जुगलबन्दी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
जुगलबन्दी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 13 मई 2016

702

जुगल बन्दी : माहिया 
अनिता मंडा : डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा 
1
कुछ ख़्वाब सुहाने से।
होकर अपने भी
लगते बेगाने से।1 अनिता मण्डा
 0
जो भी देखूँ सपने
सब तेरे ,साजन !
कब होते हैं अपने  । डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
2
फूलों पर सोई थी
सूनी रातों में
क्यों शबनम रोई थी। अनिता मण्डा
0
बिस्तर है फूलों का
बिरहा की मारी 
चुभना है शूलों का  डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
3
बेटी का भाग लिखा
आँसू की मसि ले
क्यों दुख का राग लिखा। अनिता मण्डा
0
भर खूब उमंगों से
आप सजा लूँगी 
मैं दुनिया रंगों से डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
 4
घुँघरू सब टूट गए
छमछम की सरगम,
सुर हमसे छूट गए। अनिता मण्डा
0
घुँघरूँ से हैं बजते 
छेड़ो मन-वीणा
सुर साज सभी सजते डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
 5
सौ रोग यहाँ कम हैं
एक गरीबी में
दुनिया के सब ग़म हैं। अनिता मण्डा
 0
पूरे अरमान हुए
तेरा प्यार मिला
कितने धनवान हुए डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
6
पथरीली राह मिली।
औरत के हिस्से
क्यूँ हरदम आह मिली। अनिता मण्डा
 0
पत्थर से टकराना
नदिया की फ़ितरत 
बेरोक बहे जाना  । डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
7
आग भरे दरिया से
पार उतरना है
नफरत की नदिया से। अनिता मण्डा
0
दरिया में आग भरी 
डूबी ,उतराई 
साधी जब प्रीत तरी । डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
8
यूँ देख न दानों को
उड़ जा चिड़िया तू
पहचान सयानों को। अनिता मण्डा
0
गर चतुर शिकारी है
उड़ती चुग, चिड़िया 
अब ना बेचारी है । डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
9
कुछ तारे टूट गए
नभ की थाली से
अनजाने छूट गए। अनिता मण्डा
 0
देखूँ टूटा तारा
एक दुआ माँगूँ
यूँ बिछड़े ना प्यारा । डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा

-0-

शुक्रवार, 11 मार्च 2016

691


माहिया-जुगलबंदी

(क्रमांक में पहला माहिया ज्योत्स्ना प्रदीप  का है तो जुगलबन्दी में रचा दूसरा माहिया डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा का है। त्रिवेणी में किए जा रहे सर्जनात्मक और सकारात्मक प्रयोग के लिए हम दोनों सभी के आभारी हैं। -डॉ हरदीप सन्धु-रामेश्वर काम्बोज)

ज्योत्स्ना प्रदीप : डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा

1

 उसकी पहचान नहीं

भेस बदलता है

राहें आसान नहीं । ज्योत्स्ना प्रदीप

0

मैं उसको जान गई

मन भरमाता है 

सब सच पहचान गई!- डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

 0

2

 माँ ने क्यों सिखलाया-

चुप रहना सीखो,

पर रास नहीं आया ।

 0

हर सीख यहाँ मानी 

जीवन पेंच हुआ

अटकी हूँ अनजानी।

3

देखो आई यामा

आँसू कब ठहरे

 किसने इनको थामा?

0

रजनी के तारे हैं 

कुछ तेरे नभ में 

कुछ पास हमारे हैं ।

4

 नाहक आँखें भरतीं

मिलती माधव से

कई मासों में धरती ।

0

मिलने की मजबूरी 

सह लेती , मुश्किल 

मन से मन की दूरी।

5

कोई  होरी -राग नहीं

दिल में सीलन है

कोई भी आग नहीं ।

0

हर वार करारा है 

ढूँढ कहीं दिल में

आबाद शरारा है ॥

6

ऐसी भी बात नहीं

प्रेम समर्पण है

कोई खैरात नहीं ।

0

भाती है सीख नहीं 

प्रेम फकत चाहा 

माँगी है भीख नहीं 

7

नाते वो पीहर के

जी लूँ कुछ दिन मै

 खुशियाँ ये जी भरके ।

0

दिन-रैन लुभाती हैं 

गलियाँ नैहर की 

हाँ,पास बुलाती है।

8

 हा ! माँ भी वृद्धा है

अब भी  आँखों में  

ममता है श्रद्धा है ।

0

दिन,सदियाँ ,युग बीते 

माँ की ममता से  

कोई  कैसे  जीते ।

9

 बेटी को प्यार किया

माँ ने लो फिर से

घावों को  खूब  सिया ।

0

मरहम -सा सहलाए

 उलझन बालों की

मैया जब सुलझाए॥

10

 नाता वो भाई का

अमवा से पूछो ऋण

वो  अमराई का।

0

भाता  है ,भाई है

 हर सुख में ,दुःख में

जैसे परछाई है ।

11

 भाभी की शैतानी

पल भर में छिटका

 वो आँखों का पानी ।

0

खट्टी -मीठी गोली 

छेड़ करे भाभी

 बनती कितनी भोली॥

12

 बहना भी प्यारी है

ग़म  को कम करती

खुद गम की मारी है।

0

प्यारी सी बहना है 

वो दिल का टुकड़ा 

सोने का गहना है

13

 मन इतना भोला था

 ढोए बोझ घने

उफ़ तक ना बोला था।

0

मन तो मतवाला है 

तेरे तीरों से 

कब डरने वाला है।

14

 अब मन पर भार नहीं 

मेरे खाते  में

अब दर्ज़ उधार नहीं।

0

चर्चा ये जारी है 

कर्ज यहाँ तुझपे

सुन मेरा भारी है ।

15

अहसास बड़ा प्यारा-

तेरा कोई है

बैरी फिर जग सारा । ज्योत्स्ना प्रदीप

0

अधरों पर आह नहीं 

तू मेरा है ,फिर

मुझको परवाह नहीं । डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
-0-

सोमवार, 10 अगस्त 2015

अम्बर फूल खिले



 डॉ ज्योत्स्ना शर्मा- शशि पाधा
1
क्या आज हवाएँ हैं
क़ातिल हैं , कितनी
मासूम अदाएँ हैं ।
*
कैसे इतबार करें
कितनी भोली हैं
नैनों से वार करें|
2
वो साथ हमारे हैं
अम्बर फूल खिले
धरती पर तारे हैं।
*
तारों की बात करें 
अम्बर की बगिया 
फूलों का साथ करें।
3
ख़ुशियाँ तो गाया कर
ज़ख़्मों की टीसें
दिल खूब छुपाया कर ।
*
ज़ख्मों से डर कैसा
जिस घर बसती तू
खुशियों के घर जैसा।
4
सब राम हवाले है,
आँखों में पानी
दिल पर क्यों छाले हैं।
*
आँखों से कह देना
मन की पीड़ा को
बिन बरसे सह लेना।
5
अब क्या रखते आशा
गैरों से समझी
अपनों की परिभाषा ।
*
समझो ना गैर हमें
सच्ची बात कहें
तुमसे ना बैर हमें।
6
मैंने तो मान दिया
क्यों बाबुल तुमने
फिर मेरा दान किया
*
बाबुल जो दानी है
रीत निभानी है
वो जग का प्राणी है।
7
मन चैन कहाँ पाए?
इतना बतलाना-
क्यों हम थे बिसराए।
*
यह कैसे जान लिया
प्राणों से प्यारी
बिटिया को मान लिया
8
ये भी तो सच है ना
चाहा हरजाई
यूँ हार गई मैना ।
*
मैना की जीत हुई
हारा हरजाई
उसकी मनप्रीत गई।
9
पीछे कब मुड़ना है
अब परचम अपना
ऊँचे ही उड़ना है ।
*
जो बढ़ने की सोचे
अम्बर उसका है
जो उड़ने की सोचे।
10
छोड़ो भी जाने दो
मन की खिड़की से
झोंका इक आने दो ।
*
खिड़की ना बंद करो
अपनी साँसों में
भीनी सी गंध भरो।
11
हाँ ! घोर अँधेरा है
सपनों में मेरे
नज़दीक सवेरा है।
*
अरुणाई छाई है
नभ की गलियों में
ऊषा सज आई है।
12
सपना जो तोड़ दिया
ज़िद ने हर टुकड़ा
मंज़िल से जोड़ दिया ।
*
सपने तो टूटेंगे
दुःख तो तब करना
जब अपने रूठेंगे।
13
मानी है हार नहीं
तेरा साथ मिला
जीवन अब भार नहीं ।
*
हमने यह जाना है
तेरा साथ हमें
हर वक्त निभाना है।
14
ख़ुद को पहचान मिली
बंद - खुली पलकें
तेरी मुस्कान खिली|
*
तुम जब भी हँसती हो
खिलते फूलों सी
अँखियों में बसती हो।
15
कुछ खबर है राहत की
ख़्वाबों में मिलकर
बातें कीं चाहत की ।
*
जनमों का नाता है
प्रीत निभाना तो
हमको भी आता है