प्रेम
भीकम सिंह
1
प्यार में कुछ
टूटके गिरे लम्हें
कुछ ढूह-से
टिके रहे अधूरे
टीस-से
भरे -पूरे ।
2
लेकर खड़ा
टूटे वादों के निशाँ
सदी से प्रेम,
अपने ही भीतर
देखें खुरचकर।
3
प्यार से कभी
मन नहीं भरता
अधूरापन
अंतर्लाप करता
ज्यों तहों में उठता ।
4
दबा-कुचला
प्यार महक उठा
गूँजा तराना
जब भी कभी खुला
बक्सा कोई पुराना।
-0-
3 टिप्पणियां:
वाह! गाँव की ख़ुशबू से हट कर प्रेम की ख़ुशबू में पगे सुंदर ताँका। हार्दिक बधाई सुदर्शन रत्नाकर
इस बार बहुत अलग मिजाज़ के ताँका। प्यार से परिपूर्ण सुन्दर लेखन के लिए हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी.
सुंदर ताॅंका... उत्कृष्ट सृजन सर 🌹🙏😊
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