रविवार, 25 सितंबर 2022

1077-मिट गए संशय

रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'


भरम हुआ

यह  न जाने कैसे

दरक गया

है मन का दर्पन।

धुँधले नैन

थे देख नहीं पाए

कौन पराया

कहाँ अपनापन ।

मुड़के देखा-

वो पुकार थी चीन्ही

पहचाना था

वो प्यारा सम्बोधन।

धुली उदासी

पहली बारिश में

धुल जाता ज्यों

धूसरित आँगन ।

आँसू नैन में

भरे थे डब-डब

बढ़ी हथेली

पोंछा हर कम्पन।

थे वे अपने

जनम-जनम के

बाँधे हुए थे

रेशम- से बन्धन।

प्राण युगों से

हैं इनमें अटके

यूँ ही भटके

ये था पागलपन

तपथा माथा

हो गया था शीतल

पाई छुअन

मिट गए संशय,

मन की उलझन ।

13 टिप्‍पणियां:

  1. सर ! आपने भावों को इतनी खूबसूरती से चोका में पिरोया है कि लगता है ये तो हमारे अनुभव का हिस्सा है, वाह नहीं, वाह वाह सर ।

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  2. अति सुंदर... आपकी लेखनी हृदय की अनकही बातें कहती है.... सर 🙏🌹

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  3. भैया बहुत गहरे भाव बधाई

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  4. दिल की गहराइयों से निकली बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति आपको बधाई भैया। सुदर्शन रत्नाकर

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  5. बहुत ही सुंदर चोका।
    हार्दिक बधाई आदरणीय गुरुवर को।

    सादर

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  6. बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति! धन्यवाद आदरणीय!

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  7. बहुत सुंदर, बहुत सुकोमल भाव संपन्न अभिव्यक्ति भैया।

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  8. हृदय के कोमल भावों को स्पर्श करने वाला सुंदर चोका।सादर प्रणाम।

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  9. अति सुंदर चोका...हार्दिक बधाई भाईसाहब।

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  10. इस ह्रदयस्पर्शी चोका के लिए बहुत बधाई

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  11. बहुत सुन्दर भावपूर्ण , प्रवाहमय चोका ।हार्दिक बधाई हिमांशु भाई ।
    विभा रश्मि

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