जीवन मेरा
डॉ.जेन्नी शबनम
मेरे हिस्से में
ये कैसा सफ़र है
रात और दिन
चलना जीवन है,
थक जो गए
कहीं ठौर न मिला
चलते रहे
बस चलते रहे,
कहीं न छाँव
कहीं मिला न ठाँव
बढते रहे
झुलसे मेरे पाँव,
चुभा जो काँटा
पीर सह न पाए
मन में रोए
सामने मुस्कुराए,
किसे पुकारें
मन है घबराए
अपना नहीं
सर पे साया नहीं,
सुख व दु:ख
आँखमिचौली खेले
रोके न रुके
तंज हमपे कसे,
अपना सगा
हमें छला हमेशा
हमारी पीड़ा
उसे लगे तमाशा,
कोई पराया
जब बना अपना
पीड़ा सुन के
संग संग वो चला,
किसी का साथ
जब सुकून देता
पाँव खींचने
जमाना है दौड़ता,
हमसफर
काश ! कोई होता
राह आसान
सफर पूरा होता,
शाप है हमें
कहीं न पहुँचना
अनवरत
चलते ही रहना।
यही जीवन मेरा।
-0-