भीकम सिंह
सामयिक
- 1
हाथों में थामे
फावड़ा-औ-कुदाल
ये रोजीदारी
कर रही बेहाल
इसके लिए
कौन है जिम्मेदार
पसर जाता
हृदय में नित्य ही
दुःख अपार
पलट के देखता
ये छोटा रोजीदार ।
सामयिक
- 2
होंठों पर है
बनावटी मुस्कान
गालियाँ भरी
नेताओं की जबान
खुद-ब-खुद
लग जाती है आग
जले मकान
बढ़ी हुई दुकान
कुछ यादें है
थक- हारके आती
थकाके हार जाती ।
सामयिक - 3
खेतों पे कब्ज़ा
नगरों का हो गया
चलता रहा
किसानों का धरना
प्रतिकार के
शब्दों की होती रही
ज्यों आवाजाही
खंगाल रही उन्हें
अब पुलिस
कई महीनों बाद
हाथ पे धरे हाथ ।
-0-