जुगल बन्दी : माहिया
अनिता मंडा : डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
1
कुछ ख़्वाब सुहाने से।
होकर अपने भी
लगते बेगाने से।1
अनिता मण्डा
जो भी देखूँ सपने
सब तेरे ,साजन !
कब होते हैं अपने । डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
2
फूलों पर सोई थी
सूनी रातों में
क्यों शबनम रोई थी। अनिता मण्डा
0
बिस्तर है फूलों का
बिरहा की मारी
चुभना है शूलों का डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
3
बेटी का भाग लिखा
आँसू की मसि ले
क्यों दुख का राग लिखा। अनिता मण्डा
0
भर खूब उमंगों से
आप सजा लूँगी
मैं दुनिया रंगों से ।
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
4
घुँघरू सब टूट गए
छमछम की सरगम,
सुर हमसे छूट गए। अनिता मण्डा
0
घुँघरूँ से हैं बजते
छेड़ो मन-वीणा
सुर साज सभी सजते ।
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
5
सौ रोग यहाँ कम हैं
एक गरीबी में
दुनिया के सब ग़म हैं। अनिता मण्डा
0
पूरे अरमान हुए
तेरा प्यार मिला
कितने धनवान हुए।
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
6
पथरीली राह मिली।
औरत के हिस्से
क्यूँ हरदम आह मिली। अनिता मण्डा
0
पत्थर से टकराना
नदिया की फ़ितरत
बेरोक बहे जाना । डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
7
आग भरे दरिया से
पार उतरना है
नफरत की नदिया से। अनिता मण्डा
0
दरिया में आग भरी
डूबी ,उतराई
साधी जब प्रीत तरी । डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
8
यूँ देख न दानों को
उड़ जा चिड़िया तू
पहचान सयानों को। अनिता मण्डा
0
गर चतुर शिकारी है
उड़ती चुग, चिड़िया
अब ना बेचारी है । डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
9
कुछ तारे टूट गए
नभ की थाली से
अनजाने छूट गए। अनिता मण्डा
0
देखूँ टूटा तारा
एक दुआ माँगूँ
यूँ बिछड़े ना प्यारा । डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
-0-