मन सीपी- सा
भावना सक्सैना
भावना सक्सैना
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(छाया:रश्मि शर्मा, राँची, झारखण्ड) |
जग-सागर
लहरों-सा जीवन
कौन किनारे
जाने कब क्या मिले!
ढेर सीपियाँ
शंख अनगिनत
लहरों में आ
टकरा तट पर
मिले रेत में
फिर भी कितने ही
कण बेगाने
गर्भ अपने रख
रंग -बिरंगे
बुनकर क़तरे
संजोते मोती,
सीप- रत्न दे जाते
सह पीड़ा को।
मोती कितने भरे
मन के सीप
आओ सींचें हौले से
स्नेह कणों को
परख हवाओं को
बंधन -मुक्त
लहरों संग बहें
बन सहज चलें।
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वाह भावना जी उत्तम सृजन
जवाब देंहटाएंमन भावन
जवाब देंहटाएंमनमोहक चोका भावना जी !
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं के साथ -
ज्योत्स्ना प्रदीप
बहुत सुंदर चोका सृजन भावना जी। बधाई लें ।
जवाब देंहटाएंसस्नेह विभा रश्मि
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंDr Bhavna ji
जवाब देंहटाएंBahut sunder likha
सुन्दर मोती..हार्दिक बधाई भावना जी !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंमनमोहक रचना पर भावना जी बधाई हो |
जवाब देंहटाएंManohari rachna badhai
जवाब देंहटाएंएक खूबसूरत रचना के लिए बहुत बधाई...|
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