कृष्णा वर्मा
गुरुवार, 24 जून 2021
रविवार, 20 जून 2021
974-पितृ -दिवस
1-मानस पिता !
आज पितृ दिवस है । आज के दिन किसी रस्म-रिवाज़ के तौर पर नहीं, बस दिल से ये संदेश अपने उन मानस पिता के लिए जो कभी गुरु की तरह थोड़ा गम्भीर रहे, कभी मार्गदर्शक बन के रास्ता सुझाया, कभी पिता की ही तरह चिंता करते हुए कष्ट में सम्बल बने तो कभी एक दोस्त की तरह चिंतामुक्त करते हुए हँसाया ।
आज आपसे एक वादा...हम
नहीं सुधरेंगे ।
क्योंकि आप हैं
न...जो कुछ भी हो जाए, हमको कभी
बिगड़ने ही न देंगे ।
ढूँढती फिरूँ
जब लड़खड़ाऊँ
पिता का काँधा ।
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2- देखने की उत्कंठा
[आज
सुबह मैंने स्वप्न में पिता को देखा । वह मुझे देखने आए थे। जो मुझसे कहा, वह हाइबन के रूप में]
दैनंदिन आपाधापी में तृणमात्र समय का स्मरण ही नहीं रहा कि आने वाला कल जीवनदाता को समर्पित है।
पिता के अनंत यात्रा पर जाने के उपरांत उनकी अनुपस्थिति में यह दिन
वैसे भी मेरे लिये सूना हो गया था।
सुबह से शाम तक के सारे क्रिया-कलाप से निवृत्त हो देर रात्रि मैं
आँखों को विश्राम देने का प्रयास करने लगी। हालांकि नींद मुझसे कोसों दूर ही रहा
करती थी।
तंद्रा के झोंके में अचानक एक छवि दृश्यमान हुई।
आह! अत्यंत अद्भुत और अविस्मरणीय क्षण। पिता मेरे आसन्न हैं और मेरा
मन मन्तव्य में लीन कि उनके स्वागत-सत्कार हेतु कोई समुचित प्रबंध नहीं।
आत्मा सर्वदा सर्वज्ञाता है। मेरे भावों के प्रत्युत्तर में बोले-"तुझे आज भी मेरी सुधि है इससे श्रेष्ठ व समुचित प्रबंध और क्या होगा बेटी?
इस संसार में कौन किसे कितनी अवधि तक याद रखता है? मैं अधिक देर नहीं ठहरूँगा। क्षण भर को तुझे देखने की उत्कंठा मुझे यहाँ
खींच लाई"।
बाल-कुशल-क्षेम
अभिलाषी है।
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