शनिवार, 17 सितंबर 2022

1076-नेह की संजीवनी

 

 रश्मि विभा त्रिपाठी 


1
जब- जब भी

प्राणों पर है बनी

जिलाए फिर

मीत! मुझे देकर

नेह की संजीवनी!!

2

तुम्हीं ने दिए! 

मुझे नए आयाम 

अपनी सारी 

सुख की विरासत 

लिखके मेरे नाम!!

3

उस पार से

तुम जो पुकारते

मैं मुग्धा सुनूँ

बजते सितार- से

वे बोल मल्हार- से!!

4

ये कैसी बस्ती?

मतलबपरस्ती 

कौड़ी के भाव

खरीदें- बेचें लोग

प्रीति कितनी सस्ती!

5

बुढ़ापे तक

तुम न सीख पाए

प्रेम के बोल

तुमसे बड़े अच्छे

मेरे दो छोटे बच्चे!!

-0-

11 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ••वाह वाले ताँका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  2. वाह! अति सुंदर तांका...हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  3. मन मुग्ध करती लेखनी आपकी रश्मि जी 🌹🙏

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  4. वाह!बहुत सुन्दर सृजन रश्मि जी।

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  5. सभी ताँका बहुत सुंदर है।

    बुढ़ापे तक

    तुम न सीख पाए

    प्रेम के बोल

    तुमसे बड़े अच्छे

    मेरे दो छोटे बच्चे!!

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  6. लाजवाब ताँका सृजन । पढ़कर आनंद आ गया ।हार्दिक बधाई ।

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  7. ताँका प्रकाशन के लिए आदरणीय सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार।

    आप सभी आत्मीय जन की टिप्पणी मुझे आत्मबल देती है।
    हृदय से आभार।

    सादर

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  8. सुन्दर सृजन...हार्दिक बधाई।

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