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शुक्रवार, 29 जून 2018

815 ओढ़े हुए सम्बन्ध।


1-जीवन- छंद
भावना सक्सैना

खंड -खंड हो
रचते रहे नए
जीवन- छंद
हर छंद में आस
माँगते हवि
प्रेम के अनुबंध।
मौन वेदना
स्वरों में ढले नहीं
लीलते रहे
अस्तित्व जीवन का
ओढ़े हुए सम्बन्ध।
-0-
2-ताल में पानी नहीं
 सुदर्शन रत्नाकर

सूर्य है उगा
प्रचंड रूप धरा
उग्र किरणें
अनल बरसाएँ
लू के थपेड़े
तन- मन जलाएँ
राह भटकें
धूल भरी आँधियाँ
शुष्क धरती
सूखे पेड़ -पत्तियाँ
जली है दूब
खोया अपना रूप
नदियाँ सूखीं
भीषण है आतप
व्याकुल पक्षी
कहाँ प्यास बुझायें
किधर जाएँ
पेड़ों की छाया नहीं
ताल में पानी नहीं।

-0-सुदर्शन रत्नाकर,ई-29, नेहरू  ग्राउण्ड फ़रीदाबाद -121001
मो. 9811251135
-0-
2- यादों का वसंत
कृष्णा वर्मा

जब भी मेरे
मन- उपवन में
उतर आता
तुम्हारी स्मृतियों का
मोही वसंत
ढुलक जाता प्यार
मेरी कोरों से
नेह की बूँद बन
महक जाता
है मेरा रोम-रोम
अहसासों की
संदली खुशबू से
उर कमल
पर तिर आते हो
ओस कण से
दहक उठते हैं
रक्तिम गा
तुम्हारी स्मृतियों से
अजाने सुर
करते हैं झंकृत
हृदय वीणा,
मदमाता  है मन
थिरक उठे
चीन्हीं थाप से
हिय तल पे
बोया था कभी रिश्ता
उग आया है
फूट आई हैं प्रीत
ले  स्वर्णिम पत्तियाँ
-0-
3. सुनो कविता !
सत्या शर्मा ' कीर्ति '

सुनो कविता
तुम रचते जाना
मेरे दिल की
हर व्यथा कथा को
जो निकली हो
दर्द के दरिया से
उस गहन
वेदना से सिंचित
शब्दों के पौधे
जीवन के  न्नों पे
रोपती जाना
सुनो कविता  तुम !
उगती जाना ।
भावों के ज्वारभाटे,
करती मुझे
विचलित यादें
पकड़ सको
खुशियों के जो पल
बन के आँसू
आँखों  की कोरों संग
ढलती जाना
सुनो कविता तुम
बहती जाना ।
कल-कल बहती
मेरे अंदर
है प्रेम समंदर
फिर भी सूखा
जन्मों से मेरा मन
बूँद -बूँद सा
छलक- छलकके
मेरे मन को
तृप्त करती जाना
सुनो कविता !
मेरे ही संग तुम
बस चलती जाना ।

-0-


गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

795


1-भावना सक्सैना
1
गीत सुरीले
गाती है ये ज़िन्दगी
सुर पकड़
नए सृजन करो
मन आनंद भरो।
2
छाँव सुख की
नटखट बालक
चंचल दौड़े
नयन मटकाती
टिके नहीं दो घड़ी।
-0-
2-अनिता मण्डा
1
इच्छा के दीप
मन का गंगाजल
ले जाएँ लहरें
तैरते व डूबते
दिन-रात बीतते।
2
घूरती आँखें
गली चौराहों पर
भूली संस्कार
पोतें सभ्यता पर
कालिख़ दिन-रात।
3
छानते युवा
सड़कों की धूल
कर्तव्य भूल
अधर में भविष्य
वर्तमान हविष्य।
4
मन हो जाता
पत्थर से भी भारी
रहे डूबा सा
सुधियों की नदियाँ
कितनी उफनाता
-0-
3-पूनम सैनी (हरियाणा साहित्य अकादमी-परिष्कार  कार्यशाला की छात्रा)
1
अंगार- भरी,
चंदन- सी घाटी ये
तेरी ज़िन्दगी।
रोते या मुस्कुराते,
सफर तो तय है।
2
कुछ अपनी,
कुछ अजनबी-सी,
अनकही- सी,
दास्ताँ है वतन की।
वीरों के जतन की।
3
मेरी साँसों में
उसके जीवन का
एहसास है।
अब न मैं न ही वो,
बस प्रेम जीता है।
4
सीमाएँ भी है,
धर्म और जाति भी
ढूँढे न मिला  
आदमी की बस्ती में
इंसान है लापता।
5
पतझड़ में
बसंत न खिलता
बिन तुम्हारे।
आशाओं की बेल थी
हिम्मत के सहारे।
6
घुमड़ते-से
बादल बनकर
तुम आओ तो।
थार से मन पर
प्रेम बरसाओ तो।
-0-


शुक्रवार, 16 जून 2017

769

सेदोका
1-भावना सक्सैना
1
बदला नहीं
वो जमाने के संग
हर रंग बेरंग,
कहता रहा
जो भी हो दस्तूर
मिलना है रूर।
2
सुधि- निर्झर
बहता कल -कल
सहलाता है मन,
वेदना- सिक्त
दुष्कर से क्षणों में
बनता आलंबन।
3
यादों के मोती
भरे दिल के सीप
कितने ही सालों से,
यादें सरल
निष्कपट, दूर है
जग की चालों से।
4
जीवन -संध्या
विश्लेषण के पल
अनुभव के बोरे,
विचारमग्न,
दूर चले कितने
रहे फिर भी कोरे।
5
जीवन -माला
गुज़रते वर्ष हैं
मनके सुनहरे,
मन के धागे
नित रहें  बाँधते
नूतन संगी मेरे।
-0-
ताँका
सुनीता काम्बोज
1

पगला मन
आशाओं का खिलौना
खेलता रहा
भ्रम के ही तूफान
नित झेलता रहा ।
2
कानन घना
तम और सन्नाटा
पसरा रहा
जीवन में सभी तो
बिन बोले ही कहा
3
पूर्ण आशाएँ
तृप्त हर सपना
तृष्णा संन्यासी
माया रही अछूती
फिर क्यों ये उदासी ?
4.
अबूझ लगी
पहेली जीवन की
करूँ प्रयास
सुलझेगी ज़रूर
मन  में बची आस
5
रूप है रोया
मार कर दहाड़
किस्मत हँसी
होठों पर मुस्कान
सिर्फ़ समय जीता ।
6
ज्ञान की बूँद
ह्रदय में बहती
है मिथ्या भ्रम
अभिमान जगाए
खुद के गुण गाए।
7
चिता जलती
यादों की फिर आज
कपट का कफ़न
धू -धू -धूकर जला
प्रपंच छोड़ चला।

-०-