रश्मि विभा त्रिपाठी
1
मेरे लिए तो
कठिन था झेलना
ये समय का शाप,
जो एक दिन
अचानक मुझसे
मिले न होते आप!
2
जो कहने को-
जन्म से थे अपने
मरता छोड़ गए
तुम कौन हो?
जिसकी बदौलत
जिए मेरे सपने!!
3
वे जो गए हैं
देके पीठ पे घाव!
पड़ने नहीं देते
तुम जरा- सा
मेरे जी पे दबाव
तो किसे दूँगी भाव?
4
दिखाई दिया
मुझे तेरे मन का
साफ- स्वच्छ दर्पण
इसी कारण
तेरे सामने हुआ
ये आत्मसमर्पण!!
5
आशा के बीज
मेरी आँखों में बोए
तूने सौंप दी मुझे
भरकरके
मुस्कान की गागर
जो छलके, भिगोए!!
6
आँखों में गड़ा
जब- जब भी काँच
चटके सपनों का
तुमने भरी
आशा तब मुझमें
आने नहीं दी आँच!
7
तुझे पाकर
मुझे बरसों बाद
जो मिला है आह्लाद!
सच में पाया
तेरे रूप में मीत
ईश्वर का प्रसाद!!
8
दुआ के बीज
प्रणय बो रहा है
तो बेबस बनके
दुर्भाग्य आज
मारकर दहाड़ें
खुद ही रो रहा है!
9
दुख की आज
उल्टी पड़ गई है
सारी की सारी चाल
उसे क्या पता!
मेरे पास मीत के
आशीषों की है ढाल!!
10
तम के आगे
मान ही लेती हार
अगर मीत तुम
चुपचाप- से
ये धूप का टुकड़ा
धर न जाते द्वार।
11
कोरा जीवन
कोई नहीं था रंग
और तुम आ गए
प्रेम का प्रिज्म
इंद्रधनुष- सी है
आज मेरी उमंग।
-0-
2-माँ तेरा ध्यान
रश्मि विभा त्रिपाठी
1
भाग का लेख
तूने जो भी लिखा है
जगदम्बिके!
कब टलेगी व्याधि
जरा पढ़के देख!!
2
तोड़ते विघ्न
जीवन लच- लच
फिर भी जीती!
माँ तेरा ध्यान ही है
मेरा रक्षा कवच!!
3
होगा कल्याण
तुझे जप करके
आस्थावान मैं!
अम्बिके तेरा नाम
मेरे तो चारों धाम!!
4
डूबते को है
तू तृण का सहारा
भवतारिणी!
तूने ही सदा मुझे
आकरके उबारा!!
5
मेरे सुख का
कर देना संधान
भयहारिणी!
जब- जब भी करूँ
मैं तुम्हारा आह्वान!!
6
तुम स्वीकारो!
माँ ये श्रद्धा के फूल
मैं बदले में
तुम्हारे चरणों की
चाहती बस धूल!!
7
मैं जानती हूँ
माता तुम्हारा क्रोध
इसीलिए तो
बाध्य हूँ स्वजनों का
झेलने को विरोध!!
8
आसुरी- से हो
अति ही कर डाली
मैं चुप, क्योंकि
माँ करुणामयी से
बन जाती है काली!
9
तुमसे कभी
कुछ न बच पाता
मैं क्या बताऊँ?
मन को पढ़ लेती
तुम हो मेरी माता!
10
बड़ा कठिन
जीवन का अध्याय
क्या करूँ अब?
माँ तुम ही बताओ
आज अच्छा उपाय!
11
चीरने वाली
रक्तबीज की छाती
इन्हें भी रोक!
माँ जाने क्यों बने हैं
अपने ही उत्पाती!!
-0-