रविवार, 28 अप्रैल 2024

1176

 माहिया- रश्मि विभा त्रिपाठी


1

क्या कहर नहीं ढाती

धूप जुदाई की

हरदम ही झुलसाती।

2

तेरा ही ख़्वाब मुझे

दिखता रातों को

मेरा महताब मुझे।

3

ख़्वाबों में हम चलते

तुम तक जा पहुँचें

दिन के ढलते- ढलते।

4

होता न अज़ाब कभी

खुशियों के मानी

हैं तेरे ख़्वाब सभी।

5

दिल की तुम हसरत हो

कैसे छोड़ूँ मैं

तुम मेरी आदत हो।

6

हम फर्ज़ अदा करते

रोज मुहब्बत का

तेरा सजदा करते।

7

पलकें ये हैं भारी

अब तो आने को

कर लो तुम तैयारी।

8

विश्वास अगर होगा

इक दूजे के प्रति

तो प्यार अमर होगा।

9

दिल आज कुशादा है

तुमपे यकीं मुझे

खुद से भी ज़्यादा है।

10

जाने क्या कर जाएँ?

तुमसे बिछड़े तो

शायद हम मर जाएँ।

11

सबकुछ अब पाया है

तेरी सूरत में 

मैंने रब पाया है!

12

सबकुछ फ़ानी होगा

प्यार मगर मेरा

जावेदानी होगा।

13

अरमाँ मचले दिल में

जब आकर बैठे

तुम मेरी महफिल में।

14

वो आन मिला मुझको

मेरी किस्मत से

ना गम न गिला मुझको।

15

खुशबू इक भीनी है

तेरी चाहत ये

कितनी शीरीनी है।

16

दीदा- ए- पुर- नम है

तू जो साथ नहीं

बस ये ही इक गम है।

17

कब वो रह पाया है

मुझसे दूर कहीं

मेरा हमसाया है।

18

अवसाद घना हर लो

अपनी बाहों में

तुम अब मुझको भर लो।

19

मन कितना निश्छल है

तुमको पाना तो

पुण्यों का ही फल है।

20

इक पाक भरोसा है

मेरे माथे पर

तेरा जो बोसा है।

21

है सफ़र अधूरा ये

साथ चलोगे तुम

तब होगा पूरा ये।

22

मत वक्त गँवाओ तुम

जीवन दो दिन का 

अब आ भी जाओ तुम।

23

जब तुमको ना पाऊँ

कितनी मुश्किल से

मैं दिल को समझाऊँ।

24

क्या और कहें ज़्यादा 

ये ही कहते हैं-

ना तोड़ेंगे वादा।

25

बेशक कह ना पाएँ 

तेरे बिन लेकिन 

हम तो रह ना पाएँ।

26

तुमसे इक बार मिले

तन- मन महक उठा

ज्यों हरसिंगार खिले।

27

उनसे इकरार हुआ 

आज क़बूल हुई

मेरी हर एक दुआ।

28

शोलों से क्या डरना

प्यार तुम्हारा ये

इक मीठा- सा झरना।

मंगलवार, 16 अप्रैल 2024

1175

 रश्मि विभा त्रिपाठी



1
अब ना वो मेल रहा
जिसको देखो वो
अब दिल से खेल रहा।
2
राहें आसान नहीं
हार मगर माने
वो तो इंसान नहीं।
3
माँ मेरा सरमाया
मैं हूँ धूप कड़ी
वो एक घना साया।
4
आँखों में सच्चाई
बस इसकी मैंने
हर बार सजा पाई।
5
कैसा ये आलम है
रिश्ते टूट रहे
तन्हाई का गम है।
6
इंसान हकीकत में
वो ही होता जो
दे संग मुसीबत में।
7
मेला पल-छिन का है
हँस लो, गा लो तुम
जीवन दो दिन का है।
8
क्या बात हुई जाने
मेरे अपने ही
बन बैठे बेगाने।
9
दिन जो भी पीहर के
जी लेती बेटी
उनमें ही जीभर के।
10
आती खुशबू प्यारी
जब- जब मैं खोलूँ
यादों की अलमारी।
11
ना दुख मन में पालो
बीती बातों पे
अब तुम मिट्टी डालो।
12
कैसे हालात हुए
अरसा बीत गया
अपनों से बात हुए।
13
दुर्दिन जब आते हैं
कौन हमारा है
हमको दिखलाते हैं।
14
कैसा अभिमान भला
इंसाँ है जग में
माटी का इक पुतला।
15

कैसे दिन आए हैं
अपना ना कोई
अपने बस साए हैं।
16
दो दिन का मेल नहीं
प्यार निभा पाना
बच्चों का खेल नहीं।
17
ना देख वसीयत को
तू बूढ़ी माँ की
बस देख तबीयत को।
18
आती है रोज सबा
मुझसे ये कहने
ज़िंदा रखना जज़्बा।
19
जो उसका दावा था
साथ निभाने का
वो एक छलावा था।
20
इन सारे रिश्तों में
हर पल दर्द मिला
हमको तो किश्तों में।
21
आँधी के तिनके थे?
जाने किधर गए
जो दिन बचपन के थे।
22
अब तो वो गाँव मिले
मेरे सपनों का
चल- चलके पाँव छिले।
23
सब बंद झरोखे हैं
घर- बाहर देखो
धोखे ही धोखे हैं।
24
माटी के घर कच्चे
और न दिखते हैं
इंसाँ मन के सच्चे।
25
गर्मी की धूप हुए
रिश्ते- नाते तो
कैसे विद्रूप हुए।
26
राहों में शूल रहे
पर ना मुरझाए
हम तो बनफूल रहे।
27
किस्मत का खेल रहा
चार घड़ी को ही
अपना ये मेल रहा।
28
ऐसा क्या बैर हुआ
मेरा अपना ही
जाने क्यों गैर हुआ।
29
वो सारे लोग भले
क्या जाने अब तो
जाने किस ओर चले।
30
कैसा दस्तूर रहा
दिल में जो बसता
नजरों से दूर रहा।
31
तपते अंगारे हैं
जीवन के रस्ते
ऐसे ही सारे हैं।
32
तेरे ही बारे में
सोचूँ, जब देखूँ
ये टूटे तारे मैं।
33
जब तक तुम संग रहे
मेरे जीवन में
तब तक ही रंग रहे।
34
आँखों में पानी है
अपनों से पाई
ये खास निशानी है।
35
आँखों में एक नमी
मुझको खलती है
तेरी हर बार कमी।
36

बिखरे बेशक छल से
आख़िर निकले तो
रिश्तों के दलदल से।

37
हर कोई कोसे है
अब तो हर रिश्ता
भगवान भरोसे है।
38
कैसा ये मंज़र है
लोग गले मिलते
हाथों में ख़ंजर है।
39
अब तक ना लौटा वो
शायद पहने हो
क्या पता मुखौटा वो।

-0-

रविवार, 14 अप्रैल 2024

1174

 

1-भीकम सिंह

 


1

हवा थी नहीं 

घुटा घूमता मेघ 

चुआ ही नहीं 

खेत के बुरे दिन 

फिर हुए कि नहीं ।

2

डर के मारे

सिकुड़- सिमटके

बैठ गए हैं 

होके मटियामेट 

गाँवों में अब खेत।

3

लाड़ लड़ाता

खेतों का चौड़ा सीना 

सम्हाले हल ।

रोज ठोकर खाता 

हारता पल - पल। 

4

मैली चूड़ियाँ

साँवली कलाई में 

कुछ तो कहो

श्रमिक महिलाओ!

स्वेद की सफाई में ।

5

कल थे खेत 

प्यारी - प्यारी क्यारियाँ

खो ग सब

ढूँढें किस गाँव में 

फेरी लगाके अब ।

-0-

2- रश्मि विभा त्रिपाठी


1
जब भी मैं पाती हूँ
ख़्वाबों में तुमको
फूली न समाती हूँ।
2
माथे पे आई जो
तुमने बोसे से
हर शिकन मिटाई वो।
3
मिलने को वो आया
था मालूम मुझे
होगी न हुड़क ज़ाया।
4
ये मन बेहाल हुआ
तुम बिन हर दिन अब
जैसे इक साल हुआ।
5
अपना सुख- दुख साँझा
हीर तुम्हारी मैं
तुम मेरे हो राँझा।

6
करता शुकराना दिल
तुमने समझा जो
मुझको अपने क़ाबिल।
7
दिल का ये हाल रहा
हर पल, हर लम्हा
तेरा ही ख़्याल रहा।
8
ख्वाबों में तुम आए
मैं जब सोई तो
जागी किस्मत, हाए।
9
मंदिर, दरगाहों पे
माँगा, हो न कभी
वो दूर निगाहों से।
10
हाँ सच है यह किस्सा
अब तुम हो मेरे
इस जीवन का हिस्सा।
11
तुम ही वो शख़्स रहे
मेरे इस दिल पे
हैं जिसके नक़्श रहे।
12
तुमसे ना बात हुई
दिन बेकार गया
औ काली रात हुई।
13
पहचान मुहब्बत की-
रूह हमारी है
इक- दूजे में अटकी।
14
वो पल भूले- बिसरे
कागज पे लिक्खूँ
मैं तेरे ही मिसरे।
15
मिटती हर पीर पिया
तुममें है ही कुछ
ऐसी तासीर पिया।
16
मंदिर क्यों जाना है
प्यार फ़कत पूजा
हमने यह माना है।
17
आएँगे आज पिया
यों उम्मीदों का
जलता हर रोज दिया।
18
महबूब बिना क्या है
चूड़ी, पायलिया
सिंदूर, हिना क्या है?
19
थोड़ा सुनते जाना
मेरे किस्से में
तेरा है अफ़साना।
20
कुछ और न मन में है
ख़्याल तुम्हारा ही
हर वक्त ज़हन में है।


बुधवार, 10 अप्रैल 2024

1173-ताँका

 ताँका के तीर/ नीलमेन्दु सागर

1

चुनावी दौर

हवाई घुड़दौड़

खेल कमाल

विक्रम खस्ताहाल

कंधों पर बेताल।

2

दिखता हरा

सावन के अंधों को

सारा सहरा

लोक हुआ कबाड़

तंत्र देता पहरा।

3

बाँग ही बाँग

सियासत की धुंध

मुर्गे या मुल्ले

मुश्किल पहचान

साँसत में बिहान।

4

बिना बादल

वर्षा है धुआँधार

झूठ साकार

नए-नए टोटके

खेत रहे पटते।

5

प्यास की आग

बुझाए कौन गांधी

प्रश्न है बड़ा

आश्वासन से भरा

छिद्रयुक्त है घड़ा।

-0-

नीलमेन्दु सागर,हनुमाननगर (पटना),

-0-

 

2-कपिल कुमार

 1.

बचा ही क्या था

बस काँटे-ही-काँटे

गुलाब खिलें

ज्यों ही साथ बैठके

तुमने दुःख बाँटें। 

2.

मेरी तरह

दोपहरी में तपे

एक आस में

प्रिय की तलाश में! 

दहकते पलाश। 

-0-



सोमवार, 8 अप्रैल 2024

1172-नैनों से नीर बहा

 

-डॉ. जेन्नी शबनम



1

नैनों से नीर बहा

किसने कब जाना

कितना है दर्द सहा।

2

मन है रूखा-रूखा

यों लगता मानो

सागर हो ज्यों सूखा।

3

दुनिया खेल दिखाती

माया रचकरके

सुख-दुख से बहलाती।

4

चल-चलके घबराए

धार समय की ये

किधर बहा ले जाए।

5

मैं दुख की हूँ बदली

बूँद बनी बरसी

सुख पाने  को मचली

6

जीवन समझाता है

सुख-दुख है खेला

पर मन घबराता है।

7

कोई अपना होता

हर लेता पीड़ा

पूरा सपना होता।

8

फूलों का वर माँगा

माला बन जाऊँ

बस इतना भर माँगा।

9

तुम कुछ ना मान सके

मैं कितनी बिखरी

तुम कुछ ना जान सके।

10

कब-कब कितना खोई

क्या करना कहके

कब-कब कितना रोई।

11

जीवन में उलझन है

साँसें थम जाएँ

केवल इतना मन है।

12

जब वो पल आएगा

पूरे हों सपने

जीवन ढल जाएगा ।

13

चन्दा उतरा अँगना

मानो तुम आए

बाजे मोरा कँगना।

14

चाँद उतर आया है

मन यूँ मचल रहा

ज्यों पी घर आया है।

15

चमक रहा है दिनकर

दमको मुझ-सा तुम

मुस्काता है कहकर।

16

हरदम हँसते रहना

क्या पाया- खोया

जीवन जीकर कहना।

17

बदली जब-जब बरसे

आँखों का पानी

पी पाने को रसे।

18

अपने छल करते हैं

शिकवा क्या करना

हम हर पल मरते हैं।

19

करते वे मनमानी

कितना सहते हम

ढ़ी है बदनामी।

-0-

 2-रमेश कुमार सोनी



1

पेड़ काँपते

चश्मा बदले माली

बढ़ई हुआ मन

दिखे सर्वत्र

आरी,कुल्हाड़ी संग 

बाजार को सपने। 

2

गुलाब हँसे

कँटीली चौहद्दी में

सौंदर्य की सुरक्षा

महँगा बिके

कोठियों,मंदिरों में 

महक बिखेरते। 

3

भोर को चखा

तोते की चोंच लाल

भूख ज़िंदा ही रही

फड़फड़ाती 

घोंसलों की उड़ानें

दानों के गाँव तक। 

4

मेघ गरजे 

स्वप्न अँखुआएँगे

खेत नहाते थके

दूब झूमती

धरा हरिया गई

मन -मोर नाचते। 


5

साधु- से बैठे 

भोर-साँझ का रंग

अँगोछे में समेटे 

पहाड़ जैसे

सुख निखरा नहीं

दुःख उजाड़ा नहीं। 

 

6

भीगी हैं लटें

उड़ रहा दुपट्टा

वर्षा में भुट्टा खाना

स्मृति ताज़ा

सौंदर्य दमका है

मिट्टी की सुगंध-सा। 

7

पिंयरी ओढ़े

रेत ढूँढती पानी

मीलों यात्रा करती

नीला आकाश

देख-देख हँसता

मेघ नकचढ़ा है। 

8

गर्मी छुट्टियाँ

साँप-सीढ़ी का खेल

रोज मन ना भरे

पासा उछला

वक्त जीतता सदा

तेरे-मेरे बहाने। 

9

कर्फ़्यू की आग

चूल्हे डरने लगे

अनशन में घर

शहर बंद

भूख छिपी बैठी है

कोई हँस रहा है।

10

यात्री जागते

नींद की ट्रेन चली 

किस्से चढ़ते रहे

गाँव उतरे

गप्पें लड़ाते बीता

तेरा-मेरा सफ़र।

11

पाठक गुम

उदास हैं किताबें

'न्यूज़' शोक में गए

वाचनालय

आलमारियाँबन्द

अज्ञान फैल रहा। 

12

जेबों ने देखी

बाज़ारों की रंगीनी

झोली खाली हो गई

किसान- मन

पसीना जब बोते

सधवा- सी चहकी। 

13

मैके से लौटीं 

साड़ियाँ चहकी हैं

घर महक रहा

रिश्ते खनके

लाज बाहों में छिपी

प्यार बरस गया। 

-0-