शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2022

1084

 

रश्मि विभा त्रिपाठी

1

ऊँचा तकिया

बिछी पीली चादर

रवि जो लौटा घर,

गिरि ने दिया

बाँहें फैलाकरके

ख़ूब प्यार, आदर। 

2

अनोखा खेल

कभी काँधों पे बैठे

कभी पीठ के पीछे

शिखर देखे

सूरज खोले, मूँदे

रोशनी के दरीचे। 

3


हिम ओढ़के

सबकुछ छोड़के

की शैल ने साधना

है एकमात्र

उत्तरीय काँधे पे

शुद्ध सोने से बना। 

 -0- [ फोटो; कमला निखुर्पा के सौजन्य से]

सोमवार, 24 अक्तूबर 2022

1083-गाँव

 भीकम सिंह 

गाँव  - 1

 


बीजों के बोते 

उगे अंकुर सारे 

लहरा हैं

गाँवों में खड़े दिन 

बतिया है 

सूखे-से पड़े मन

हरिया है 

खेतों में फसलों के 

फलने तक 

साँझ की मोड़ों पर

गाँव चल आ हैं 

 

गाँव  - 2

 

सूर्य ने ढाँपा

भीगा - सा खलिहान 

खेतों में लौटी

उजली-सी मुस्कान 

उँगलियों ने 

खोली और सँवारी

गेहूँ की बाली 

सिरहाने आ बैठी

शर्मीली हवा 

मेघों की देख  अति 

हाथों में आयी गति 

 

गाँव- 3

 

खेतों में पानी

भागा -भागा फिरता 

मिट्टी में तब

डफ जैसा बजता 

सुन्न सन्नाटा 

किसान ओढ़कर

खेत भरता 

फिर भी सूख जाती 

खड़ी फसलें 

अनपढ़ किसान 

बीज - खाद बदले 

 

गाँव  - 4

 

ढेर के ढेर 

तौलते पल्लेदार 

पानी में पले

धान खुशबूदार 

नमी देखके

गुणवत्ता की जाँच 

कर रही है 

नियमों का विस्तार 

मंडी के पार

आवाज़ ना पहुँचे 

ऊँची खड़ी दीवार 

 

गाँव  - 5

 

गाँव के स्वर

युगों से उपेक्षित 

किसने सुना 

कहा या अनकहा

बताने को भी 

बताना है मुश्किल 

राह गाँव की 

फिर भी है खिलती

हरी घास में 

है कुछ ऐसी  बात 

जो जोड़ती जज़्बा 

 

गाँव  - 6

 


बरगद की 

गन्ध पहने जटा

झुकी उदास 

पास कहीं है प्यास 

टूट ग हैं 

सभी मेघों के पाँव 

रस्तों के 

भटकाव पे गाँव 

दिशा पूछता 

खड़ा, आँखों को फाड़े

सँभालता ज्यों नाड़े।

 

गाँव  - 7

 

 

नंगी गलियाँ 

गाँव अकेला खड़ा 

पहनकर

फटा हुआ सुथना

भाग्य में मिली 

रातें ठिठुरन की 

और मिला ज्यों 

दिन दुपहरिया 

लुटे- पिटे से 

खलिहान मिले हैं 

और पीने को सुल्फा 

 

 गाँव  - 8

 

बढ़ने  लगी

मंडियों में रौनक 

धान-खेतों में 

सुनसान उदासी 

धूसर धूप 

खाने बैठ ग है 

रोटियाँ बासी 

झड़ने लगा धान 

कानों में पड़ी

सूदखोर की हाँसी 

आया ज्यों सत्यानाशी 

 

गाँव  - 9

 

धूप ज्यों चढ़ी

सूनी- सी पगडण्डी

बुझे मन से 

खेतों में छोड़ गई 

पीड़ा थी घनी

मेड़ों पर आ बैठी 

ज्यों अनमनी 

नंगे तन में चढ़ी

ठिठुरन-सी 

ज्वर उभर आया 

आँखों में तम छाया 

 

गाँव  - 10

 

बाँधते रहे 

खेतों में दिन भर

वे अनुबंध 

मन में फूले रहे 

ईर्ष्या के बीज ,

विश्वास के हँसिया 

चलते रहे 

पर काटे ना कटे 

उगे जो छल

मोनसेंटो से लिए 

मजबूरी में कल ।

 

गाँव  - 11

 

क्यारियों में ही

खेतों ने बाँट दिया 

सारा का सारा 

उर्वरक -औ-पानी 

खड़े देखते 

नीम और शीशम

ये बेईमानी 

पुरवा ने हाथों से 

ज्यों शाखें छुई 

धूल भरी पत्तियाँ 

जैसे सिहर गई 

बुधवार, 19 अक्तूबर 2022

1082-दुआओं का शजर!

 सेदोका- रश्मि विभा त्रिपाठी



निगल लेती
कड़ी धूप कब की
सरेराह मगर
सफर में है
सायादार उसकी-
दुआओं का शजर!
2
तपे ख़्वाबों की
आँखों में थी फ़क़त
सुलगती आतिश!
तुम आए तो!!
मुकम्मल हो गई
जिन्दगी की ख़्वाहिश।
3
तुमने सदा
मुझ पर अपना
यों ही प्यार लुटाया!
जैसे बच्चे के
सर पर होता है
एक पिता का साया!!
4
दोपहर की
खरी धूप से अब
किसलिए डरना?
तुम्हारा काम
दुआ के दरख़्त को
हरा- भरा करना!!!
5
जब भी गिरी
बढ़ाया मेरा मान
हाथ थामकरके!
आसमाँ तक
तुम्हारी शय से ही
मैं भरती उड़ान!!
6
तुमसे मिला
जो ये चमचमाता
प्यार का सच्चा मोती!
किसी शय को
पाने की अब कभी
ख़्वाहिश नहीं होती!!
7
इंद्रधनुष से
लेकर मुझे सौंपे
तुमने सारे रंग!
सचमुच ही
मैं धन्य हूँ कि मैंने
पाया तुम्हारा संग।
8
कभी जरा- सा
पल भर को मेरा
जी उदास हो गया!
छिड़कके वो
आशीष के जल को
मेरी पीड़ा धो गया!!
9
तुम्हारी याद
सचमुच ही मानो
संजीवनी- सी बनी
हर लेती है
पल में झटपट
प्राणों की पीड़ा घनी।
10
तिमिर में भी
मिला है मनमीत
तुम्हीं से उजियारा
प्रतीक्षित हूँ
ओ पूनम के चंदा
आ भी जाओ दुबारा।
11
सुनो! वाकई
तुम्हारी छुअन में
गजब की है शफ़ा!
गले लगके
तुमने कर दिया
हर दर्द को दफा!!

-0-

सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

1081

 

1-प्रकृति : हमारी धरोहर

भीकम सिंह 

  

नदियाँ सूखीं


कट ग
जंगल 

मिटे पहाड़ 

मेघ, कहीं ठहरे 

तट लूटके 

सागर की लहरें 

नेह से कहें

सम्बन्ध हैं गहरे 

विस्तृत नभ

सोच रहाये सब

क्यों हुए बदरंग 

-0-

2-मेघ

भीकम सिंह 

 

 

मेघ - 1

 


सूर्य का जैसे
 

डिम- डिम डमरू 

डमक रहा 

धरा के खेत सूखे 

देखते रूखे 

मौसम की स्थितियाँ

वर्षा ने सारी 

बदल दी तिथियाँ 

जेठ के जेठ 

हवाएँ रिश्ता छोड़ें

मेघ परिस्थितियाँ 

 

मेघ- 2

 

दिन गुजारा 

छतरियाँ खोलके 

भादों ने सारा 

सीली लकड़ी सेंके 

गीला-सा आटा 

रात ओढ़े ओसारा 

चाँद तरसे 

ज्यों एक - एक तारा 

हवा के आगे 

बिजली- सी चमके 

मेघ करे गरारा 

 

मेघ- 3

 

सिन्धु की गली 

बदलियाँ जो घिरीं 

बूँद सूँघते 

हवाऊँघते चली

गिर -पड़के 

खेतों की दिशा मिली 

आँखों में गुस्सा 

और अँधेरा भर

काँधे हिलाते 

बदली के मेघों की 

त्यों तलवारें खुलीं 

-0-

मेघ - 4

 

हवा में उड़ा

इकलौता बादल

देखता रहा 

बादलों का समूह 

आसमान में 

भला कौन रोकता 

कौन टोकता 

गुज़रा वक्त हुआ 

संयुक्त घर

आकाश के भी नीचे 

रिश्ते हुए हैं पीछे   

-0-

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

1080

 

 1-जिंदगी की किताब! 

रश्मि विभा त्रिपाठी

1

पढ़ रही हूँ

बेफ़िक्र होकर मैं

जिंदगी की किताब! 

तुमने लिखे

इसके पन्नों पर

उम्मीदें और ख़्वाब!!

2

फीके पड़ते 

चेहरे पर आई

चमक- दमक हो!

तुम्हारा प्यार

रंग लाया है, तुम-

दिल की धनक हो!!

3

पा लिए मैंने 

प्यार के फूलों के जो

चटख सुर्ख़ रंग!

उड़ने लगा

मन तितलियों- सा

खुशबुओं के संग!!

4

जाँचकर कि

मुझपर क्या बीती

तूने अकसीर दी!

दुआ का काढ़ा 

मैं घूँट- घूँट पीती

तभी चैन से जीती!!

5

रोज लगाई

अपनों ने ही आग

मेरी खुशी जलाई!

सिर्फ तुम्हीं से 

बचा- खुचा जो भी है

ये जीवन का राग!!

6

साथ हमारा

आखिरी दम तक

कोई कुछ भी करे!

एक तुम ही

जिसने टूटी हुई 

साँसों में सुर भरे!!

7

मुझे हमेशा

दी है शक्ति अपार

जग जीत लेने की! 

तुम्हारा प्यार

प्यार नहीं, ये मेरे 

प्राणों का है आधार!!

8

पिघला देता

उदासी की आँच को

तुम्हारा सच्चा नेह!

जिस तरह

तपती धरा पर

बरस जाता मेह!!

9

तुमसे बने

जो सपने सशक्त

हो गई अनुरक्त! 

बिठाकरके

पलकों पर तुम्हें

करूँ आभार व्यक्त!!

10

झनझनाए 

आज बर्षों के बाद

हृदतंत्री के तार!

नीरवता में

गाता तुम्हारा प्यार 

प्यारा राग- मल्हार।

11

तुमसे ही है

यह सुख- साम्राज्य 

कैसे चुकाऊँ मोल?

कि मेरे लिए 

अपना आराम भी 

तुमने किया त्याज्य!!

12

दुआ से चुने 

मेरी राह के काँटे

जब- तब गड़ते!

तुम्हें पाकर 

जमीन पर मेरे

पाँव नहीं पड़ते!!

13

खूँद- खूँदके

मेरे ख़्वाबों के पेड़

उसने किए ठूँठ

साथी नहीं था

सचमुच ही था वो

रेगिस्तान का ऊँट।

-0-

2- यादों के साये
रश्मि विभा त्रिपाठी

1
मेरे मन में
तुम्हारी सच्ची प्रीति
ठीक वैसे ही बसी!
ज्यों खींच लेती
अनायास किसी को
छोटे बच्चे की हँसी।
2
मेरे नीड़ को
जब उजाड़ा गया
तुझी ने खाई दया!
तेरे बल पे
फुदकती फिरती
मैं बनकर बया!!!
3
संग चलते
तेरी यादों के साये
मुझे बड़े भाते हैं!
चूमके माथा
फिक्र की लकीरों को
चुराके ले जाते हैं!!
4
सूनी आँखों के
हालात पर तुम
फफककर रोए!
तुम्हीं ने इन्हें
आबाद करने को
ख़्वाबों के पाँव धोए!!
5
मेरे पाँव जो
अँधेरे रास्तों पर
ठिठक- से जाते हैं!
प्यार का दीप
हथेली पे धरके
आप आ ही जाते हैं!!
6
बेशक दूर
एक- दूजे का हाथ
मगर थामकर!
चलते हम
तय करने साथ
ये ख़्वाबों का सफर।
7
तुम्हारी बातें
फूलों की है बहा
सुनके झूम जाती!
सच मान लो
तुम्हीं से आबाद है
ख़ुशबू का शहर!!
8
सफर में ये
सर पे धूप लिए
चल पा रही हूँ जो!
हर राह पे
रहा है संग- संग
साये की मानिंद वो!!
9
तुम्हारा हाथ
हकीम- सा हो गया
सर पर जो धरा!
अकसीर ये
पाते ही दुख- दर्द
छूमंतर हो गया।
10
जकड़ लेती 
जब उदासी मुझे
बेबात, बेवजह!

तो खोल देते
न जाने कैसे तुम
वो दिल की गिरह?
11
भरे दुख में
किसके दम पर
गा पाती हूँ मैं राग?
इसी बात पे
सारे श्रोता तुम्हारा
ढूँढ रहे सुराग!!

-0-