मंजूषा ‘मन’ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मंजूषा ‘मन’ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 10 अगस्त 2021

981

 ताँका

मंजूषा मन

1

सौदा किया था

सुख अपने देके

दुख लिया था,

फिर भी मुस्काए हैं

चलो! काम आए हैं।

2

पीड़ा के वक़्त

छोड़ जाएँ अकेला

अपने सब,

कैसा लगा है रोग

पराए सारे लोग।

3

टीसते नहीं

पुराने हुए जख्म

हुआ लगाव

लगने लगे प्यारे

अब ये दर्द सारे।

4

रहे मौन ही

घातें आघातें झेल

रो भी क्या पाते

सारा मान गँवाते,

कह किसे बताते।

5

सुख चाहा था

पाए तिरस्कार ही

स्वयं को लुटा

जिसके लिए खोए

काँटे उसने बोए।

-0-

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2019

890


1-मंजूषा मन
1
लिख दे प्रेम
अंतिम निर्णय-सा
तोड़ कलम।
2
प्रेम पुस्तक
कर दे हस्ताक्षर
अंतिम पृष्ठ।
3
ऋतु ने ओढ़ी
कोहरे की चादर
नर्म धवल।
4
बाहें समेटे
उकड़ू बैठे पेड़
सर्दी से डरें।
5
ओस के मोती
पत्तों पर ठहरे
चमकें हीरे।
6
किरचें बनीं
यादें बनके चुभीं
ओस की कनी।
-0-
2-आशा बर्मन
1.
फूल चन्दन
प्रार्थना व पूजन
हो शुद्ध मन
2
झर निर्झर,
संगीतमय स्वर
आनंद भर
3
हरित पात
रिमझिम बरखा
सद्यस्नात सा
4
फैला आकाश,
मुक्ति का एहसास
उड़ता पाखी
5
उदास मन
वेदनामय क्षण
अकेलापन
6
चल निकला
तर्कों का सिलसिला
कुछ न मिला
-0-

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

788

मंजूषा मन
1
जीवन से हारे हैं
शिकवा क्या करते
अपनों के मारे हैं।
2
धोखा ही सब देते
अपने बनकर ही
ये जान सदा लेते।
3
रोकर भी क्या पाते
गम में रोते तो
रो -रोकर मर जाते।
4
उम्मीद नहीं टूटी
तेरे छलने से
हिम्मत भी है छूटी।

-0-

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

783

मंजूषा मन
तुम मन को भाते हो
मन में बसकर तुम,
कितना इठलाते हो?
पहले ना खबर हुई
मन में आप बसे,
तब मुश्किल जबर हुई।
सन्नाटा गहरा था
तेरे आने से
टूटा हर पहरा था।
जन्मों तक तुम मिलना
मेरे मन बस कर,
तुम फूलों से खिलना।
होता जो अच्छा है
तुम विश्वास करो
ये रिश्ता सच्चा है।

-0-

शनिवार, 18 नवंबर 2017

780

मंजूषा मन
1.
तुम्हारा ख़्या
लगे ज्यों नर्म शॉल
भावों की गर्मी,
नेह का उपहार,
बना रहे ये प्यार।
2.
तुम्हारा साथ
सर्दियों में लिहा
नर्म आभास
ओढ़ के इतराऊँ
हृदय से लगाऊँ।

-0-

शुक्रवार, 26 मई 2017

763

1-भारतीय सेना के शूरवीर सैनिकों को समर्पित

1-शशि पाधा
1
कैसी आज़ादी है
सरहद से पूछो
कितनी बर्बादी है ।
2
यह नेता क्या जाने
वीर सिपाही का
साहस ना पहचाने ।
3
अर्जुन सा वार करें 
दुश्मन टोली का 
सैनिक संहार करें ।
4
दुशमन से जूझ जरा
दृढ़ता सैनिक की
पर्वत से पूछ जरा ।
5
आज़ादी पाई है
कितने वीरों ने
निज जान गंवाई है ।
6
जयघोष सुनाना है
सारा जग सुन ले
अब देश बचाना है ।
7
जब पहने रोता है
बेटा सैनिक का
वर्दी से छोटा है ।
8
सीमा पर ध्यान धरो
जन गण भारत के
सैनिक का मान करो ।
9
माँ धीर ज़रा धरना 
गर हम लौटें ना
नित याद हमें करना ।
10
इक रीत निभानी है
गाथा वीरों की
हर रोज़ सुनानी है ।
-0-
 (भारतीय सेना के शूरवीर सैनिकों को समर्पित)
-0-
2-मंजूषा मन
1
संवाद अधूरे हैं,
मन में झांको तो
सब किस्से पूरे हैं।
2
ये मौन डराता है,
चुप तुमको देखे
तो मन घबराता है।
3
कुछ ऐसे रोएँगे,
काँधे सर रखकर
हम खूब भिगोएँगे।
4
हर सफर अधूरा है,
तुम तक पहुँचाए
वह रस्ता पूरा है।
5
छोड़ो अब जाने दो,
मन बौराया है
मन को समझाने दो।
6
तुमसे न कह पाएँ
पर देखो हमको
हम मौन न रह पाएँ ।
7
किससे हम कह पाते,
अपना कौन यहाँ
जिसको गम दिखलाते।
8
मन के बिखरे मनके
टूटे डोरी से
सब रिश्ते जीवन के।
9
शामों के ढलने पर
याद बहुत आए
दीपक के जलने पर।
10
सब राज कहे तुमसे
अब डर लगता है
रूठो न कहीं हमसे।

-0-

मंगलवार, 15 नवंबर 2016

742



1-मंजूषा मन
1
टूटे सपने
सँभले न हमसे
रूठे अपने
मना -मना के हारे
टूटे मन के तारे।
2
कुछ नया- सा
रचना जो चाहें तो
साथ न मन,
रूठ जाए भावना
पूरी न हो कामना।
-0-
2-रेखा  रोहतगी
1
पगली, अलबेली है
कौन इसे बूझे
तकदीर पहेली  है ।
2
रब क्यों न कहूँ तुझको
 
तू ही सब करता
यश मिलता है मुझको ।
3    
क्यों मन है घबराता
साँझ ढले ही जब
तू लौट नहीं आता ।
4      
तू दिल में रहता है
आँखों से फिर भी
क्यों झरना बहता है ।
-0-

शनिवार, 9 जनवरी 2016

674

1-कृष्णा वर्मा
1
ना आस कभी टूटे
टुकड़े हों दिल के
जब-जब अपने रूठें।
2
रिश्तों से प्रीत बही
सीना चाक हुआ
उफ दारुण पीर कही
3
यादों की कील गड़ी
चटकी मन गगरी
आँखों की पीर बढ़ी ।
4
खुशियाँ मन को भाएँ
माने ना प्राणी
किसी विधि दुख दे जाए।
5
खुश हों ना वाह करें
बदले यार सभी
जीतें तो आह भरें।
6
मौसम -सा बदल गया
फसलों- सा मुझको
तूने बरबाद किया।
7
युग-युग से साथ चले
झूठ सदा हारा
सच को सौगात मिले।
8
छोड़ो बीती बातें
यारी के चरखे
अपनापा मिल कातें।
-0-
2-बेबस हम
-मंजूषा 'मन'

बेबस हम
कर न पाते कुछ
हाथ में न था
हमारे कुछ कभी
बेरंग ढंग
सपाट- सी ज़िन्दगी
लेकर जिये
रँगने चले जब
सब बिगाड़ा
बसा न सके कुछ
बसा उजड़ा
पर, वो जो था एक
रँग सकता
सब सलीके संग-
उसने भी तो
बिगाड़ा ,उजाड़ा ही
सँवारा नहीं
बसाया भी कभी न
और हम तो
उसके विश्वास पे
तै करते हैं
ज़िन्दगी का सफर
ऐसे कर ली
हमने ये बसर
कट गई उमर।
-0-