1-मंजूषा मन
1
टूटे
सपने
सँभले
न हमसे
रूठे
अपने
मना -मना
के हारे
टूटे
मन के तारे।
2
कुछ नया- सा
रचना जो चाहें तो
साथ न मन,
रूठ जाए भावना
पूरी न हो कामना।
-0-
2-रेखा रोहतगी
1
पगली, अलबेली है
कौन इसे बूझे
तकदीर पहेली है ।
2
कौन इसे बूझे
तकदीर पहेली है ।
2
रब क्यों न कहूँ तुझको
तू ही सब करता
तू ही सब करता
यश मिलता है मुझको ।
3
3
क्यों मन है घबराता
साँझ ढले ही जब
तू लौट नहीं आता ।
4
साँझ ढले ही जब
तू लौट नहीं आता ।
4
तू दिल में रहता है
आँखों से फिर भी
क्यों झरना बहता है ।
आँखों से फिर भी
क्यों झरना बहता है ।
-0-
12 टिप्पणियां:
मंजूषा जी और रेखा जी दोनो की ही रचनाऐं बहुत सु्न्दर । रेखा जीके माहिया दिल को छूने वाले हैं। बधाई।
सभी रचनाएं उत्कृष्ट हैं
बधाई
मंजूषा जी बहुत बढ़िया तांका और रेखा जी बहुत उम्दा माहिया! आप दोनो को बहुत बधाई।
रेखा जी के माहिया और मंजूषा जी की रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं | आप दोनों को बधाई |
रेखा जी सुंदर माहिया
मन जी दिल की बात....
Well and best
मंजूषा जी और रेखा जी सुन्दर भावों से पूर्ण तांका और माहिया के सृजन पर हार्दिक बधाई स्वीकारें |
मन को छू लेने वाले ताँका एवं माहिया !
हार्दिक बधाई मंजूषा जी व रेखा जी !!!
~सादर
अनिता ललित
मंजूषा जी बहुत सुंदर सृजन
रेखा जी बहुत सुंदर माहिया अति सुंदर
हार्दिक बधाई आप दोनों को
कुछ नया- सा
रचना जो चाहें तो
साथ न मन,
रूठ जाए भावना
पूरी न हो कामना।
जाने क्यों होता है ऐसा...अक्सर...| बहुत सटीक बात है...| हार्दिक बधाई...|
पगली, अलबेली है
कौन इसे बूझे
तकदीर पहेली है ।
सच में, ये पहेली तो आज तक न सुलझी किसी से...| बहुत बधाई...|
मन को छू लेने वाले ताँका एवं माहिया !
हार्दिक बधाई मंजूषा जी व रेखा जी !!!
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