गुरुवार, 21 जुलाई 2022

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भीकम सिंह 

 

नदी  - 6

 

बाढ़ ओढ़के 

खींच लेती है नदी 

तट की बाहें 

गुजरे समय की,

याद करके 

कुछ भूली - सी राहें 

छोड़के आई 

सावन में बहाके 

तोड़ी गई वो

तमाम वर्जनाएँ 

नदी को याद आएँ ।

 

नदी -7

 

निजी मानके 

तटों ने बीचों-बीच 

बहती नदी 

गहरे कोहरे में 

कभी-कभी यूँ 

सोचकर हैरान 

बड़बड़ाती 

शायद हो हूबहू 

पहले जैसा

ऋषि का कोई रास

पैदा हो वेदव्यास ।

-0-

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही उत्कृष्ट चोका है। हार्दिक शुभकामनाएँ सर।

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  2. बहुत ही सुंदर कह देना काफी नहीं।

    आपकी लेखनी में सचमुुच जादू है।
    आपको पढ़ते समय नदी मेरे सामने थी और मैं लहरों की हलचल को सुन रही थी।
    अत्यंत अद्भुत सृजन।
    यूहीं शब्दों की जादूगरी से साहित्य को समृद्ध करते रहिए।

    हार्दिक बधाई, अनंत शुभकामनाएँ।

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  3. वाह्ह्ह... अनन्य सृजन 🌹🙏🙏बधाई सर

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  4. बहुत ही सुन्दर सृजन
    हार्दिक बधाई आदरणीय

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  5. बेहद खूबसूरत चित्रण। हार्दिक बधाई।

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  6. आदरणीय बहुत आनन्द आया पढ़कर! आपका धन्यवाद!

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. खूबसूरत और मन को प्रसन्न करने वाली टिप्पणियाँ करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार, मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद ।

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  9. बहुत सुन्दर सृजन...हार्दिक बधाई।

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  10. भीकम सिंह जी का नदी पर बहुत खूबसूरत टोका ।उत्तम सृजन के लिये बधाई लें ।

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  11. एक ही विषय पर अलग-अलग चोका रचना, वाह !

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  12. भीकम सिंह के विविध रंग के , नदी पर चोका सृजन , भावमय व सुन्दर हैं । हार्दिक बधाई ।
    विभा रश्मि

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