[28 सितम्बर को आदरणीया डॉ सुधा गुप्ता जी को ‘अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य कलामंच मेरठ’ द्वारा ‘महीयसी महादेवी वर्मा साहित्य सम्मान प्रदान किया गया । यह सम्मान एक समारोह में डॉ वेदप्रकाश ‘वटुक’ द्वारा प्रदान किया गया।बाएँ से सम्मान देते हुए डॉ वेदप्रकाश ‘वटुक’, डॉ सुधा गुप्ता जी औरड़ॉ राम गोपाल भारतीय।
हाइकु और त्रिवेणी परिवार की ओर
से कोटिश: बधाई !
आज इस अंक में आपके 12 सेदोका दिए
जा रहे हैं।
-डॉ हरदीप सन्धु –रामेश्वर काम्बोज
‘हिमांशु’]
-0-
डॉ सुधा गुप्ता
1
न तो है
छाया
न कोई
परछाई
मस्त खड़ा
अकेला
पत्तों की
माया
नहीं
लुभाती मुझे
मैं ठूँठ
अलबेला ।
2
छाया बनके
जीती रही
ताउम्र
अबला रही
नारी,
जिस दिन से
खड़ी हुई
अकेली
नर पे पड़ी
भारी ।
3
रास न आई
ज़िन्दगी की
खुशियाँ
सदा रहीं
पराई
डोलती रही
मन-दर्पन
पर
अचीन्ही
परछाई ।
4
अपनों ने
दी
सदा शिकस्त
मुझे
और कुरेदे
घाव
इठलाते थे
कर-करके
छेद
‘जल्दी
डूबे ये नाव।’
5
साँझ झुकी
है
उमड़ते आ
रहे
उदासी के
बादल,
आगे जो
बढ़ूँ
हताशा की
झाड़ियाँ
खींच लेतीं
आँचल
6
कैसे तो रोकें
घिर-घिर आते हैं
उदासी के बादल
डुबो खुद को
हँसी की चाशनी में
करें तुमसे छल ।
7
छँटते नहीं
उदासी के बादल
मन हुआ तरल,
आशा की धूप
खिलखिला जो हँसे
डगर हो सरल ।
8
सैर को चले
अंजान दुनिया में
कौतूहल से भरे,
आगे जो मिले
करते यही गिले;
‘तूफ़ान बहुत हैं ।’
9
ऊषा जो जागी
सूरज की किरन
गुदगुदा के भागी,
गा उठे पंछी
किसने किया जादू
समझा नहीं कोई !
10
ममता-भरी
नेह की बौछार से
जोड़ती परिवार,
अमृत –लेप
संजीवनी बूटी माँ
समझा नहीं कोई !
11
भूलेंगे कैसे !
वे हरे -भरे दिन
चाँदनी-भरी रातें,
दूर जा पड़े
बचपन के खेल
झगड़ों की सौगातें।
12
कैसे भूलेंगे!
चाँदनी का वो नशा
पहली बार हुआ
हँसा था चाँद
पसीजी हथेली में
रख के कोई दुआ ।
-0-
27 सितम्बर-2013
10 टिप्पणियां:
नमस्ते सुधा जी
,सर्वप्रथम आपको हार्दिक बधाई , आपका लेखन बेहद उम्दा है , आज के सभी सदोका दिल में उतर गए ,बेहद उम्दा , गहरी छाप मन पर छोड़ते हुए , सभी सदोका मुझे बहुत अच्छे लगे , सस्नेह ,हार्दिक शुभकामनाये , हम इसी तरह आपका लेखन निरंतर पढ़ते रहे। -- शशि पुरवार
डा० सुधा गुप्ता जी को मेरी हार्दिक बधाई!
अपनों ने दी
सदा शिकस्त मुझे
और कुरेदे घाव
इठलाते थे
कर-करके छेद
‘जल्दी डूबे ये नाव।’
सभी सेदोका बहुत मार्मिक ! यह तो बेमिसाल !
सुधा जी,नमस्कार
हार्दिक बधाई स्वीकारें ।सदैव की तरह सभी सेदोका भावपूर्ण एवं सुंदर
सस्नेह । सुदर्शन रत्नाकर
" छाया बनके / जीती रही ताउम्र /अबला रही नारी / जिस दिन से/ खड़ी हुई अकेली
नर पे पड़ी भारी।"..आपके सभी सदोका मुझे बहुत अच्छे लगे; हम इसी तरह आपका लेखन निरंतर पढ़ते रहे। आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाये !
आदरणीय सुधा जी को हार्दिक बधाई |प्रकृति के मोहक , सुन्दर रूप से सजे सेदोका बहुत मन भाये | धन्यवाद आपका |
सुधा दी को हार्दिक बधाई ! सभी सेदोका उत्तम
sudha didi ji apake sabhi sedoka bhav sausthav aur shabd - sanchayan ki drshti se nirale hain main soch hi nahi pa rahi kisko age rakhoon . apako meri sbh kamnayen.
pushpa mehra.
इस सुन्दर अवसर पर बहुत बहुत बधाई आ दीदी को ....सदा की तरह सभी सेदोका बहुत अच्छे लगे ...
छाया बनके
जीती रही ताउम्र
अबला रही नारी,
जिस दिन से
खड़ी हुई अकेली
नर पे पड़ी भारी ।...बहुत प्रभावी ....हृदय से धन्यवाद इतनी सुन्दर रचनाएँ पढ़ने का अवसर देने के लिए !!
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
मा. सुधा दीदी को हार्दिक बधाई .
सभी उत्कृष्ट , सुख - दुःख का यथार्थवादी चिंतन .
10
ममता-भरी
नेह की बौछार से
जोड़ती परिवार,
अमृत –लेप
संजीवनी बूटी माँ
समझा नहीं कोई !
11
सुधा जी को हार्दिक बधाई. सुधा जी की लेखनी सीधे मन में उतर जाती है. बहुत गहरे भाव...
अपनों ने दी
सदा शिकस्त मुझे
और कुरेदे घाव
इठलाते थे
कर-करके छेद
‘जल्दी डूबे ये नाव।’
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