बुधवार, 27 अप्रैल 2016

699


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
1
बनकर पंछी चहका
सूरज की आहट
कलियों का मन महका ।
2
कितना बेहाल करे
तड़की मन धरणी
नैनों के ताल भरे ।
3
आए हो ,रुक जाओ
ओ बादल ! प्यासी-
धरती पर झुक जाओ ।
4
अब क्या फ़रियाद करें ?
पल भर भूलें हों
तो तुमको याद करें ।
5
कैसे दुख ने घेरा
जागी आँखों से
मुँह सपनों ने फेरा ।
6
आदत तड़पाने की
आते ही बातें
करते हो जाने की ।
7
सोचा दिन-रात करूँ
आओ तो, तुमको
देखूँ या बात करूँ ।
8
हैं घड़ियाँ मुश्किल की
लाख छुपाया था
जग जान गया दिल की ।
9
मुझको परवाह नहीं
बस उन अधरों पे
आने दूँ आह नहीं ।
10
ख़ुशियों का डेरा है
वैरी जग सारा
कोई तो मेरा है ।
11
शूलों में फूल खिले
महके , मुस्काए
हर गम को भूल मिले ।
12
देकर रूमाल गए
नैना परदेसी
जादू -सा डाल गए ।

-0-

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

698

कमला घटाऔरा

अग्नि ही अग्नि
फैली है चहुँ ओर
नहीं बचाव
फटते बम  कहीं
घरों  में गैस
क्रुद्ध प्रकृति सारी
सूखा अकाल
खड़ा है द्वार- द्वार
व्याकुल जन
नफरत की जंग
कब हो कम
शून्य हुए मस्तिष्क
सुझाव व्यर्थ
माने न कहीं कोई
दुश्मनी पौन
बढ़ाए और इसे
कौन बुझाए
बदला और क्रोध
बिछाए शोले
कर्ज तले हैं दबे
अन्न उगाता
करने को विवश
खुदकुशियाँ
लूटे धन देश का
धन कुबेर
मर रहे भूख से
पशु औ' जन
पानी बिन जीवन
नरक तुल्य
फटा उर धरा का
कैसे हो खेती
वर्षो,हे इन्द्रदेव !
करो किरपा
पीर हरो जल से
उतरो अब नभ से।

-0-

सोमवार, 18 अप्रैल 2016

697

डॉ हरदीप कौर सन्धु 

1 . 
ये मधुर मुलाकातें 
गूँगी ख़ामोशी 
करती जीभर बातें। 
2 . 
टूटी मन की पायल 
ख़ामोश निगाहें 
हर इक दिल है घायल। 
3 . 
चन्दा छुपके रोता 
यादों का साया 
जब इस दिल पर होता। 
4 .
ये घोर उदासी है 
आँसू पीकरके 
रूहें फिर प्यासी हैं। 
5. 
प्यार सभी द्वार मिले 
आज दुआ मेरी 
प्रभु चैन करार मिले। 

(महिया -संग्रह = पीर भरा दरिया )


गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

696

कृष्णा वर्मा
 1
सिंदूरी गगन हुआ
तड़के किरणों ने
अम्बर का भाल छुआ।
2
 कैसा जादू डाला
पल भर में खोया
वो दिल भोला भाला।
 3 
मन रेगिस्तान हुआ
मेरे अपनों ने
जब से प्रस्थान किया।
 4
 किस्मत के घट फूटे
जब-जब जीवन में
अपने हमसे छूटे।
  5
ना मौन कभी बोले
फिर भी जियरा के
गोपन सारे खोले।
 -0-


मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

695

सदमा   
 कमला घटाऔरा 

उनके चेहरे की रौनक चुपी और उदासी के पर्दे में चली गयी थी। अब तक उनकी जीवन नदी सीधे स्पाट मैदानसे गुजर रही थी।  इर्द गिर्द को हरा भरा करती अपना स्नेह लुटती रही । शांत और धार्मिक प्रवृति का उनका स्वभाव एक नूर से घिरा रहता। उनके दर्शन मात्र से ही मन में ज्ञान प्रवेश करने लगता। वे सदा ही अपने बड़ों के आदर मान और उनकी आज्ञाकारिता में जुड़े रहे। उनकी साथिन उन्हें टोकती। किसी का भी आँख मूँद विश्वास करना सही नहीं है। वे तुम्हें बुद्धू बना कर तुम पर अपने काम का बोझ डाल देते हैं। उनका  एक ही उत्तर होता, क्या हुआ ? काम से जी नहीं चुराना चाहिए। नफा उन्हें हुआ या हमें परिवार तो एक ही है। उन्होंनें बहस करना सीखा ही नहीं था। आज्ञाकारी बालक बन कर ही सारा जीवन गुज़ारा। अपने भाई का लक्ष्मण बन कर । किसी की बुराई सुनना और करना उन्हें कभी स्वीकार्य नही था। उन्हें कभी नहीं लगा वे एक तरह की ग़ुलामी में जकड़े जी रहें हैं। एक दिन उनके अलग होने का भी समय आ गया। अपने उन बड़ों से अलग हो कर उन्हें लगा वे कितने अकेले पड़  गए हैं। रात दिन का साथ छूट गया। इस पीड़ा को वे मन ही मन पी गए। उन का हँसना बोलना भी कम होगया। रिटायरमेंट के बाद वैसे भी लगता है करने को कुछ बचा ही नहीं। उस पर अगर कोई ऐसा सदमा लग जाये जिससे उदासी के सागर को पार करना जटिल होता है तो जीना और मुहाल हो जाता है । ऐसा ही हुआ। उनके अपने अति प्रियजन के दुनिया से जाने का दुःख उन्हें और अधमरा सा कर गया। अब वे और भी अपने से भागने लगे। किसी से मिलने जुलने से बचने के लिए अपने को कमरे में बंध करके बैठे रहते। ऐसे सदमे से लोग अक्सर डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं । ऐसा सुना था। अब सामने दिख रहा है। कोई उनसे राजी ख़ुशी पूछता तो घर वाले ही उत्तर देते। उन्हें प्रश्नों की चोट से बचाने के लिए कहीं वे और जख्मी न हों । अपने मन को उन्होंने स्वयं ही एक अँधेरी गुफा में कैद कर लिया। मौत का गम किस इंसान को नहीं  सहना पड़ता यह जानते हुए भी  उनका मन उस कोमल फूल  का सा हो गया  जिसे कोई खाद पानी देना भूल गया हो। और वह असमय ही मुरझाने लगे। इस शाश्वत सत्य को जानते हुए भी कि इस दुखों के संसार  को न मर्जी से  छोड़ा जा सकता है न ही अपनी मर्जी से जिया जा सकता है। न जाने वाला कोई वापस ही आ सकता है। इसे ही तो आवागमन कहते हैं। ढांढस देने केलिए कितनी सहजता से हम यह बात कह देते हैं। लेकिन जिसने यह दर्द अपने सीने से लगा लिया वह कैसे उस दु:ख से बाहर आ सकता है? कहना कितना सरल है -

टूटा सितारा 
कब लौटा आकाश 
मृत्यु अटल।