ताँका
मंजूषा मन
1
सौदा किया था
सुख अपने देके
दुख लिया था,
फिर भी मुस्काए हैं
चलो! काम आए हैं।
2
पीड़ा के वक़्त
छोड़ जाएँ अकेला
अपने सब,
कैसा लगा है रोग
पराए सारे लोग।
3
टीसते नहीं
पुराने हुए जख्म
हुआ लगाव
लगने लगे प्यारे
अब ये दर्द सारे।
4
रहे मौन ही
घातें आघातें झेल
रो भी क्या पाते
सारा मान
गँवाते,
कह किसे बताते।
5
सुख चाहा था
पाए तिरस्कार ही
स्वयं को लुटा
जिसके लिए खोए
काँटे
उसने बोए।
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