बुधवार, 26 सितंबर 2018

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चोका / डॉ.पूर्वा शर्मा

तेरी नेह वर्षा में

भीग न जाऊँ
तेरी नेह-वर्षा में
यही सोचके 
कसकर पकड़ी
वक्त-छतरी,
पर न जाने कैसे
इसको लाँघ
भीगता ही रहा ये 
मन औ’ तन,
एक अरसे बाद 
पाया खुद को
पूर्णतः ही प्लावित,
लबालब था
प्रत्येक रोम मेरा,
इन बूँदों ने 
तर कर ही दिया
सूखा जीवन मेरा ।
-0-
2-लम्हें-ही  लम्हें

देखे हैं मैंने 
तरह-तरह के
लम्हें ही लम्हें,
तेरे साथ बिताए   
नायाब लम्हें,
तेरी जुदाई वाले
भीगे-से लम्हें,          
झट से गुज़रे थे
तेरी बाहों में,
युग जैसे बीते थे
इंतज़ार में,
ज़िंदगी में बसे हैं
लम्हें ही लम्हें,
कभी इश्क से मीठे
कभी कड़वे-
करैत के विष  से,
चखा करूँ मैं
हर लम्हें का स्वाद,
बयाँ करते
सभी लम्हें, महज़  
दास्तान  तेरी -मेरी ।
-0-

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब । ताज़गी लिए हुए रची गई रचना । बधाई पूर्वा

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  2. बहुत सुन्दर चोका । बधाई पूर्वा ।

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  3. बहुत ही सुंदर चोका । हार्दिक बधाई

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  4. बहुत प्यारे प्यारे से चोका...| ढेरों बधाई पूर्वा जी...|

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  5. बहुत बढ़िया चोका... हार्दिक बधाई पूर्वा जी।

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  6. बहुत ही सुंदर सृजन, हार्दिक बधाई डॉ पूर्वा जी।

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  7. सुन्दर , मनभावन चोका रचनाएँ , बधाई डॉ. पूर्वा शर्मा जी !

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  8. मुझे प्रोत्साहित करने के लिए आप सभी रचनाकारों को दिल की गहराइयों से धन्यवाद |
    चोका रचना का मेरा प्रथम प्रयास.... इसे त्रिवेणी में स्थान देने का लिए गुरुवर काम्बोज जी का आभार

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  9. प्यारे चोका
    पहली बार में ही इतने सुंदर
    बधाई

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