रश्मि विभा त्रिपाठी
कोई अपना
भरोसे पर बना
छोड़के घर
नए सफर पर
निकलता है
करके रुख सख्त
विदा के वक्त
मन दरकता है
पाँव के तले
जब सरकता है
एक टुकड़ा
जमीन का,
था खड़ा
उठाए सर
उम्मीद का महल
वहाँ केवल
बचता खंडहर
स्वप्न बेघर
सर पे छत नहीं
नींव से बही
आँसू की नदी खारी
मन की आशा
भँवर बीच हारी
उठा तूफान
आफत में जी, जान
आई जो आज
सम्बन्धों की सुनामी
स्नेह में क्या थी खामी?
वाह •••बहुत सुन्दर चोका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह!!!वाह्ह्ह!! अप्रतिम सृजन... उत्कृष्ट सृजन.... 💐🌹🌹बधाई रश्मि जी 🌹🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर। बधाई रश्मि जी।
जवाब देंहटाएंआई जो आज/सम्बंधो की सुनामी... सुंदर प्रतीक,प्रभावी चोका।बधाई रश्मि जी।
जवाब देंहटाएंवाह-वाह!बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चोका। बधाई रश्मि जी। सुदर्शन रत्नाकर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर चोका...बधाई रश्मि जी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आप सभी आत्मीय जन का 🙏
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय सम्पादक द्वय का
सादर
बेहतरीन चोका! बधाई रश्मि जी!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर चोका। आपको हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंबहुत मनभावन चोका रश्मि जी । आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा चोका है, रश्मि को बहुत बधाई
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