कृष्णा वर्मा
1
लीपती भोर
नारंगी आकाश औ
भरती नव श्वास,
प्रात: पवन
बजाता है संतूर
पंछी गाए सुदूर ।
2
सिमटी नर्म
कोहरे की चादर
बेपर्दा बैठी धूप
तनी फिज़ाएँ
भौरा कसमसाया
देख कली का रूप ।
3
ओढ़ के रूप
कुसुम इतराएँ
खिले बाग में आज,
करवट ले
ॠतु ने महकाए
हर कली के पोर ।
4
झरझराया
झीना- झीना कोहरा
ओस ले अँगड़ाई ।
जब मुस्काई
सिंदूरी किरणें तो
सींचे थे तन-मन ।
5
निभा के उम्र
हरियाले पत्ते
बदल रहे रंग,
अनूठा नूर
पीले- लाल भूरे से
डोलें मस्ती में चूर।
6
पत्ते क्या गिरे
छाने लगी उदासी
ओस के आँसू झरे,
उन्मन पेड़
पगडण्डी सीली -सी
गीले हैं खेत-क्यारी ।
7
डगमगाते
कदमों- से पल्लव
गिरा नदी प्रवाह,
प्यार से चूम
प्रवाह ने दुलारा
अंक से लिया लगा ।
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