त्रिवेणी
ताँका-चोका- सेदोका -माहिया-हाइबन
त्रिवेणी के बारे में
ताँका
सेदोका
चोका
वैधानिक सूचना एवं चेतावनी
सोमवार, 28 अक्टूबर 2013
आते ही यादें
डॉ सरस्वती माथुर
1
मुझको वो छलते हैं
अब मिलने को वो
दिन
-
रात मचलते हैं
l
2
मन भी
तो तरसे है
आते ही या
दें
आँखे भी बरसे है
l
3
मैं तो पीकर
हाला
करती
याद तुझे
जपती तेरी माला
l
-0-
हमारी उम्र
सुभाष लखेड़ा
हमारी उम्र
रहे हमारे पास
उनकी उम्र
रहे उनके पास
दीर्घजीवी हों
सदैव स्वस्थ रहें
वह और मैं
हाथों में रहें हाथ
जीवन भर
अपनी उम्र न दें
वे कभी मुझे
उम्र किसी से लेना
बेवकूफी है
वे मरें
,
हम जियें
आखिर किसलिए।
-0-
शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013
मानव-मन
रेखा रोहतगी
1
इस जग में
सबसे विचित्र है
मानव-मन
सुखों को पाकर भी
होता निराश
दुखों में भी न हुआ
कभी हताश
कभी हारकर भी
हार न माने
भीड़ में भी अकेला
स्वयं को माने
अकेलेपन को भी
कभी मेला ही जाने ।
-0-
2
मानसर में !
चुगता रहा मोती
मन का हंस
आँखें बन चकोर
पीती ही रहीं
चन्दा तेरी किरनें
सपने में भी
झपके न पलक
तेरी ललक
नेह-चाशनी पागी
लगन लागी
पंख उगे बिना ही
मैं तो हो गई पाखी ।
-0-
बुधवार, 23 अक्टूबर 2013
दिलकश चाँद खिला
1-माहिया
शशि
पुरवार
1
सिमटे नभ में
तारे
दिलकश चाँद खिला
हम दिल देकर हारे ।
2
फैली शीतल किर
नें
मौसम भी बदला
फिर छंद लगे झरने ।
3
पूनो का चाँद खिला
रातों को जागे
चातक हैरान मिला।
4
हर
डाली शरमाई
चंदा में देखे
प्रियतम की परछाई .
5
रातों चाँद निहारे
छवि इतनी प्यारी
मन में चाँद उतारे .
-0-
2-सेदोका
डॉ सरस्वती माथुर
1
शरद चाँद
अमृत रस
भर
धरा पर लुटाये
गोटेदार सी
चाँदनी की
किनारी
नभ को दमकाए
l
2
चाँदनी
रात
अमृत रस
भर
चाँद
के संग जागे
बौराई रात
नशीली होकर के
खींचे
चाँद के धागे
l
-0-
गुरुवार, 17 अक्टूबर 2013
पीर चुरा भागी
ऋता शेखर
'
मधु
'
1
कोयलिया जब बोली
हिय में हूक उठी
उर ने परतें खोलीं।
2
उसकी शीतल बानी
पीर चुरा भागी
सूखा दृग से पानी।
3
पंछी गीत सुनाएँ
चार पहर दिन के
साज़ बजाते जाएँ ।
4
टिमटिम चमके तारे
रात सुहानी है
किलके बच्चे सारे ।
5
प्राची की अठखेली
नभ में रंग भरे
कूँची ये अलबेली।
6
सूरज पाँव पसारे
जाग गई धरती
खग बोले भिनसारे।
7
जीवन सफ़र सुहाना
गम या खुशियाँ हों
गाता जाय तराना।
8
जागो रे सब जागो
नव निर्माण करो
आलस को अब त्यागो।
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013
धूप- मेह में
भावना सक्सैना
1
-चोका
बढ़ती भीड़
उमसते जीवन
थके कदम
पल- पल जलते
आहें भरते
तो भी चलें
सतत
धूप-मेह में
,
बना
महानगर
महानरक
हुई कड़ी तपस्या
जीवन की डगर
!
2-ताँका
गम के पल
खुशियों -भरे जो भी
लम्हे असंख्य
गुज़र जाते सब
वांछित- अवांछित।
-0-
गुरुवार, 10 अक्टूबर 2013
भीतर का रावण
सुदर्शन रत्नाकर
नहीं
मरता
जीवित
है
रहता
हर
दिल में
बसता
है
रावण
व्यर्थ
है
जाता
चाप
पर
चढ़ता
बाण
राम
का
।
पुतला
है
जलता
हर
मन
में
रावण
है
हँसता
छोड़
जाता
है
अपने
वंश
-
बीज
पोषित
होते
पनपते
रहते
।
झूठ
-
फ़रेब
लालच
-
भ्रष्टाचार
राम
बाहर
रावण
है
भीतर
कैसे
मरेगा
?
राम
–
वनवास
भी
कभी
ख़त्म
न
होगा
।
-0-
सूरज रूठा है
सुदर्शन
रत्नाकर
1
नभ
में
बदली
छाई
सूरज
रूठा
है
ये
धरती
मुस्काई
।
2
ख
नके
कंगना
है
बिन
बे
टी
लगता
सूना
ये
अँगना
है
।
-0-
मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013
ढलती शाम
ताँका-
सुभाष लखेड़ा
1
ढलती शाम
बेचैन करे हमें
जब वो बेटी
बाहर गई है
जो
,
लेकिन नहीं
लौटी।
2
ढलती शाम
आँखों में आँसू लाए
जब भी हमें
याद उनकी आए,
जिनसे धोखे खाए।
-0-
माहिया-
डॉ सरस्वती माथुर
1
बोलो
-
कब
आओगे ?
डोली में अपनी
मुझको ले जाओगे ।
2
यादों की है डोली
अब तो आजाओ
तुम मेरे हमजोली
।
सोमवार, 7 अक्टूबर 2013
कोकिल फिर गाएगा
कृष्णा
वर्मा
1
मौसम
ने
पेड़ ठगे
शा
खा
उन्मन
-
सी
जीना
अब
झूठ
लगे
।
2
पात
हुए
सं
न्यासी
ॠ
तु
की
भौंह
चढ़ी
छाई घोर उदासी
।
3
तरु
दल
भरमाए
हैं
रंग
खिज़ाओं
ने
सब आज
चुराए
हैं
।
4
रंगों
का
ना
मेला
पात
उदास
कहें
-
अवसान
भरी
बेला
।
5
पतझड़
जो
ना
होता
शाखें
निर्वसना
तरु
यौवन
ना
खोता
।
6
कोकिल
फिर
गाए
गा
सूनी
डालों
पे
यौवन मुस्काएगा ।
-0-
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