डॉ सुधा गुप्ता
पीले फूलों से
लदा-फँदा वसन्त
तितली पीछे
दौड़ता,कनेर का
मधु चूसता
सीपी –कौड़ी बीनता
फूल –पाँखुरी
किताबों में सुखाता
न जाने कहाँ
चुपके से खो गया !
सुर्ख़ गुलाब
खिले खिलते गए
मौसम जो था !
डाली पर झूमते
खिलखिलाते
महक से लुभाते
लोभी भँवरा
पास था , इतराते
वक़्त की मार
रंग-रूप खोकर
मुरझाकर
धूल की भेंट चढ़े !
शीत-प्रकोप
हाड़-हाड़ कँपाता
घना कोहरा
नज़र नहीं आता
दूर-पास का
न कोई हमराही
न संग –साथ
दुर्वह बोझ ढोते
अकेले रास्ते
अब खिली सेवती
नि्र्व्याज हँसी !
रोम-रोम भीगा है !
आँसुओं का डेरा है !
!
-0-
24 फ़रवरी , 2014
जाने कब बरसेगी
तन मन प्यासा सा
कब आ के सरसेगी |
लो चुनरी भीज गई
कारी बदरी पर
यह
धरती रीझ गई |
झंकार
बजाती है
सरगम
बूंदों की
सुर
ताल सजाती है |
कोरों
में ठहरी सी
बरसी
नयनों से
मन
पीड़ा गहरी सी |
सावन को आने दो
रस की बूंदों को
जी भर बरसाने दो |
कैसी
भरमाई थी
बदरा
आन खड़े
द्वारे
ना आई थी |
सावन
मनमाना सा
बदली
का अँगना
जाना
पहचाना सा |
बिन
सावन छलक गई
बदरी अल्हड़ सी
क्यों
रस्ता भटक गई |
रुत
छैल छबीली सी
झूमी
खेतों में
यह
नार हठीली सी |
नदिया
सी बहती है
बदरी
नीर भरी
नीरव
कुछ कहती है |
धुन
मीठी सुन ली थी
बहती बूंदों ने
मोती
की ये लड़ियाँ
बाँध
के रखेंगे
सावन
की ये घड़ियाँ |
शशि
पाधा
कृष्णा
वर्मा
1
आया बसंत
छलका
मधुरस
हैं तृष्णाएँ अनंत
जर्जर-काया
बूढ़े बरगद पे
यौवन चढ़ आया ।
2
लहर जाएँ
क्षितिज
की झालरें
हवा सनसनाए,
कर्ण मधुर
बजें वाद्य पत्तों
के
शाखें गुनगुनाएँ ।
3
अम्बर
पर
छिटकी है चाँदनी
हवाओं में ताज़गी
वादी महकी
साँसें
गुनगुनाईं
ऋतु ले अँगड़ाई।
4
आम्रतरु पे
इतराए जो बौर
मन भी बौरा गया
पुष्प महके
मोगरे की गंध से
सराबोर है हवा ।
5
लुकी रजाई
सिमटा जो कोहरा
आया बसंत छोरा
रंग- धमाल
टपक रही खुशी
फूलों –लदी डालियाँ
।
6
उभर रही
शिखर अधर पे
नदिया की मुस्कान
द्वार उतरी
ललित कलिका- सी
लेखनी की कल्पना ।
7
नेह से भरी
रेशमी
छुअन से
भीगने लगा मन
महकी फिज़ा
कोंपलों की मुस्कानें
हर्षित तरुदल।
-0-
शशि पाधा
1
आया वसंत
महकती दिशाएँ
कंचन बरसाएँ
मुग्ध कलियाँ
चुनरी लहराएँ
मंगल गान गाएँ ।
2
पीली सरसों
क्यों न फूली समाए
वसंत घर आए
पुष्प गजरे
कलिका आभूषण
वसुधा मन भाए ।
3
गुंजित चहुँ ओर
चहक उठी भोर
किसने बाँधी
अम्बर धरा तक
इन्द्रधनुषी डोर !
-0-
1-सुनीता अग्रवाल
1
बुद्धिदायिनी
श्वेतवस्त्रावृत्ता माँ
हंसवाहिनी
कर देना उज्ज्वल
अंतर्मन हमारा ।
2
जग मायावी
हम बच्चे अबोध
सुरभारती
तेरे शरण आए
दे बुद्धि- विवेक माँ !
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2-रेनु चन्द्रा
1
बगिया खिली
भौंरे गुनगुनाए
मन महका
गीत मधुर गाए
बसन्त मुस्कुराए ।
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