शनिवार, 28 सितंबर 2013

डाली से पात झरे

शशि पाधा
    1
अनचीन्ही पात झड़ी
धरती के अँगना
पतझड़ क्यों आन खड़ी।
2
कैसी मनमानी है
तेज़ हवाओं ने
भृकुटी क्यों तानी है ।
 3
तरुवर चुपचाप खड़े
बदले मौसम के
तेवर से कौन लड़े।
4
बगिया हैरान हुई
सूनी डाली से
पहली पहचान हुई ।
5
यह पीड़ा कौन सहे
तरुवर ठूँठ हुए
पाखी से कौन कहे ।
6
कुछ भेद छिपाती है
धूप सहेली भी
अब रोज़ न आती है |
 7
हर डाली पीत हुई
सावन हार गया
पतझड़ की जीत हुई |
8
कोयल क्या ढूँढ़ रही
सूनी डाली पे
कोई ना गूँज रही
9
वो बात पुरानी थी
चूनर सतरंगी
चोली भी धानी थी |
10
डाली से पात झरे 
अब कब लौटेंगे
वो  दिन पुखराज जड़े |

 -0-

10 टिप्‍पणियां:

  1. तरुवर चुपचाप खड़े
    बदले मौसम के
    तेवर से कौन लड़े।
    bahut sunder shashi ji aapto sada hi man ko chhune wala likhti hain
    bahut bahut badhai
    rachana

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  2. सभी माहिया बहुत सुन्दर और भावपूर्ण, बधाई शशि जी.

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  3. हर डाली पीत हुई
    सावन हार गया
    पतझड़ की जीत हुई |

    बहुत भावप्रबल ....पतझड़ पर सभी माहिया शशि जी ... .....!!

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  4. " कुछ भेद छिपाती है / धूप सहेली भी / अब रोज़ न आती है | "
    सभी माहिया बहुत सुन्दर और भावपूर्ण | शशि जी, बहुत- बहुत बधाई !

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  5. एक से बढ़कर एक माहिया ......एक अलग कथा कहते हुए .....

    कुछ भेद छिपाती है
    धूप सहेली भी
    अब रोज़ न आती है |

    बगिया हैरान हुई
    सूनी डाली से
    पहली पहचान हुई ।.....बहुत सुन्दर !!

    सादर नमन !





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  6. खूबसूरत माहिया के लिए बहुत बधाई...|

    प्रियंका

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  7. खूबसूरत माहिया के लिए बधाई...|

    प्रियंका

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत खूबसूरत माहिया शशि जी बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  9. shashi ji bahut sundar mahiya hai aapke waah sabhi acche lage hardik badhai

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