भीकम सिंह
1
दूब रेशमी
खेतों के सिरहाने
बैठी नहाने
पगडंडी की धूल
लगी गुनगुनाने ।
2
बिरवे संग
गाँव- गाँव में जागी
सोई मुस्कानें
खेतों की तरुणाई
ज्यों लगी अँगडाने ।
3
गली में पड़े
फब्तियों के पत्थर
तंत्र बेजान
होके लहूलुहान
पड़ी रही उड़ान ।
4
रात चाँदनी
प्रेम की मुंडेर को
लगी लाँघने
कोना - कोना उठके
जैसे लगा ताँकने ।
बहुत सुंदर लेखन। हार्दिक बधाई शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर ताँका।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आदरणीय 🌷💐
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जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा लेखन की बधाई सर को💐🙏
जवाब देंहटाएंअति उत्कृष्ट सृजन... और भावपूर्ण भी 🙏🌹
जवाब देंहटाएंसमस्त ताँका बेहतरीन, हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह! अति सुंदर, विशेषतः दूब रेशमी...
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई आदरणीय।
बहुत उम्दा सृजन...हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ताँका-बधाई।
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक सभी ताँका बहुत सुंदर है। हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत मनमोहक ताँका। हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसभी सुंदर ... विशेषतः- रात चाँदनी ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही मनभावन ताँका
हार्दिक बधाई
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंमन भावन पोस्ट।
जवाब देंहटाएंत्रिवेणी में स्थान देने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और उत्साहवर्धक टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर बिम्ब उकेरते , उपमानों - उपमेय से सजे ताँका । सभी बेहतरीन । बधाई भीकम सिंह जी ।
हटाएंबहुत सजीले ताँका...मेरी बधाई
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