप

ओढ़े रहे बरसों

कफ़न इज़्ज़त का

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19 टिप्‍पणियां:

  1. एक से बढ़कर एक बढ़िया ताँका ....

    नहीं दिखता /काले पे कोई दाग़ / यही जानके / हो गए दाग़दार / कितने काले कोट

    यह तो बहुत ही उम्दा

    सुंदर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें

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  2. बेहतरीन,हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  3. वाह,अलग अलग भावभूमि के बेहतरीन ताँका।.....
    आशा की डोरी/तुम टूट न जाना/सोए ख़्वाबों ने/वक़्त के पालने में/ली हैं अँगड़ाइयाँ....बेहतरीन।हार्दिक बधाई सुशीला शील जी।

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  4. भिन्न भिन्न भावों में रचे सुंदर ताँका हैं सुशीला जी । हार्दिक बधाई।

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  5. मेरे सृजन को आपकी सराहना मिली, हृदय से आभार सविता जी 🙏

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  6. बहुत ही सुंदर भावों से सजे सुन्दर ताँका।
    हार्दिक आभार आदरणीया।

    सादर 🙏🏻

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  7. वाह! बहुत ही सुंदर ताँका।बधाई सुशीला जी।

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  8. बहुत बढ़िया ताँका...।हार्दिक बधाई सुशीला जी।

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