चाय का कप
डॉ हरदीप
कौर सन्धु
निखरे से दिन ने रात को अलविदा बोलकर नए रास्तों पर
रौशनी बिखेर दी थी। चारों तरफ़ बिखरी तेज़ लौ मन तथा रूह को छू रही लगती थी। किरणों के तोहफ़े बाँटते किरमची रंग उसकी जिन्दगी को नए अर्थों से
परिभाषित कर रहे थे। उसका मन आँगन सिंदूरी सपनों की
पावन समीर में खिला हुआ था। आज वह अपनी चाहत से मोह का शगुन पाने के लिए उसके सामने
बैठा था।
चुप्पी का आलम था ; मगर दिल की ज़ुबान चुप नहीं थी। वह सोच रहा था कि आज
वह अनगिनत सवालों की बौछार करेगी जिनका उसके पास शायद कोई
जवाब भी नहीं होगा। पता नहीं वह मेरी जीवन साथी बनकर मेरे जीवन को भाग्यशाली बनाने
के लिए हाँ कहेगी भी या नहीं।
वह एक दूसरे को कालेज के दिनों से
जानते हैं। वह एक अमीरज़ादा था और सभी लड़के -लड़कियों का चहेता। सभी उसके इर्द-गिर्द मँडराते रहते। बेरोक ज़िन्दगी उसके स्वभाव में
खुलापन ले आई तथा धन की भरमार ऐशपरस्ती। कीमती कपड़े ,
बेशकीमती कार तथा आशिक मिज़ाज उसकी पहचान। वह सोच उड़ानों को तारों का
साथी बनाकर सब को प्रमुदित करने की
भरपूर कोशिश करता;मगर वह उससे कभी
प्रभावित न होती।
वह मध्यवर्गीय परिवार से थी। नैसर्गिक सौंदर्य की स्वामिनी तथा एक आत्मविश्वासी
लड़की। मेहनतकश, पढ़ाई में अव्वल तथा घरेलू कामों में निपुण।
सादे लिबास तथा ऊँचे आचरण वाली। वह किसी भी सफ़र पर चलने से
पहले अपनी कमज़ोरी तथा क्षमता को तोलने में विश्वास रखती थी। आज वह एक ऊँचे पद पर
कार्यरत थी।
ज़िन्दगी आज फिर उनको एक दूसरे के सामने ले आई
थी, दिल की बातें करने। विचारों का
प्रवाह उसको काफ़ी परेशान कर रहा था। उन दोनों के बीच कुछ भी एक समान नहीं था ,जो उनकी रूह के मिलाप का कारण बने। वह तो उसको फ़िजूल -सा दिखावा करने वाला एक अमीरज़ादा मानती थी
जिसको जीवन सच के करीब होकर जीने का हुनर कभी नहीं आया। अब बोझिल ख्याल उसकी साँसे पी रहे लग रहे थे। अचानक गर्म चाय का कप पकड़ते हुए
उससे छूट गया। उसका कोमल हाथ लगभग जल ही जाता ,अगर वह अपना
हाथ आगे कर उसको ना बचाता।
कहते हैं कि किसी के दिल में हमेशा के लिए
जगह बनाने में युगों बीत जाते हैं। मगर चाय का गिरना एक की साँसों को दूसरे की रवानी दे गया। अमीरी ठाठ के पीछे छुपे निर्मल दिल की लौ रौशन कर गया, जिसे अब तक
उसने देखा ही नहीं था। अपनी ज़िन्दगी में आने वाले गर्म हवाओं
के झोंको को थामने के लिए किसी को उसने जीवन में पहली बार ढाल बनते देखा था। उसके जीवन की ढाल तो तब तिड़क गई थी ,जब उसके बाप ने पुत्र न होने की वजह से उसे,माँ तथा बहनों को छोड़कर दूसरी शादी कर ली थी। मर्द जात से उसका तो विश्वास
ही उठ गया था।
आज
दोनों की भावना एक हो गई थी। सिंधूरी चमक वाली नवीन उम्मीदें मन में उगम आईं थीं। दिल में यकीनी ख़ुशी का अहसास
अश्रु बनकर आँखों से बहने लगा।
चाय का कप
पहली मुलाकात
स्वर्ण प्रभात।