रमेश कुमार सोनी , बसना
1
निजी स्कूलों में
शिक्षा– दीक्षा महँगे
सब बेचते
क्रेता पंक्ति में खड़े
सपने खरीदने।
2
सुख नेवला
दुःख सँपोला डरा
ड्योढ़ी से लौटा
वन , बागों में छिपा
डसने को ताकता।
3
आँसू सूखे हैं
कब्रिस्तान
का पेड़
गिनती भूला
शवों को काँधा देते
कर्फ्यू क्यों लगता है ?
4
ठूँठ खड़े हैं
कंक्रीट गाँव
तलाशते हैं छाँव
मौसम पिया रूठा।
5
चाँद बेचारा
अमावस से डरे
सितारे भेजे
बच्चे सँभाले कौन ?
रात जल्दी बीतती।
6
सब खामोश
आँख, कान, जुबान
गिला–शिकवा
उम्र की जेबें ख़ाली
पैसा बोलता रहा।
7
किसान जाने
दाने का मोल सदा
लिखा किसने
खाने वालों के नाम ?
बोते ये , खाते कोई !!
8
शहर सारे
दौलतों के उजाले
गाँव सिसके
दुःख, क़र्ज़, अँधेरे
पुरखों-से तरसे।
9
राजा की रानी
रोज वही कहानी
नानी सुनाती
थकके शाम लौटी
बच्चों संग सो जाती।
10
बेटियाँ भोली
कौन घर अपना
बूझ न पाती
एक घर से डोली चली
दूजे से अर्थी उठी।
11
कुछ ना तय
जिंदगी की परीक्षा
पास या फेल ?
रटा–घोंटा बेकार
रोज ही आर–पार।
12
संस्कृति रोती
सभ्यता-पाँव छाले
युगों को दोष ?
नव जागृति चाहे
हर भोर तुमसे।
13
प्यार जो रोया
उनींदा सिरहाना
मुश्किल जीना
दिल तुम्हारे पास
स्पंदन भेजा करो ...।
14
दोस्तों की दुआ
गुल्लकों में खनके
बड़ी पूँजी है
बुरे वक्त में दौड़े
दुनिया जब छोड़े।
15
मील के पत्थर
मौसमों से न डरे
निडर योद्धा
राह बताते खड़े
यात्रियों से मित्रता।
16
पुष्प-सुगन्ध
पतझड़ तरसे
बड़ा बेदर्दी
रुखा, सूखा-सा पिया
काँटों में दिल फँसा।
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बसना [ छत्तीसगढ़ ] पिन – 493554 संपर्क - 7049355476