सोमवार, 18 अप्रैल 2022

1030

 भीकम सिंह 

1

दूब रेशमी 

खेतों के सिरहाने 

बैठी नहाने 

पगडंडी की धूल

लगी गुनगुनाने 

2

बिरवे संग

गाँव- गाँव में जागी

सोई मुस्कानें

खेतों की तरुणाई 

ज्यों लगी अँगडाने ।

3

गली में  पड़े 

फब्तियों के पत्थर

तंत्र बेजान 

होके लहूलुहान 

पड़ी रही उड़ान ।

4

रात चाँदनी 

प्रेम की मुंडेर को

लगी लाँघने 

कोना - कोना उठके

जैसे लगा ताँकने 

20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर लेखन। हार्दिक बधाई शुभकामनाएं।

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  2. बहुत ही सुंदर ताँका।

    हार्दिक बधाई आदरणीय 🌷💐


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  4. बहुत उम्दा लेखन की बधाई सर को💐🙏

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  5. अति उत्कृष्ट सृजन... और भावपूर्ण भी 🙏🌹

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  6. समस्त ताँका बेहतरीन, हार्दिक बधाई।

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  7. वाह! अति सुंदर, विशेषतः दूब रेशमी...
    हार्दिक बधाई आदरणीय।

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  8. बहुत उम्दा सृजन...हार्दिक बधाई।

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  9. एक से बढ़कर एक सभी ताँका बहुत सुंदर है। हार्दिक बधाई

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  10. बहुत मनमोहक ताँका। हार्दिक बधाई।

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  11. सभी सुंदर ... विशेषतः- रात चाँदनी ...
    बहुत ही मनभावन ताँका
    हार्दिक बधाई

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  12. त्रिवेणी में स्थान देने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और उत्साहवर्धक टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार ।

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    1. सुन्दर बिम्ब उकेरते , उपमानों - उपमेय से सजे ताँका । सभी बेहतरीन । बधाई भीकम सिंह जी ।

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