शरद् ऋतु में हरसिंगार के फूल धरती को समर्पित होते हुए सारे वातावरण को सुगंधित कर देते हैं।पार्क रंग-बिरंगे फूलों से सुरभित हो रहा है, जिन पर कहीं तितलियाँ नृत्य कर रही हैं, तो कहीं मधुमक्खियाँ पराग का रसास्वादन कर रही हैं।छोटे -से बने कृत्रिम तालाब में खिलें सफ़ेद लाल कमल के फूलों पर भँवरें मँडरा रहे हैं।चारों ओर बिखरी यह प्राकृतिक सुंदरता मन को लुभा रही है। लेकिन एक विचार मन में कौंधने लगता है- मनुष्य ने सारी धरती को सरहदों में बाँट दिया है। कई देश, कई धर्म अलग-अलग रंगों ,अलग-अलग जातियों के लोग, अपना अपना अस्तित्व लिये अपनी अपनी पहचान का तमगा छाती पर चिपकाए, सिर उठाए घूम रहे हैं और दूसरी ओर नदियाँ, हवाएँ, फूलों की ख़ुशबू, पंख फैलाते पक्षी,भँवरे ,तितलियाँ ,समंदर की लहरें, सूरज की किरणें, चाँद की चाँदनी, सितारों की चमक , वे तो नहीं बँटे। सब जगह एक जैसे, बिना भेदभाव झोली भर-भरकर देते हैं। हवाएँ एक जगह की ख़ुशबू दूसरी जगह फैलाती हैं, तो पक्षी सीमाओं के बंधन में नहीं बँधते। प्रकृति के इस उत्सव को , इस सारी सुंदरता को आँखों से पीकर आनन्दित होकर मानव प्रकृति के इस संदेश को ग्रहण क्यों नहीं करता! वह स्वार्थ, अलगाव , बिखराव, टूटन, तनाव में क्यों जीता है?
आँचल भर-भर
मानव स्वार्थी।
वाजिब सवाल उठाता हाइबन। बधाई
जवाब देंहटाएंबढ़िया हाइबन... इंसान के स्वार्थ का ही दुष्परिणाम है जो धरती को सरहदों में बांट लिया
जवाब देंहटाएंबेहतरीन हाइबन ,हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंविचारणीय प्रश्न उठाता हाइबन।बधाई आदरणीय।
जवाब देंहटाएंसच कहा आदरणीया दीदी जी! मानव स्वार्थी है! प्रकृति तो माँ है! वह अपने बच्चों में नहीं फर्क करती, बच्चे ही उसको बाँट देते हैं! ईश्वर मानव को सद्बुद्धि दे! _/\_
जवाब देंहटाएं~सादर
अनिता ललित
प्रोत्साहित करती प्रतिक्रियाओं के लिए अनिता मंडा जी, भीकम सिंह जी, सुरंगमा जी, अर्चना जी ,अनिता ललित आप सब का हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंप्रकृति के उन्मुक्त वैभव को स्वार्थी मानव ने सीमाओं में विभक्त करने का अपराध किया है।इस भाव को व्यक्त करता सुंदर हाइबन।हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार शिवजी श्रीवास्तव जी।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा हाइबन...हार्दिक बधाई आदरणीया दी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लिखा आपने, हार्दिक बधाई शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंकविता जी , कृष्णा जी हृदय तल से आभार।
जवाब देंहटाएंसुंदर हाइबन
जवाब देंहटाएंबधाई आदरणीया
अति सुंदर हाइबन दीदी ! चारों ओर प्रकृति निःस्वार्थ सौंदर्य बिखेरती है, फिर भी मनुष्य कोई सीख क्यों नहीं लेता?
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया से प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार प्रीति जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हाइबन, बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और विचारपूर्ण हाइबन। बधाई रत्नाकर जी.
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