शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

745



माहिया
1-सुदर्शन रत्नाकर
1
बिन मौसम सावन है
रिश्ता  ये अपना
पूजा-सा पावन है 
2
बिन सावन घन बरसे
पुत्र विदेश गया
माँ की आँखें तरसें 
3
मेघा ना बरसे हैं
सूख गई धरती
बिन पानी तरसे है ।
4
चाँदी-सी रातें हैं
आ मिल बैठ करें
दिल में जो बातें हैं।
5
मिसरी की डलियाँ हैं
खिलने दो इनको
कोमल ये कलियाँ हैं।
6
हर घाट लगा पहरा
मोती लाएगा
साहस जिसका गहरा  
7
महलों में रहते हैं
वो कैसे जाने
निर्धन दुख सहते हैं।
8
कंचन- सी काया है
मत अभिमान करो
पल भर की माया है।
9
सागर की लहरें हैं
कैसे टूटें वो
रिश्ते जो गहरे हैं।
10
सुख -दुख तो छाया है
सब कुछ सह ले तू
प्रभु की यह माया है।
11
खिलती ना कलियाँ हैं
आन मिलो सजना
सूनी सब गलियाँ हैं।
12
ऐसा क्यों होता है
बचपन को देखो
पटरी पर सोता है।
13
माना दुख सहती है
सागर से मिलने
पर नदिया बहती है।
14
दिल की ये बातें हैं
दिन तो कट जाता
कटती नहीं रातें हैं।
15
ममता की तू छाया
तेरे आँचल में
सारा ही सुख पाया।
-0-

2-डॉ.सरस्वती माथुर
1
मन मेरा बावरिया
चाँद निकल आया
आजा अब साँवरिया ।
2
तारे नभ में आए
मन के द्वारे पर
बीते पल के साए।
3.
है मन मेरा भारी
साजन की यादें
लगती मुझको आरी
4
मन तो एक धागा है
परदेसी बलमा
कोठे पर कागा है ।
5
कोयल काली बोली
मौसम बीत गए
पर प्रीत नहीं डोली ।
-0-

3-श्वेता राय

1
छलकेँ अँखियाँ कारी
हिय में जब चलती
यादों की पिचकारी ।
2
अम्बर की अँगड़ाई
नित -नित भरती है
धरती में तरुणाई।
3
बदरी अब आ जाओ
प्यासी है धरती
इसको मत तरसाओ।
4
दिल की ये हसरत है
भर लूँ बाँहों में
प्यारी जो सूरत है।
5
जीने की ताकत है
दिल में जो बसती
यादों की रंगत है।
5
रितु पावस की आई
बूँदों को छू कर
बहकी है तरुणाई
-0-
 

बुधवार, 23 नवंबर 2016

744



भावना सक्सैना
 बिछड़े कुछ
दोराहे की मानिंद
मिले न कभी,
दोराहे मिल जाते
उल्टा चलके
लौटे नहीं ज़िंदगी।
सिखाते थे जो
गिरना  सँभलना
रूठे वो सभी,
हाथ पकड़कर
चलती रही
फिर भी ये ज़िंदगी।
फैला दरिया,
तैरने की चाह में
तिरते रहे
डूबते -उतराते
खारे पानी में
अनजान डगर
कँटीला पथ
कदम बिन रुके
चलते रहे।
सफर में चलते
काँटों से भरे
ये हुआ ऐतबार
कितनी बार
गुरु सबसे बड़ी 
ज़िंदगी हर कहीं।
-0-