सचेन का डर
भीकम सिंह
यह घना जंगल, नीला - नीला आसमान, अनजान अनसुने
पक्षियों का कलरव, पाखोला हैंगिंग ब्रिज का कंपन, तुरई की बेल जैसी बेल पर खिलखिलाकर हँसता स्क्वैश, तून , महोगनी, ओखर के
पेड़, पौधे, अंकुर.....सभी के
अपने शब्द, आनन्द, कोलाहल । बस
एक टुकड़ा जमीन ही दिखाई दी थी हमें टैंट लगाने के लिए,
हम आसमान का रुख देखकर आनन्दित हो उठे। यह हमारा सिक्किम गोचा-
ला ट्रैक का पहला कैम्प 'सचेन' है ।
सचेन के ऊपरी छोर पर कंचनजंघा
अभ्यारण्य की जानकारी हुई, तो जंगली जानवरों की आशंका हुई । जंगली जानवरों को भी कोई रोक सका है
? किन्तु ट्रैकर भी हठीले भैंसे की तरह अपने अरमानों को पूरा
करने के लिए निरंतर जोखिम उठाते रहते हैं । डरावनी बात आते- आते कई बार अन्दर ही
ठहर गई, परन्तु मैं हार नहीं माना । मैंने गाइड से पूछ ही लिया, " यदि रात में टाइगर आ जाए तो ?"
मेरे चेहरे के डर को देखकर
गाइड हँसा, फिर बोला,
"सर ! आपका टैंट टाइगर की बस्ती से
कुछ ही दूरी पर लगा है। टैंट के बाहर खड़े होने से टाइगर
दिख जाता है,परन्तु शरारती नटखट बच्चे की तरह थोड़ा डराकर
खुद- बखुद अपने रास्ते चला जाता है। सिक्किम में किसी ने
उसे शत्रु नहीं माना ।
रात भर मैं सो नहीं पाया, बेशुमार आशंकाए उठती रहीं । कहीं टाइगर वाकई न आ जाए। ठिठुरन भरी हवा से रह रहकर
सिहर उठता। शरीर में थकावट से ताकत नहीं बची, चाँद अपनी
जगह टिका है, सूर्य कब दिखलाई
देगा, पेड़ काले- काले होकर घिरे
खड़े हैं। मैं टैंट में ही बीच बीच में टॉर्च का बटन दबा
देता हूँ । तभी बराबर वाले टैंट से बातचीत सुनाई दी, मैंने टॉर्च स्थायी रूप से बुझा दी। स्लीपिंग
बैग से निकलकर संजीव वर्मा ने कहा, ‘‘सवेरा हो गया भाई साहब! "
थोड़ी देर में चाय आ गई।
चाय की चुस्की लेते हुए मैं बोला, " सचेन का डर बड़ा था ,हमेशा याद रहेगा ।
नींद मुकरे
जब डर को खोंसे
रात उतरे ।
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