गुरुवार, 28 सितंबर 2023

1139-सामयिक

 

भीकम सिंह 

 


सामयिक  - 1

 

हाथों में थामे 

फावड़ा-औ-कुदाल

ये रोजीदारी 

कर रही बेहाल 

इसके लिए 

कौन है जिम्मेदार 

पसर जाता 

हृदय में नित्य ही 

दुःख अपार 

पलट के देखता 

ये छोटा रोजीदार 

 

सामयिक  - 2

 

होंठों पर है

बनावटी मुस्कान 

गालियाँ भरी 

नेताओं की जबान 

खुद-ब-खुद 

लग जाती है आग 

जले मकान 

बढ़ी हुई दुकान 

कुछ यादें है 

थक- हारके आती 

थकाके हार जाती 

 

सामयिक - 3

 

खेतों पे कब्ज़ा 

नगरों का हो गया 

चलता रहा 

किसानों का धरना 

प्रतिकार के 

शब्दों की होती रही 

ज्यों आवाजाही 

खंगाल रही उन्हें 

अब पुलिस 

कई महीनों बाद 

हाथ पे धरे हाथ ।

 

 

-0-

बुधवार, 27 सितंबर 2023

1138-काँच के ख़्वाब

 -डॉ. जेन्नी शबनम 

  


काँच के ख़्वाब 

फेरे जो करवट

चकनाचूर 

हुए सब-के-सब,

काँच के ख़्वाब 

दूसरा करवट

लगे पलने

फेरे जो करवट

चकनाचूर 

फिर सब-के-सब,

डर लगता

कहीं नींद जो आई

काँच के ख़्वाब 

पनपने  लगे,

ख़्वाब देखना

हर पल टूटना

अनवरत

मानो टूटता तारा

आसमाँ रोता

मन यूँ ही है रोता,

ख़्वाब देखता

करता नहीं नागा

मन बेचारा

ज्यों सूरज उगता,

हे मन मेरा!

समझ तू ये खेला

काँच का ख़्वाब 

यही नसीब तेरा

 देख ख़्वाब 

जिसे होना  पूरा,

चकोर ताके 

चन्दा है मुस्कुराए

मुँह चिढ़ाए

पहुँच नहीं पाए

जान गँवाए

यूँ ही काँच के ख़्वाब 

मन में पले

उम्मीद है जगाए,

पूरे  होते

फेरे जो करवट 

चकनाचूर 

होते सब-के-सब

मेरे काँच के ख़्वाब। 

-0-

 

--

 

मंगलवार, 19 सितंबर 2023

1137

 गाँव

भीकम सिंह 



1

स्वेद का स्वाद 

होठों पे टिका रहे 

इस तरह 

जिंदगी ! तेरी चाल

जैसी भी रहे 

बस चलती रहे 

उसी तरह

जोतबही का बक्सा 

बिके ना कभी 

ना हो कोई ज़िरह 

खुली रहें गिरह ।

2

गाँव को अब

लकवा मार गया 

उसका वक्त 

तेजी से भाग गया 

भारी लाठियाँ 

लकड़ियों के भाले 

गिरके मरे 

बन्दूकों में बारूद 

अब आ गया, 

नारे और मशाल 

पथराव खा गया 

3

जल - औ - जीव 

ज्यों मरने लगे हैं 

गाँव दिल से 

उतरने लगे हैं 

रचा किसने 

दोहन का जंजाल 

कैसे डर से 

गुजरने लगे हैं 

धारे भी अब 

किसानों के रिश्तों से 

मुकरने लगे हैं 

4

नए रूप में 

समतल हो चुका

गाँव का खेत

फिर हँसने पर 

लाचार हुआ 

घनी फसलें- भरे

खाद से डरे 

खुद पर ही हँसा

फिर ना बचा

उर्वर बचाने को 

हँसने- हँसाने को 

-0-

रविवार, 17 सितंबर 2023

1136

 

1-सविता अग्रवाल सवि कैनेडा 

1.

मीरा की भक्ति

राधा का घनश्याम

जगत रखवाला

मुरारी ग्वाला

प्रेम- रस- गागर

आनंद का सागर ।

2 .

देवकी पुत्र

यशोदा का ललना

झूल रहा पलना

लीला रचाता

कुंजों  में विचरता

मटकियाँ फोड़ता ।

3.

मुरलीधर

वंशी धुन बजा

गोपियों को रिझाए

रक्षक बन

नोंक पे अँगुली की

गोवर्धन उठा

4 .

यशोदा लाल

कदम्ब वृक्ष बैठ

सखाओं को बुला

गेंद उछाले

यमुना- जल डाले

कालिया नाग मारे ।

5.

कृष्ण की छवि

निरखता ह्रदय

बेसुध करे मन

भक्ति में डोले

श्याम श्याम ही बोले

कर्ण अमृत घोले ।

6.

कुञ्ज बिहारी

अधर वंशीधर

मोहन गिरधारी

ब्रज का ग्वाला

बना सखा सुदामा

कंठ वैजन्ती माला ।   

-0-

2-  बेटी (जनक छन्द) /विभा रश्मि 

1

बेटी अँगना - खेलती ।

माँ से जीना सीखके

दुख - सुख हँसके झेलती ।

2

भोली - भाली लाड़ली ।

नैहर में नाज़ों पली

निकली मिश्री की डली ।

3

नव दुल्हन की पालकी ।

दिल में खिलते फूल हैं

तड़पी चिड़िया डाल की ।

4

तनया सोने की कनी

नखरों - नाज़ों से  पली 

मुक्ता , हीरे से बनी

5

लाडो खेले मगन हो ।

आकर खुशियाँ चूम लें 

छू लेगी वो गगन को ।

-0-