मंगलवार, 25 जुलाई 2023

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 2- गाँव

भीकम सिंह 


 

गाँव  - 81

 

घास के जैसी 

खेतों की पीठ पर 

उग रही है 

मुद्रादायिनी जड़ें

हदें लाँघ के 

नागफनी- सी बढ़ें

रुकने को है

खेत की धड़कने

किस को फिक्र 

किससे क्या उम्मीद 

कौन खेतों पे मरे  

 

गाँव  - 82

 

क्या क्या बचेगा 

खेत जाने के बाद 

डरे हैं लोग ,

खेतों के वो संस्कार 

कहाँ बचेंगे  ?

खेत चुराने वाले 

कहाँ छोड़ेंगे ?

खटिया के आराम

राख का लेप 

मायूसी  के सबब

और मिट्टी के रब ।

 

गाँव  83

 

खेत बेचके 

गाँव  कहाँ जाएँगे 

थके हारे- से

चमक-धमक की

धूल झाड़के 

खड़े रहे जाएँगे 

ना मानेगा जी

गीला होगा आटा भी

चूल्हे की ओर 

बार- बार जाएँगे 

ज़ार -ज़ार रोएँगे  

 

 

गाँव  - 84

 

एक रंग था 

गाँव के आकाश का

साठ के पास

प्यार को टटोलते 

स्वर थे पास 

सरल रूप में थी 

सभी की प्यास 

सारी गड़बड़ियाँ 

कब से हुई 

मेल रहा ना वैसा 

खनका ज्यों ही पैसा  

 

गाँव  - 85

 

खड़े हुए हैं

बिटोड़े हाथ बाँधे 

पीठ पे चिह्न 

रस्सियों के बने हैं 

थुल-थुल-से

मूर्ख मुद्राओं में ज्यों 

प्रतिनिधित्व 

करने पे अड़े हैं

गाँव बड़े हैं

व्यवस्था के नाम पे

पीठ फेरे खड़े हैं  

10 टिप्‍पणियां:

  1. गांव के ऊपर ही रचे गए आपके सभी चोका बहुत उम्दा हैं, मेरी बधाई स्वीकारें

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  2. गाँव की नब्ज पहचान कर लिखे चोंका हमेशा की तरह बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई

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  3. आपका लेखन बहुत सुंदर होता है।
    ढेरों शुभकामनाएँ।

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  4. आपने गाँव की सैर करवा दी
    बहुत ही बढ़िया

    बधाई आपको

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  5. बहुत ही सुन्दर।
    हार्दिक बधाई आपको।

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  6. हमेशा की तरह मन्त्रमुग्ध कर देने वाला लेखन। धन्यवाद आदरणीय।

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  7. मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और अतिरिक्त ऊर्जा देने वाली आप सभी की टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभार ।

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  8. आपने गाँव को जिया है इसीलिए गाँव की आत्मा आपके काव्य में मुखरित होती है। उत्तम सृजन। बधाई आदरणीय

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  9. आपने गाँव को जिया है इसीलिए गाँव की आत्मा आपके काव्य में मुखरित होती है। उत्तम सृजन। बधाई आदरणीय

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  10. गाँव पर केन्द्रित आपकी सभी रचनाएँ अद्भुत होती हैं। सभी चोका बहुत भावपूर्ण। हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी।

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