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मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

944=सुन बटोही

 रचना श्रीवास्तव 

1


सुन बटोही
 

मंजिल से पहले  

विराम नहीं 

रास्तें कट जाएँगे 

जो तू नादान  नहीं। 

2

बादल डाले 

सूर्य की खिड़की पे 

काला परदा 

पर रोक सके न 

उसकी  किरणों को। 

3

सूरज कहे-

सुन घरती प्यारी 

हो न उदास 

 तोड़ मेघ- बंधन 

आऊँगा  तेरे पास। 

4

सोईं फ़ूल पे 

ओढ़ मोती चूनर 

ओस की बूंदें 

बही शीतल हवा 

विदा हो ग  बूँदें। 

5

सज धजके 

तारों की सभा में  जो

आ बैठा चाँद 

बिजली मोहे चाँद 

थी किरण उदास 

6

चाँद से हुई 

 कब  चाँदनी जुदा 

न हो उदास 

धरो हौसला तुम 

लौटेगा  तेरे पास 

7

तूफ़ान आया 

टूटे वृक्ष विशाल 

झुके नहीं वो 

बची दूब झुकी जो 

कहा विनम्र बनो 

-0-

Rachana Srivastava
Freelance writer and Poet
Los Angeles, CA
http://rachana-merikavitayen.blogspot.com/

बुधवार, 9 दिसंबर 2015

663



1-रचना श्रीवास्तव

          वो शाम आज भी याद है जब एक सुन्दर- सी भद्र महिला ने हाथ हिलायाकौन होगा से सोच कर मै उसके पास चली आई. उम्र में बड़ी थी हाथ जोड़कर नमस्ते किया. खुश रहो कहा उन्होंने .क्या तुम भी यहीं रहती हो पूछा उन्होंने ..हाँ, मेरा उत्तर था तो वो तुरंत बोलीं  -मै भी यहीं रहती हूँ यूनिट 8 में। तुम किस यूनिट में रहती हो फिर पूछा उन्होंने मैने बताया यूनिट 25 मेँ .ये थी मेरी उनसे पहली मुलाकात और फिर हम लगभग रोज ही मिलने लगे मैने उनको आंटी बुलाना शुरू कर दिया .दोस्तों मैने उनका नाम नहीं बताया न पर मुझे भी उनका नाम जानने की जरूरत कभी नहीं पड़ी ;क्योंकि वो तो हमारी आन्टी बन चुकी थी . आन्टी  के पास यादों और अनुभवों का खजाना था जिनमे से कुछ न कुछ उपहार मुझे भी मिलने लगे .रिश्तों के पौधों को मौसम की मार से कैसे बचाना है. त्याग ,समर्पण और तपस्या से कैसे किसी को नया जीवन दिया जा सकता है , खाने को कैसे रुचिकर और स्वादिष्ट बना देता है मैने उनसे सीखा. वो हमारा मिलना बढ़ता गया उनकी पोती और मेरी बिटिया गहरे दोस्त बन गए अब हमारा रिश्ता पारिवारिक हो गया था .उनका मेरे घर आना हमारा उनके घर जाना अब अधिक होने लगा था आन्टी को देख कर लगता 80 साल की उम्र मेँ भी ये चुस्ती कभी कभी तो खुद पर ही शर्म आने लगती थी ,आन्टी को जानते उनसे सीखते कब 2 साल बीत गए पता ही न चला .आन्टी एक दिन थोड़ा परेशान थीं मैने पूछा क्या हुआ बोलीं गले मेँ गाँठ है डॉक्टर ने बायप्सी की है जाँच के लिए भेज है .पता नहीं क्या होगा .मैने कहा आन्टी अच्छे लोगों के साथ बुरा नहीं होता सब ठीक होगा पर रिपोर्ट आई वो कैन्सर था वो भी चौथी  स्टेज का. बहुत से डॉक्टर को दिखाया सभी ने ऑपरेशन बोला वो भी कराया पर  उसके बाद उनकी तबियत  ख़राब ही होती गयी  और वो मजबूत  स्तम्भ गिर गया .चलती फिरती  मुस्कुराती ,प्यार करती और कभी डाँटती वो आन्टी न जाने कब हम सब की माँ बन गयी पता ही न चला आज वो उस घर में तो हैं पर तस्वीर बन गयीं और उस तस्वीर  पर हमने  हार चढ़ा दिया . अब भी मै उस घर जाती हूँ पर सबके होते हुए भी वो घर खाली लगता है . मैने उनसे कहा था कि अच्छे लोगों के साथ बुरा नहीं होता पर शायद मै ये भूल गयी थी की अच्छे लोगों की भगवान को भी जरूरत होती है.

दुःख  बरसे
नैनो के आँगन में
बिना मौसम

 सहेजूँगी मै
ज्ञान का उपहार
जो तूने दिया
-0-
 Los Angeles, CA

-0-
2-डॉ०पूर्णिमा राय
1
खोल दे ताले
अन्तर्मन की याद
भरे उड़ान
बिना पँख के पंछी
लहराये आँचल!!
2
कानन घना
कोहरे की ओढ़नी
श्वेत वसुधा
सँवरी है दुनिया
बदले दृष्टिकोण !!
 3
दुखती नसें
आह ये सूनापन
उम्र भर का
घिसटती जिन्दगी
मशीनीकरण में।।
4
घरौंदा टूटा
बेदर्द हैं दीवारें
बाँध न पाई
रिश्तों का प्रीत- स्नेह
विष- भरा नींव में ।।
5
मौन गहन
मूक- बधिर दिल
सिसक रहे
गुमनाम अँधेरे
रोशनी की चाह में।।
-0-

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

-दोष किसका



1-चोका
    
रचना श्रीवास्तव

नदी सिमटी
बन गयी नाला वो
दोष किसका ?
पूछती है हमसे
जल के बिना
धरा जल जाएगी
सूखेंगे बीज
फूटेगा न अंकुर
प्यासे कुएँ भी
फैला अपने हाथ
माँगेंगे भीख
एक -एक साँस की
रोएँगे पंछी
चिटकेंगे तालाब
पानी की बूँद
ढूँढेगा सावन भी
फटेंगे होंठ
माँगेगी  चैपस्टिक
वो खुश्क  हवा
क्या कहोगे उससे ?
चेतो मानव
लालच का खप्पर
तोड़ दो अभी
इससे पहले के
घरती पूछे -
मै तो सुहागन थी
भरी थी माँ
क्यों तुमने विधवा
मुझको कर दिया?
-0-

 2-सेदोका  
कमला घाटाऔरा
1
पृथ्वी दिवस
कैसे करें पूजन
रक्तरंगे हाथों से ,
बेखौफ़  हम
देते दर्द जिसको 
काट वन -पर्वत।
-0-

बुधवार, 22 अक्टूबर 2014

कुछ दीप जला जाना





1-डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

1
इतना उपकार करो
मेरी भी नैया
प्रभु ! भव से पार करो ।
2
पग-पग पर हैं पहरे
बख्शे दुनिया ने
हैं ज़ख़्म बहुत गहरे ।
3
हाँ ,साथ दुआएँ थीं
दीप जला मेरा
जब तेज हवाएँ थीं ।
4
खिल उठती हैं खीलें
स्नेह भरे दीपक
ख़ुशियों की कंदीलें ।
5
कुछ काम निराला हो
सच की दीवाली
अब झूठ दिवाला हो ।
6
है विनय विनायक से
काटें क्लेश कहूँ
श्री से ,गणना़यक से ।
7
सुनते ना ,कित गुम हो
अरज यही भगवन
निर्धन के धन तुम हो
8
चाहत को नाम मिले
मनवा को तुम बिन
आराम न राम मिले ।
8
हैं सुख-दुख की सखियाँ
जीवन-ज्योत हुईं
तेरी ये दो अँखियाँ ।
9
दिन-रैन उजाला हो
दीप यहाँ मन का
मिल सबने बाला हो ।
 
-0-
2-रचना श्रीवास्तव
1
हर ओर दिवाली है
घर तो सूना है
जेबें भी  खाली हैं ।
2
चौखट पर दीप जले
मन अँधियारा है
इस नीले गगन -तले ।
3
तुम आज चले आना
मन की  चौखट  पर
कुछ  दीप जला  जाना ।
4
दो दिन से काम नहीं
आज  दिवाली है
देने को दाम नहीं
5
तन को  आराम नहीं
दर्द  गरीबों का
सुनते क्यों राम नहीं
-0-
3-शशि पाधा
1
यह पावन वेला है
धरती के अँगना
खुशियों का मेला है
2
त्योहार मना लेंगे
रोते बच्चे को
हम आज हँसा देंगे
3
दीपों की माल सजी
मंगल गीत हुए
ढोलक की थाप बजी
4
शुभ शगुन मना लेना
सूनी ड्योढी पर
इक दीप जला देना |
 5
तन- मन सब वार गए
अम्बर के तारे
दीपों से हार गए |
-0-
4-डॉ सरस्वती माथुर
1
रातें तो काली हैं
मन हो रोशन तो
हर रात दिवाली है ।
2
दीपों की लड़ियाँ हैं
जगमग आँगन में
जलती फुलझड़ियाँ हैं ।
3
नैनो में दीप जले
नभ के चंदा सा
आ जाना शाम ढले।
-0-
5-कृष्णा वर्मा

1
दीपों की माल जली
खुशियाँ सज-धज के
डोलें हैं गली-गली।
2
लौ का लौ हाथ गहे
कटि लचका-लचका
पवन संग नाच करें।