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शनिवार, 4 अगस्त 2012

ये नयन हमारे


मुमताज टी-एच ख़ान
1  
द्वार पे खड़े
दर्शन को तरसें
ये नयन हमारे
भर के आँसू
सावन के मेघो -से
बरसें हैं  बेचारे ।
2
छोड़ लाडली
चले जो दूर हम
तड़प उठा मन
कुछ पल को
डगमगा गए थे
हमारे ये कदम ।
 3
नहीं हुआ था
कलेजे का टुकड़ा
दूर कभी हमसे
पीर थी ऐसी
छलकने लगे थे
हमारे दो नयन ।
   4
रुके पल को
खुद ही समझाया
बाते सभी फ़िज़ूल
जाना ज़रूर
कल बिदा हो उसे
हुमसे कहीं दूर ।
5
उजाड़ दिया
बहुतों का चमन
बना दिया श्मशान
धर्म के नाम
ले लिये दरिन्दो ने
बेकुसूरों के प्राण ।
6
सूनी सड़कें
बन्द पड़ी दुकानें
भूखा है मज़दूर
नेता है सुखी
फूँका गली -चौबारा
कर सबको दुखी ।
-0-     

रविवार, 22 अप्रैल 2012

कुछ मोती झरते


1- मुमताज टीएच खान
 1
मन को फाँ
तड़पाया जीवन
तीखी यादों ने
छटपटाए ऐसे
जल बिन मीन जैसे ।
2
मझधार में
फँसे जब भी नाव
न पतवार
न हो खेवनहार
प्रभु लगाए पार ।
-0-

2-संगीता स्वरूप 
1
घना सन्नाटा 
मौन की चादर  में 
दोनों लिपटे 
न तुम कुछ  बोले 
न मैं ही कुछ  बोली 
2
लब खुलते 
गिरह ढीली होती 
मन मिलते 
कुछ मोती झरते 
कुछ दंश हरते ।
3
गहन घन 
छँट जाते पल में ,
उजली रेखा 
भर देती  मन में 
अनुपम उल्लास ।
-0-

गुरुवार, 8 मार्च 2012

खूब प्यार ही प्यार


1-मुमताज टी-एच खान
1
सूखा या गीला
नीला हरा या पीला
साथ गुलाल
खूब प्यार ही प्यार
बरसे इस होली ।
2
है मानवता
तरस रही आज
खेलूँ मैं कब
गले सबको लगा
खूब प्यार की होली ?

3
पूछा हमने
मन के दर्पण से-
करीब किसे
मन में तूने पाया ?
अक्स आपका आया ।
-0-


2-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
बरसे रंग
गीला घर- आँगन
मन का कोना
भीड़ में भी अकेला
पी रहा सूनापन ।
2
सुबह-शाम
हो सुखों की बारिश
रंग हज़ार
हर्षित हो धरती
नगर और ग्राम ।
-0-

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

बन्द और खुली किताब

किताब चाहे बन्द हो या खुली, हमें बहुत कुछ कह जाती है । लेकिन हर एक के लिए ये अलग-अलग मायने रखती है ।
 कुछ दिन पहले मुमताज जी ने बन्द किताब को कुछ ऐसे पढ़ा ......
बन्द किताब -मुमताज (बरेली)
बन्द क़िताब
बरसों से यूँ पड़ी
खोलो न इसे
सिमट न पाएगी
भूली यादों की लड़ी
      *******
फिर रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी ने बन्द और खुली किताब को अपने ही अंदाज़ में पढ़कर हमें सुनाया .......
बन्द क़िताब -'हिमांशु'
1
बन्द क़िताब
कभी खोलो तो देखो
पाओगे तुम
नेह भरे झरने
सूरज की किरने ।
2
बन्द क़िताब
जब-जब भी खोली
पता ये चला-
पाया है बेहिसाब
चुकाया न कुछ भी ।
3
बन्द क़िताब
जो खुली अचानक
छलकी आँखें
हर पन्ना समेटे
सिर्फ़ तेरी कहानी ।
4
बन्द क़िताब
पन्ने जब पलटे-
शिकवे भरे
फ़िक्र रहा लापता
कोई जिये या मरे ।
5
बन्द क़िताब
बरसों बाद खुली
खुशबू उड़ी
हर शब्द से तेरी
मधुर छुअन की ।


6 .
बन्द किताब
कभी खोल जो पाते
पता चलता-
तुम रहे हमारे
जीवन से भी प्यारे

-0-
खुली किताब- हिमांशु
 1
खुली किताब
थी ज़िन्दगी तुम्हारी
बाँच न सके
आज बाँचा तो जाना
अनपढ़  थे हम ।
2
खुली किताब
झुकी तेरी पलकें
नैन कोर से
डब-डब करके
गर्म आँसू छलके ।
3
खुली किताब
ये बिखरी अलकें
आवारा घूमे
ज्यों दल बादल के
ज्यों खूशबू मलके ।
4
खुली किताब
तेरा चेहरा लगे
पन्ना-पन्ना मैं
जब पढ़ता जाऊँ
सिर्फ़ तुझको पाऊँ ।
5
खुली किताब
रहा दिल तुम्हारा
पढ़ न पाए
तो समझ न पाए
सदियों पछताए
6
खुली किताब
नज़र आया वही
लाल गुलाब
गले लग तुमने
दिया पहली बार ।
***********
सभी ये पढ़ रहें हो तो मेरा मन भी कुछ कहने को ललचाया । बन्द और खुली किताब मुझे कुछ यूँ बतियाती लगी ......
बन्द किताब ( हरदीप )
1 . 
बन्द किताब 
लगे जो बन्द पड़ी 
खोलता इसे 
बेचैन मन मेरा
रोज़ ख्यालों में पढ़ी 
2
बन्द किताब 
कोई राज़ छुपाए 
सारे जहाँ से 
राज़ में जो है छुपा
वह दिल में बसा 
3 .
बन्द किताब 
खोलने से डरता 
ये मन मेरा
अपने ही घर ने 
कैदी मुझे बनाया 
4 .
बन्द किताब 
बनी एक सवाल 
शिकायत भी 
कोई ढूँढ़ न पाया 
सही जवाब अभी 
5 .
बन्द किताब 
ज्यों ला -इलाज मर्ज़ 
जिन्दगी कर्ज़ 
यूँ ही बढ़ता गया 
ज्यों हमने की दवा !
खुली - किताब ( हरदीप )
1 .
खुली किताब 
शब्द बने आवाज़ 
इशारे कभी 
उस पल के जैसे 
जिन्दगी फूल बनी 
2 .
खुली किताब 
नए हैं अनुभव 
नए चेहरे 
बेख़ौफ़ है ज़िन्दगी 
जैसे बहे चिनाब 
3 .
खुली किताब 
समझ नहीं पाई 
क्यों ऐसे हुआ 
हँसता दिल मेरा 
आँखे भर क्यों रोया 
4.
खुली किताब 
तेरी यह जिन्दगी 
ढूँढ़ती रही 
सवालों के जवाब 
तूने किए ही नहीं 
5.
खुली किताब 
सुनहरी धूप- सी 
जिन्दगी मेरी
बिन दीवारों बना 
अपना आशियाना
--डॉ. हरदीप कौर सन्धु

रविवार, 29 जनवरी 2012

भिगो गए नयन


मुमताज-टीएच-खान
1
मीठी-सी वाणी
भावुक किया मन
सूखे थे पड़े
भिगो गए  नयन
फूटे झरना बन ।

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

नेह तेरा है


मुमताज़ टी. एच.खान
1
रिश्ते तो आज
बन गये हैं ख्वा
बन्द आँखों में
होते हैं वो अपने
खोलने पे सपने
चित्रांकन:अक्षय अमेरिया
2
छुआ था मन
किसी ने सपने में
खुली जो आँख
रह गयी वो छाप
नेह भरे स्पर्श की
3
नेह तेरा है-
नील गगन जैसा,
नहीं है छोर
न तोड़ सके कोई
बाँधी धरा से डोर
चित्रांकन:अक्षय अमेरिया
4
भावुक मन
रोके नहीं रुकता
तोड़ कर वो
बन्धनों को भी सारे
बहने ही लगता
5
मिला हमको
सा अपनापन
दुआ रब से-
रहे साथ हमारे
हर एक जनम
6
कड़ी धूप में
खड़े जब अकेले
शीतल छाया
पड़ी जो गगन से
देखा- थी माँ की छाया
चित्रांकन:अक्षय अमेरिया
7
नेह -पोटली
मिली जब भाग्य से
  खुलने पर
बिखरी जीवन में
समेटे न सिमटे
8
बन्धन खुला
रिश्तों का है जब से
टूटा है मन
बिखर गया अब
जैसे टूटा दर्पण
-0-