हिन्दी हाइकु से जुड़े सभी साथी अपने हैं, अपने परिवार के हैं।फिर भी कुछ साथी समय-समय पर कुछ ऐसा कर जाते हैं , जो दु:ख का कारण
बनता है। हमारे एक साथी ने अपने संग्रह की
भूमिका में बिना नामोल्लेख के अगस्त 2012 में प्रकाशित हमारे सेदोका -संग्रह’अलसाई चाँदनी’ से लगभग 13 पंक्तियाँ ज्यों
की त्यों उतार लीं ।यही नहीं ऊपर की पंक्तियाँ भी डॉ भगवत शरण अग्रवाल जी के ‘हाइकु -काव्य विश्वकोश’ से इसी तरह उतार कर एक
पृष्ठ पूरा कर लिया ।
यह अशोभनीय कार्य है । यहाँ उनके नाम का उल्लेख ज़रूरी नहीं।उन्हें हम
हिन्दी हाइकु और त्रिवेणी से हटा रहे हैं।
हमारे विरोध करने पर उन्होंने अपना माफ़ीनामा भेजा है। यदि किसी के कथन का कहीं
उल्लेख करते हैं, तो नाम देने में क्या लज्जा !