शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

अँगना आया कौन !



सुदर्शन रत्नाकर
1
बहाती रही
निरन्तर रजनी
ओस के आँसू
पर मिल न पाई
प्रियतम सूर्य से ।
2
कुहासा हटा
 बही  फागुनी हवा
खिले हैं फूल
पिक ने तोड़ा मौन
अँगना आया कौन !
3
झंकृत हुए
मन-वीणा के तार
बही जो हवा
मुस्कुराई वीथिका
खिले फूल पलाश ।
-0-

बाल क्रीडा



शशि पाधा
       
 उसे चटाई पर बिठाया था मैंने। अभीअभी बैठना सीखा था उसने । खिड़की के बाहर एक पेड़ था । पेड़ की पत्तियों से छनकर धूप चटाई  पर पड़ रही थी । वो धूप को छूने लगा,अपनी नन्ही-नन्ही अँगुलियों से पकड़ने लगा । पत्तियों की छाया के साथ धूप चटाई पर अनेक चित्र बना रही थी ।कभी बेल बूटे,कभी तितलियाँ और कभी पंछी । वो उन आकारों को देखकर कभी तो किलकारियाँ भर रहा था और कभी उन्हें अपनी छोटीछोटी मुट्ठियों में कैद करने का प्रयत्न कर रहा था । मेरे सामहीने के पोते शिव और धूप के बीच होती इस बाल क्रीडा ने मेरा मन मोह लिया।आप ही बताएँ कि क्या इस से भी मोहक कोई और दृश्य हो सकता है ?
1
मुट्ठी में बाँधे
धूप की तितलियाँ
अबोध शिशु ।
2
 हाथों से छुए
 धूप -परछाइयाँ
 उड़ते पंछी ।
-0-

बुधवार, 28 जनवरी 2015

असंख्य शुभकामनाएँ !



हमारे लिए यह बहुत खुशी का विषय है कि त्रिवेणी और हिन्दी हाइकु से जुड़े हमारे दो साथियों -शशि पाधा और हरकीरत हीरको केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय  ने 16 जनवरी 2015  को एक एक लाख रुपये का हिन्दीतर  भाषी हिन्दी लेखक पुरस्कार पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया है ।
हिन्दी हाइकु और त्रिवेणी परिवार की ओर से  आप दोनों को  असंख्य शुभकामनाएँ !
सम्पादक द्वय

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हिन्दीतर  भाषी हिन्दी लेखक पुरस्कार -2012 शशि पाधा को 


और
हिन्दीतर  भाषी हिन्दी लेखक पुरस्कार -2013 हरकीरत हीर






शनिवार, 24 जनवरी 2015

माँ स्वरात्मिके !



ज्योत्स्ना प्रदीप

माँ स्वरात्मिके !
हे बोधस्वरूपिणी !
तेरा ही नाद ,
बिन्दु से ब्रह्माण्ड में।
पाता आह्लाद,
कण भी संगीत से ,
सुर -ताल को -
बाँधतीं हो गीत से।
अधिष्ठात्री हो
विद्या ,ज्ञान बुद्धि की
आत्म -शुद्धि की ,
तुम ही माँ धात्री हो।
ढाल देती हो
शोक को भी श्लोक में ,
तेरे ही स्वर
गूँजें हर लोक में।
ये उपनिषद्  ,
वेद और पुराण
तेरी ही गति
तेरे ही देह -प्राण।
करो उच्छेद
सम्पूर्ण अज्ञान का
रहे न भेद
जाति ,धर्म नाम का
हे महावाणी !
जुग कुटुम्ब बने
ऐसा वर दो
पुण्य -ज्योति भर दो ,
रवि - मन कर दो।
-0-