कमला घटाऔरा
अग्नि ही अग्नि
फैली है चहुँ ओर
नहीं बचाव
फटते बम कहीं
घरों में गैस
क्रुद्ध प्रकृति सारी
सूखा अकाल
खड़ा है द्वार- द्वार
व्याकुल जन
नफरत की जंग
कब हो कम
शून्य हुए मस्तिष्क
सुझाव व्यर्थ
माने न कहीं कोई
दुश्मनी पौन
बढ़ाए और इसे
कौन बुझाए
बदला और क्रोध
बिछाए शोले
कर्ज तले हैं दबे
अन्न उगाता
करने को विवश
खुदकुशियाँ
लूटे धन देश का
धन कुबेर
मर रहे भूख से
पशु औ' जन
पानी बिन जीवन
नरक तुल्य
फटा उर धरा का
कैसे हो खेती
वर्षो,हे इन्द्रदेव !
करो किरपा
पीर हरो जल से
उतरो अब नभ से।
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13 टिप्पणियां:
आज की विषम परिस्िथतियों को उजागरकरता मार्मिक चोका।
बहुत मार्मिक चोका । हार्दिक बधाई।
bahut sunder va satya likha hai - agni hi agni faili hai chahun or,karj tale dabe hain annadata . kmla ji badhai .
pushpa mehra
sunder chonka bahut bahut badhai
rachana
सब से पहले मैं आभार व्यक्त करती हूँ सम्पादक द्वय का जिन्होंने मेरी रचना को यहाँ स्थान देकर मुझे प्रोत्साहित किया । सुदर्शन जी ,सीमा जी, पुष्पा जी एवं रचना जी आप सब की उत्साह वर्धक टिप्पणी के लिये धन्यबाद । देश में दिनप्रति दिन जन जीवन की गिरती हालत बहुत मार्मिक हो गई है । विधना को पता नहीं क्या मंजूर है ।गरीबों की वह अब सुनता ही नहीं । उस के प्रति एक प्रार्थना के रूप में यह सब लिखा है ।
कमला जी आज सभी जगह जो स्तिथि है ,प्रकृति का प्रकोप है उस को आपने अपने चोके में ख़ूबसूरती से अभिव्यक्त किया है ।हार्दिक बधाई ।
प्रदूषण और उसकी भयावहता की ओर इंगित करता सुंदर ,सारगर्भित चोका ...हार्दिक बधाई !
कमला जी आज की परिस्थितियों पर उत्तम चोका, वाह!!
वर्तमान परिस्थिति को उजागर करने में पूर्णतः सफल चोका...बधाई कमला जी !
बहुत मर्मस्पर्शी सदोका ।बधाई कमला जी ।
कमला जी आज की परिस्थितियों पर मर्मस्पर्शी चोका..इस सत्य व सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए शुभकामनायें !!
marmsparshi choka meri badhai...der se hi sahi.. :)
बहुत खूबसूरत और सार्थक चोका...| हार्दिक बधाई...|
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