बुधवार, 27 मार्च 2019

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जीवन मेरा 
डॉ.जेन्नी शबनम

मेरे हिस्से में
ये कैसा सफ़र है
रात और दिन
चलना जीवन है,
थक जो गए
कहीं ठौर न मिला
चलते रहे
बस चलते रहे,
कहीं न छाँव
कहीं मिला न ठाँव
बढते रहे
झुलसे मेरे पाँव,
चुभा जो काँटा
पीर सह न पाए
मन में रोए
सामने मुस्कुराए,
किसे पुकारें
मन है घबराए
अपना नहीं
सर पे साया नहीं,
सुख व दु:ख
आँखमिचौली खेले
रोके न रुके
तंज हमपे कसे,
अपना सगा
हमें छला हमेशा
हमारी पीड़ा
उसे लगे तमाशा,
कोई पराया
जब बना अपना
पीड़ा सुन के
संग संग वो चला,
किसी का साथ
जब सुकून देता
पाँव खींचने
जमाना है दौड़ता,
हमसफर
काश ! कोई होता
राह आसान
सफर पूरा होता,
शाप है हमें
कहीं न पहुँचना
अनवरत
चलते ही रहना।
यही जीवन मेरा।
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10 टिप्‍पणियां:

  1. अनवरत
    चलते ही रहना। बहुत सुंदर जेन्नी जी।

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  2. सुन्दर भावों से सुसज्जित रचना ।

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  3. yatharth ka chitran krta sundr choka hai ,Jenny ji badhaai

    pushpa mehra

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  4. बहुत ही सुंदर, मार्मिक। हार्दिक बधाई डॉ जेन्नी शबनम जी।

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  5. सुंदर एवं मार्मिक अभिव्यक्ति जेन्नी जी!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  6. मेरी रचना को स्नेह देने के लिए आप सभी का हृदय से आभार!

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  7. डॉ जेन्नी जी बहुत मार्मिक रचना है हार्दिक बधाई |

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  8. बहुत ही सुंदर सृजन.. ....हार्दिक बधाई जेन्नी जी !

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  9. यह पीड़ा शायद सबके जीवन की है | एक सुन्दर रचना के लिए बहुत बधाई जेन्नी जी

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