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सोमवार, 20 जुलाई 2020

924- चिड़िया, फूल या तितली होती

डॉ .जेन्नी शबनम

अक्सर पूछा  
खुद से ही सवाल  
जिसका हल  
नहीं किसी के पास,  
मैं ऐसी क्यों हूँ ?  
मैं चिड़िया क्यों नहीं  
या कोई फूल  
या तितली ही होती,  
यदि होती तो  
रंग- बिरंगे होते  
मेरे भी रूप  
सबको मैं लुभाती  
हवा के संग  
डाली-डाली फिरती  
खूब खिलती  
उड़ती औ नाचती,  
मन में द्वेष  
खुद पे अहंकार  
कड़वी बोली  
इन सबसे दूर  
सदा रहती  
फोटो; रश्मि शर्मा
प्रकृति का सानिध्य  
मिलता मुझे  
बेख़ौफ़ मैं भी जीती  
कभी न रोती  
बेफ़िक्री से ज़िन्दगी  
खूब जीती   
हँसती ही रहती  
कभी न मुरझाती !
-0-                                                                                                                                 मेरे ब्लॉग- 

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सोमवार, 18 मई 2020

913


1-ताँका
1- रश्मि शर्मा
1
छाया; रश्मि शर्मा
समय यह
कठिन है भी तो क्या
फिर बैठूँगी
शिरीष!  एक दिन 
तुम्हारी छाँव-तले
-0-


2-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
धरा किसी की
गगन किसी का
हमने लूटे
ये क्रुद्ध हुए जब
दर्प सभी का टूटा ।
2
बालू की भीत
ठहरा तू मानव
दर्प छोड़ दे
रुष्ट है पूरी सृष्टि
ढहेगा  दो पल में।
3
घर पराया
तूने माना अपना
जीभर लूटा
लगी एक ठोकर
गर्व खर्व हो गया।
-0-
2-सेदोका
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

1
क्या वक़्त आया
हर्षित है विषाणु
पंगु हुआ मानव
चली सवारी
सगे भी दूर भागे
देता न ओई काँधा ।
2
शोषण बढ़ा
कराह उठी  सृष्टि
हो गई वक्र दृष्टि
देर न लगी
शव ढोते नगर
काँपें आठों पहर ।
3
बैठी दुनिया
बारूदी ढेर पर
समझ सिंहासन
लात जो पड़ी
अकड़  मिली धूल
खैर माँगती फिरे।
-0-

सोमवार, 2 दिसंबर 2019

893-धूप का स्पर्श


रश्मि शर्मा
1
तुम हो संग
मानस में हमेशा
अकेली कहाँ।
2
नाप सको तो
अथाह प्रेम मेरा
नाप लो तुम ।
3
सुप्त स्मृतियो !
मत खोलना द्वार
आत्मा बंदी है ।
4
सुख-संदेश
लेकर नहीं आता
कोई डाकिया
5
निकल भागे
आत्मा की सुराख़ से
सारे अपने
6
स्मृति -भूमि को
बहुत कठिन है
मुड़के देखना
7
तुम बदन
परछाईं हूँ तेरी
कैसी जुदाई?
8
वादे नाकाम
दहका आसमान
आज की शाम ।
9
खिल उठे हैं
उजड़े दयार में
फूल फिर से
10
बंद नैनों में
जला लिए हमने
यादों के दीप
11
मैं नहीं अब
किसी के भी दिल में
वो अब भी है
12
उसकी याद
आँसू के साथ-साथ
लाए मुस्कान
13
धूप का स्पर्श
बेचैनियाँ सोखता
मन जोड़ता
14
उसे पता था -
मिलने से टूटेगा
सब्र का बाँध
15
ज़ख़्म ताज़ा हैं
सुनी होगी किसी से
वफ़ा की बातें
16
सब गवाँ के
अब इंतज़ार में
बैठा है कोई
17
प्रेम ने कहा
बने रहो हमेशा
जैसे हो वैसे
18
कपड़े नए
है वही दुःख और
वही उदासी
19
फैल ग हैं
मुट्ठी भर ख़ुशियाँ
कोई आया है
20
खिड़की खुली
झाँका लिया जीवन
पढ़ी किताब
21
चितकबरी
लगती है ज़िंदगी
तुम जो नहीं


शनिवार, 3 नवंबर 2018

839-पीली चिट्ठी


रश्मि  शर्मा
 1.फ़र्क़

उसने सोचा
फ़र्क़ नहीं पड़ता
किसी के होने
या न होने से मुझे
जाने दो उसे
दुनिया में बहुत
लोग होते हैं
पर समझ रहा
था बेहतर
किसी के होने
नहीं होने का फ़र्क़
होता है कोई
सारी दुनिया में भी
एक ही जहाँ
धरा एवं आकाश
होते हैं एकाकार
मिल जाते हैं
वहाँ चाँद-सितारे
जिसके होने
से जीवन में सारे
इंद्रधनुषी
रंग घुले होते हैं
वो अपने होते हैं। 
-०-
2.बंजर

अब मन की
ज़मीन है बंजर
काट ली दुनिया ने
सारी फ़सलें
ऊसर हुआ सब
नहीं खिलेगा
नया कोई भी फूल
न उपजेंगे
गेहूँ या कि सरसों
खा लेगी बीज
ख़ुद अब धरती
कोंपल कोई
नहीं फूटेगी  यहाँ
मेरे मन की
उजड़ी बगिया में
नहीं कोई बसंत।  
-०-
3.पीली चिट्ठी

एक चिट्ठी है
सालों-साल पुरानी
मुड़ी-तुड़ी -सी
बेरंग, पीली पड़ी
बिल्कुल नीचे
संदूक की तली में
खोला तो पाया -
उसके वे  शब्द थे
भाव में डूबे
मोतियों जैसे गुथे
थी  मनुहार
तो कहीं इसरार
छलका प्यार
वक़्त थम -सा गया
और फिर से
लौट गया बरसों
पहले बीते
पुराने से पल में
जब तुमसे
नेह भरा नाता था
तब अक्सर
हमारे बीच कुछ
रह जाता था
कहा-अनकहा सा
ये अनकहा
चिट्ठियों में  पिरोके
और उनको
शब्दों की माला बना
भेज देते थे
और इन्हें पाकर
अकेले हम
अक्सर हम रोते
सँभालकर
रखा है अब तक
इन ख़तों में
तुम्हारे सूखे आँसू
कह न पाए
वह तुम्हारा प्यार
अब जो आज
बरसों बाद खोला
टीन का बक्सा
यादें ताज़ा हो गईं
क्या हो गया जो
रहा नहीं हमसे
कोई भी नाता
मेरे पास रखी है
मुड़ी-तुड़ी सी
बिसराई उदास
वो पीली पड़ी चिट्ठी।  
-0-

मंगलवार, 24 जनवरी 2017

749



मन सीपी- सा
भावना सक्सैना
(छाया:रश्मि शर्मा, राँची, झारखण्ड)

जग-सागर
लहरों-सा जीवन
कौन किनारे
जाने कब क्या मिले!
ढेर सीपियाँ
शंख अनगिनत
लहरों में आ
टकरा तट पर
मिले रेत में
फिर भी कितने ही
कण बेगाने
गर्भ अपने रख
रंग -बिरंगे
बुनकर क़तरे
संजोते मोती,
सीप- रत्न दे जाते
सह पीड़ा को।
मोती कितने भरे
मन के सीप
आओ सींचें हौले से
स्नेह कणों को
परख हवाओं को
बंधन -मुक्त
लहरों संग बहें
बन सहज चलें।
-0-