1-रचना श्रीवास्तव
वो शाम आज भी
याद है जब एक सुन्दर- सी भद्र महिला ने हाथ
हिलाया। कौन होगा से सोच कर मै उसके पास चली आई.
उम्र में बड़ी थी हाथ जोड़कर नमस्ते
किया. खुश रहो कहा उन्होंने
.क्या तुम भी यहीं रहती हो पूछा उन्होंने
..हाँ,
मेरा उत्तर था तो वो तुरंत बोलीं -मै भी यहीं रहती हूँ
यूनिट 8 में। तुम किस यूनिट में
रहती हो फिर पूछा उन्होंने मैने बताया यूनिट 25
मेँ .ये थी मेरी उनसे पहली
मुलाकात और फिर हम लगभग रोज ही मिलने लगे मैने उनको आंटी बुलाना शुरू कर दिया
.दोस्तों मैने उनका नाम नहीं बताया न पर मुझे भी उनका नाम जानने की जरूरत कभी नहीं
पड़ी ;क्योंकि वो तो हमारी आन्टी बन चुकी थी
. आन्टी के पास यादों
और अनुभवों का खजाना था जिनमे से कुछ न कुछ उपहार मुझे भी मिलने लगे
.रिश्तों के पौधों को मौसम की मार से कैसे बचाना है.
त्याग ,समर्पण और तपस्या से
कैसे किसी को नया जीवन दिया जा सकता है , खाने को कैसे
रुचिकर और स्वादिष्ट बना देता है मैने उनसे सीखा.
वो हमारा मिलना बढ़ता गया ।उनकी पोती और
मेरी बिटिया गहरे दोस्त बन गए अब हमारा रिश्ता पारिवारिक हो गया था
.उनका मेरे घर आना हमारा उनके घर जाना अब अधिक होने लगा था आन्टी को देख
कर लगता 80 साल की उम्र मेँ भी
ये चुस्ती कभी कभी तो खुद पर ही शर्म आने लगती थी
,आन्टी को जानते उनसे सीखते कब 2 साल बीत गए
पता ही न चला .आन्टी एक दिन थोड़ा परेशान
थीं मैने पूछा क्या हुआ बोलीं गले मेँ गाँठ है डॉक्टर
ने बायप्सी की है जाँच के लिए भेज है .पता नहीं क्या
होगा .मैने कहा आन्टी अच्छे लोगों के साथ बुरा नहीं
होता सब ठीक होगा पर रिपोर्ट आई वो कैन्सर था वो भी चौथी स्टेज का.
बहुत से डॉक्टर को दिखाया सभी ने ऑपरेशन बोला वो भी कराया पर उसके बाद उनकी तबियत ख़राब ही होती गयी और वो मजबूत स्तम्भ गिर गया
.चलती फिरती
मुस्कुराती ,प्यार करती और कभी डाँटती
वो आन्टी न जाने कब हम सब की माँ बन गयी पता ही न चला आज वो उस घर में तो हैं पर तस्वीर
बन गयीं और उस तस्वीर
पर हमने हार चढ़ा दिया
. अब भी मै उस घर जाती हूँ पर सबके होते हुए भी वो घर खाली लगता है
. मैने उनसे कहा था कि अच्छे लोगों
के साथ बुरा नहीं होता पर शायद मै ये भूल गयी थी की अच्छे लोगों की भगवान को भी जरूरत होती है.
दुःख
बरसे
नैनो के आँगन
में
बिना मौसम
सहेजूँगी मै
ज्ञान का उपहार
जो तूने दिया
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Los Angeles, CA
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2-डॉ०पूर्णिमा
राय
1
खोल दे ताले
अन्तर्मन की याद
भरे उड़ान
बिना पँख के पंछी
लहराये आँचल!!
2
कानन घना
कोहरे की ओढ़नी
श्वेत वसुधा
सँवरी है दुनिया
बदले दृष्टिकोण !!
3
दुखती नसें
आह ये सूनापन
उम्र भर का
घिसटती जिन्दगी
मशीनीकरण में।।
4
घरौंदा टूटा
बेदर्द हैं दीवारें
बाँध न पाई
रिश्तों का प्रीत- स्नेह
विष- भरा नींव में ।।
5
मौन गहन
मूक- बधिर दिल
सिसक रहे
गुमनाम अँधेरे
रोशनी की चाह में।।
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