मंगलवार, 30 जुलाई 2024

1187

 

सुदर्शन रत्नाकर

1


हरियाली है छाई

सावन आते ही

यादों की रुत आई।

2

जब मेघ बरसता है

मन साँवरिया से

मिलने को करता है।

3

बूँदें जब गिरती हैं

प्यास बुझाने को

आकुल हो फिरती हैं।

4

लो सावन आया है

बिन माँगे ही वो

सौग़ातें लाया है।

5

सावन तो आया है

मेघ नहीं बरसे

जीवन मुरझाया है।

6

नभ में मेघा छाए

नाचे मन हर पल

तुम जो अँगना आए।

7

नभ में बदली छाई

सूरज तो रूठा

पर धरती मुस्काई

8

बूँदें जब गिरती हैं

प्यास बुझाने को

धरती से मिलती हैं।

9

लो बादल बरसे हैं

धरती भीग गई

सबके मन सरसे हैं।

10

लो पानी बरसा है

मैं तो भीग गई

मन भी यह तरसा है॥

11

सावन के झूले हैं

वादा मिलने का

हम कैसे भूले हैं।

12

मोती-सी चमकी हैं

बारिश की बूँदें

फूलों पर चमकी हैं

13

हरियाली छाई है

धरती महक गई

सावन रितु आई है।

14

रितु सावन की आई

तुझसे मिलने की

ये मनभावन आई।

-0-

सुदर्शन रत्नाकर ई-29, नेहरू ग्राउंड,फ़रीदाबाद 121001

शनिवार, 27 जुलाई 2024

1186

 

हाइबन

सत्या शर्मा कीर्ति

1-नहाई भोर

 


लगभग आधी रात से बारिश हो रही थी, लेकिन जब मैं मॉर्निंग वॉक को निकली तब तक आसमान साफ हो चुका था और बहुत ही शीतल हवा मेरे संग- संग ही प्रभात फेरा लगा रही थी। पूरी प्रकृति  स्वच्छ और पवित्र लग रही थी। सामने ही पहाड़ों के पीछे से दुधमुँहा भोर अँगड़ाई ले  झाँक- झाँककर मुझे देख रहा था।

मुझे उसकी यह शरारत बड़ी अच्छी लगीं और मैं उसे जल्दी से आने का न्योता दे अपने घर की ओर लौट चली , ताकि उसके आने के पहले अपने दरवाजे पर अल्पना बना सकूँ।

1

प्रकृति करे

मन भर शृंगार

वर्षा के दिन।

2

नन्हा सूरज

पहन पीला कोट

ओट से झाँके।

-0-

2-खुशबू



 मैं पिछले कई दिनों से  देख रही थी कुछ कलियाँ जो धीरे-धीरे  फूल बनाने की प्रक्रिया से गुजर रहीं थीं , वे सभी आज अलसुबह अपनी यात्रा पूरी कर क्यारियों में  खिलकर महक रहीं थीं।

पर अभी भी कुछ कलियाँ ऐसी थीं , जो खुद में ही सिमटी हुई  थीं, जैसे कोई जल्दी नहीं या खुद में आत्मविश्वास ही नहीं कि खिल भी पाऊँगी। मुझे उन्हें देख उन अनाथ बच्चों का ख्याल आया गया , जो ऐसे ही मुरझा जाते हैं , बिना खिले, बिना महके , बिना जि

      मैंने धीरे से उन फूलों को छुआ और उससे आत्मविश्वास ले आसमान में उछाल दिया, ताकि इसकी खुशबू उन बच्चों के हृदय को भी छू सके और वो इन फूलों जैसे ही खिलकर महकने लगें।

1
आओ रोप दें

आत्मविश्वास का बीज 

बाल मन में ।

-0-
3-कभी देर नहीं होती

 

आज आँख कुछ देर से खुली थी । मन कुछ उदास होने लगा, क्योंकि सुबह की ठंडी सुंगधित हवा लौट गई थी। सूरज की नन्ही किरणें यौवन की ओढ़नी ओढ़ इतरा रही थीं। माली भी शायद पौधों को नहला-धुलाकर जा चुका था।  उदास मन मैं अपनी बालकनी में जाकर बैठ गई। नन्ही चिड़िया जो रेलिंग पर चुपचाप बैठी थी, मुझे देख दाना चुगने लगी यह वही चिड़िया थी, जो अलसुबह भोर का राग गाकर मुझे जगाती थी ।

उसने मेरी ओर मुस्कुराकर यूँ देखा और जैसे  कह रही हो- ‘‘जीवन में कभी भी देर नहीं होती । बस एक नई शुरुआत  की चाह होनी चाहिए , नहीं तो न जाने कितने शुभ मुहूर्त, कितनी शुभ घड़ी रोज आती -जाती रहती है ,पर सब कुछ वैसा ही रहता है, कुछ नहीं बदलता है ।

किंतु हमारा एक मजबूत इरादा, हमारी आन्तरिक चाह किसी भी क्षण को एक विशेष मुहूर्त में बदल सकती है। तुम उदास होने की जगह ईश्वर को धन्यवाद दो कि उन्होंने तुम्हें एक दिन और दिया जिससे तुम एक नई शुरुआत कर सकती हो।’’ उसकी आँखों की भाषा मेरी आँखों को छू ग। मेरे अंदर की उदासी उस नन्ही चिड़िया ने जैसे पी ली और मैंने भी उसके चहकते ही उसके लिए कुछ और दाने बिखेर दी।

1
दृढ़ संकल्प

बने शुभ मुहूर्त

हरेक पल।

-0-

मंगलवार, 16 जुलाई 2024

1185

 

कृष्णा वर्मा 

1

साँसों को सेंक दिला 

हौके भर-भरके 

अंतर्मन बरफ़ हुआ। 

2

सपनों ने विष घोला 

तारी जगराते 

दिल ने जब दुख खोला।

3

नज़रों से नज़र मिली 

तिरछी चितवन ने 

सारी सुध-बुध हर ली।

4

चौमुख तेरा फेरा

खाली काग़ज़ पर 

जब नाम लिखा तेरा।

5

मुख पर सुख की लाली

नैन कमंडल तो 

अब भी ख़ाली-ख़ाली। 

6

दिल में सुलगें यादें 

आँसू सूखें ना

जब याद करूँ वादे। 

7

किसने भड़काया है

परखे बिन तूने

हमको बिसराया है। 

8

आसान नहीं जीना 

झूठा मुसकाके 

पीड़ाओं को पीना। 

9

चैती जब गाती है 

दिल के चोरों को 

रुत जमके भाती है। 

10

आमों पे बौर पड़े 

याद डसे तेरी

दिल हो टुकड़े-टुकड़े।

11

आँखों में रात गई 

मन में तुम घुमड़े 

जब-जब बरसात हुई। 

-0-

बुधवार, 10 जुलाई 2024

1184

खेल

रश्मि विभा त्रिपाठी

छुपाछुपी का



खेल बड़ा सुन्दर 
आसमान में
था चला रातभर 
चहककर
बादल ने बाँध दी
सफ़ेद पट्टी
चाँद की आँखों पर
फिर भागा वो
ढूँढो तो’ कहकर 
तारों ने दी ख़बर।

-0-

माहिया- रश्मि विभा त्रिपाठी
1
हम इतना ही चाहें!
हाथ गहे रखना
पथरीली हैं राहें।
2
गंगा का है पानी!
बेटी की जग ने
पर कदर नहीं जानी।
3
कितने छाले पग में
ढूँढे से न मिली
भलमनसाहत जग में।
4
बेमतलब जतन हुआ
अब तो सारा ही,
रिश्तों का पतन हुआ।
5
अपनेपन का किस्सा
अब तो ख़त्म हुआ
बस माँगें सब हिस्सा।
6
है मेल- मिलाप कहाँ
पहले- सा जग में,
हर मन में पाप यहाँ।
7
सबने बस खेल रचा
माही- बालो सा
अब ना वो मेल बचा।
8
अब वो सुर- ताल नहीं
दुनिया में अब वो
सोनी- महिवाल नहीं।
9
जग में है आज नई
रीत कपट की ही
रिश्तों की लाज गई।
10
कब प्रीत निभाते हैं?
एक दिखावे की
सब रीत निभाते हैं।
11
अपनों का दोष नहीं
खेल नियति के सब
करना तुम रोष नहीं।
12
बातों में उलझाते
रिश्ते जीवन की
उलझन कब सुलझाते?
13
रिश्ता ये साँचा है
मौन अधर का भी
तुमने तो बाँचा है।
14
आए थे मोड़ नए
बीच डगर हमको
फिर साथी छोड़ गए।
15
कैसा दिन- रात गिला?
राम तलक को भी
जग में वनवास मिला!
16
मैं तो तेरी राधा!
अपने पथ की तू
ना समझ मुझे बाधा।
17
ना कशिश रही दिल में
दुनिया सिमट गई
अब तो मोबाइल में!
18
जो भी कुछ भरम रहा
टूटा पलभर में,
रिश्तों का करम रहा।
19
तोड़ा नाता सबसे
हर कोई अब तो
मिलता है मतलब से।
20
क्या जादू छाया है!
कल जो अपना था
वो आज पराया है।
21
उसके हर दावे का
सच था बस ये ही
था प्यार दिखावे का।
22
तुममें जौलानी है
तो फिर सच मानो
पत्थर भी पानी है।
23
पग- पग पर खतरे हैं
पर सय्यादों ने
बुलबुल के कतरे हैं।
24
बेड़ी में जकड़ गए
कैसी किस्मत थी
मिलते ही बिछड़ गए।
25
कोयलिया कूक उठी
जाने क्यूँ उस पल
जियरा में हूक उठी।
26
कब साथ निभाते हैं
कहने भर के ही
सब रिश्ते- नाते हैं!
27
दिन कितने हैं बीते
अब तो आ जाओ
मैं हारी, तुम जीते।
28
ये अजब कहानी है
रिश्तों में अब तो
बस खींचा- तानी है।
29
ये दिल का लग जाना!
शम्मा से पूछो
क्यों जलता परवाना?
30
है कौन ख़ुदा जाने!
जिसने बदल दिए
अब चाहत के माने।

-0- जौलानी