सोमवार, 26 नवंबर 2012

ढूँढती साँसें


शशि पाधा

नहीं जानती
क्यों लेखनी है कुंद
क्यों भाव मंद
कहाँ  खोई कल्पना
कौन दिशा में
बहती संवेदना
शब्द हैं मौन
अधर चुपचाप
ढूँढती साँसें
हवाओं  में संगीत
रूठी -सी प्रीत
कि मन फिर गाए
सावन लौट  आए ।
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8 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर चोका शशि जी बधाई।

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  2. बहुत ही प्यारा चोका...दिल से लिखा...बधाई...।
    प्रियंका

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  3. उत्तर
    1. bahut sundar chokha shashi ji , yah haal kalam ke aure bhavo ke sach me ham bhi face karte hai kabhi kabhi . aur kalam roothkar hi baith jaati hai . badhai sudar srajan ke liye

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  4. सुंदर और भावप्रबल .....!!
    शुभकामनायें ....!!

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  5. क्यों लेखनी है कुंद
    क्यों भाव मंद
    कहाँ खोई कल्पना
    sunder bhavon se saja hai .
    badhai

    rachana

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  6. ज्योत्स्ना शर्मा27 नवंबर 2012 को 11:26 pm बजे

    मन कभी अकारण व्यथित हो जाता है ..वही व्यथा मुखरित हुई है आपकी रचना में ....बहुत सुंदरता से ....बधाई आपको !!

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  7. आप सब ने इस चोके में निहित कलम की व्यथा को समझा |
    धन्यवाद आपकी स्नेही प्रतिक्रियाओं के लिए |

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