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सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

किरचों की ज़मीन



सुनीता अग्रवाल
1
रखना पग
मेरे मन -प्रांगण
थोड़ा सम्हल
किरचों की ज़मीन
कर दे न घायल .

गुरुवार, 6 मार्च 2014

दीपक बन नारी

1-माहिया
सुनीता अग्रवाल
सुनीता अग्रवाल
1
सरगम है, लोरी है
भारत की नारी
रेशम की डोरी है ।
2
अबला जिसको माना
लक्ष्मी बाई है
तुम भूल नहीं जाना ।
3
बाती -सी  जलती है
दीपक बन नारी
मन का तम हरती है ।
4
सीता का सत जिसमें
तुलसी- सी पावन
गौरी का तप इसमें ।
5
सपने  हैं लाखों में
करुणा का सागर
कजरारी आँखों में ।
6
परिवार न पूरा है
नारी तेरे बिन
ब्रह्माण्ड अधूरा है ।
7
बिन पात  न पेड़ सजे
मसली जो कलियाँ
फल- फूल कहाँ उपजे ।
-0-
2-सेदोका डॉ सरस्वती माथुर
1
माँ बेटी सी
पत्नी, बहिन- जैसी
अंकुराती आकाश
घर- आँगन
देहरी द्धार पर
नारी एक विश्वास
2
नारी माँ भी
बेटी - भार्या भी नारी
स्नेह प्यार से नारी
महक बाँट
जीवनदायिनी सी
सम्मोहित करती l


-0-


मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

कर देना उज्ज्वल

1-सुनीता अग्रवाल
1
बुद्धिदायिनी
श्वेतवस्त्रावृत्ता  माँ
हंसवाहिनी
कर  देना उज्ज्वल
अंतर्मन  हमारा ।
2
जग मायावी
हम बच्चे  अबोध
सुरभारती
तेरे शरण आए
दे बुद्धि- विवेक माँ !
-0-
2-रेनु चन्द्रा
1
बगिया खिली
भौंरे गुनगुनाए
मन महका
गीत मधुर गाए
बसन्त मुस्कुराए ।

-0-

शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

रिश्ते प्यार के




1-डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
1
रिश्ते प्यार के 
चाहा था फूलें- फलें 
सँवरें रहें  
क्या जानूँ कैसे हुए 
अमर बेल बनें
2
चुनती रही 
काँटे सदा राह से 
और वे रहे 
इतने बेफिकर 
मेरी आहों  से कैसे !
3
अरी पवन !
ली खुशबू उधार 
कली -फूल से 
ज़रा कर तो प्यार 
न कर ऐसे वार !
4
मंज़ूर मुझे 
मेरे काँधे बनते 
तेरी सीढ़ियाँ
तूने दुनियाँ रची 
मिटा मेरा आशियाँ |
 -0-

2-सुनीता अग्रवाल
1
मीठा बोलता
कोकिल मन मोहे
मन का काला
कर्कश काक भला
मन ममता- भरा ।
-0-
 
 

है टूटा एतबार।



1-सीमा स्मृति
1
ये चारो ओर 
घमण्ड का गुबार
बनावट आधार
नोंचे- खसौटे
मानवता व प्या
है टूटा एतबार।
2
कैसा माहौल
हर ओर घोटाला
प्यार दफना डाला
कैसे संस्का
स्लों को मिटा डाला
जहर घोल दिया
-0-
2- मंजु गुप्ता 
1
अवार्ड बनी 
पांडुलिपियाँ  मेरी 
लिख खुद का नाम 
प्रकाशित की
मेरे समीक्षक ने 
जीवन पूंजी छीनीं  
2
लोभी  कुपुत्र 
लाठी का सहारा ना 
वसीयत चुराई 
आँखें दिखाए 
कृतघ्न विष पिला
प्राणों को वे हरता
-0-
3-कृष्णा वर्मा
1
अजब बात
मन हाथ जिह्वा 
सने स्वार्थ में आज
रिश्तों की नौका
छेद के पैगंबर
छूना चाहें अम्बर
-0-
4-सुनीता ग्रवाल
1
सजते नहीं
सूरजमुखी रिश्ते
जीवन गुलदस्ते
सुबह खिले
मुरझा जाते है ये
सूरज जब ढले  ।
2
तपस्यारत
बगुला नदी तट
निज उदर हेतु
भोली मछली
पहचान पाती 
खल का ग्रास बनी ।
-0--0-