सुदर्शन रत्नाकर
गौरैया
वसंत
का आगमन हो रहा है।नई नई कोंपलों से पेड़-पौधों का शृंगार हो रहा है अर्थात प्रकृति
नए परिधान पहन कर नई दुल्हन की तरह सजने लगी है। हमारे घर के आँगन में सफ़ेद ,नारंगी,
लाल, पीले फूलों से बोगनबेलिया लदा है तो केसर
-दूध धुली सी मधुमालती इठला रही है।गुड़हल
के गहरे लाल रंग के फूल सिर उठाये वसंत का स्वागत करने को तैयार हैं। वहीं पहली
बार खिले लाल-नारंगी मिश्रित रंग के बॉटलग्रीन
के फूल वंदनवार की तरह लटक कर पेड़ों की शोभा बढ़ा रहे हैं।
कभी समय था ,यह मौसम आते ही चिड़ियों
की चहचहाट के मधुर संगीत से पूरा घर-आँगन गूँज उठता था और फिर इन्हीं दिनों घर के रोशनदान,
खिड़कियों के ऊपर, तस्वीरों के पीछे एरोकेरिया,
पाम के पौधों टहनियों पर तिनका तिनका लाकर घोंसला बनाना शुरू हो जाता था और साथ ही
गंदगी को लेकर माँ की शिकायतें शुरू हो जातीं।बिखरे तिनके रूई ,कपड़ों के टुकड़े फैले
रहते और माँ सफ़ाई करती रहतीं।चिडिया के अंडे फूटकर जिस दिन गौरैया- शिशु बाहर आते,
तो वह दिन बच्चों के लिए उत्सव का दिन बन जाता
जो कई दिन तक चलता रहता। घोंसलों में शिशुओं को देखने की जिज्ञासा तब तक बनी रहती जब
तक वे थोड़ा उड़ना नहीं सीख जाते थे और फिर कई दिन की प्रक्रिया के बाद चिड़िया अपने
बच्चों को साथ ले जाकर वहाँ से उड़ कर गुलमोहर और अमलतास के पेडों पर जा बैठती। इतने
दिन तक गौरैया और पेड पौधों के साथ हमारा सानिध्य बना रहता।
घर में पेड पौधे तो बने रहे पर गौरैया
हमारे आँगन से विलुप्त हो गई। वह चहचहाना, मुँह में तिनके लेकर आना और फिर फुर्र से
उड़ जाना कहीं पीछे छूट गया। पर आज बोगनबेलिया,मधुमालती, गुड़हल के खिले फूलों के साथ
जब बॉटलग्रीन के झूमर लटक आए, तो उन फूलों के सौन्दर्य में भी चार चाँद लग गए।आज प्रात:काल
प्रकृति की इस छटा को निहार कर आनन्द ले रही थी तो एक जानी- पहचानी पक्षी की मधुर क्षीण
सी आवाज़ ने मेरा ध्यान आकर्षित किया । नजर उठाकर देखा तो गौरैया के एक जोड़े को बॉटलग्रीन पेड के फूलों पर बैठ झूलते हुए देखा ,जो
अपनी नन्ही सी चोंच से फूलों को तोड़कर खा रहे थे। एक अंतराल के बाद घर के आँगन में
चहचहाती गौरैया को देख मेरा मन भी फूलों की तरह खिल गया। उनका स्वागत करने की इच्छा
हुई। मैंने उन्हें अपने कैमरे में बंद करना चाहा।
मैं जैसे ही उठी वे फुर्र से उड़ गईं। पर मैंने भी अपनी कोशिश नहीं छोड़ी। उनके
दुबारा आने की प्रतीक्षा में ओट में चुपके से खड़ी रही और अंत में एक गौरैया का चित्र
ले ही लिया।
मन में एक आशा बँध रही है, शायद वे यहीं रहेंगी,
कहीं नहीं जाएँगी।
नन्ही
गौरैया
लौट
आई अँगना
प्रफुल्ल
मन।
-0-सुदर्शन
रत्नाकर,ई-29, नेहरू ग्राँऊड ,फ़रीदाबाद 121001
मो.
न. 9811251135