आस लगाए बैठे(ताँका)
प्रगीत कुँअर
1
बूँद बन के
अंखियों की झील से
आँसू छलके
बहा कर ले गये
ख़्वाब थे जो कल के
2
तेज रफ़्तार
ज़िंदगानी की रेल
बिना रुके ही
पटरियों पे दौड़े
मंजिल पीछे छोड़े
3
भरे थे रंग
ज़िंदगी के चित्र में
खुशी के संग
बही आँसू की धार
हुए सब बेरंग
4
शिकायत है
खुद से बस यही
जीवन भर
बात जो दिल बोला
बस वही क्यों सुनी ?
5
कहे बिना ही
हो जाती कुछ बातें
खुद ही बयाँ
चाहे हो कितने भी
फ़ासले दरमियां
6
देखे सपने
उड़ते परिंदों के
जागे जो हम
पाया फिर खुद को
रेंगते जमीन पे
7
मेहनत का
मिलना था जो फल
आज़ न मिला
आस लगाए बैठे
शायद मिले कल
8
हर तरफ़
फिरते हैं कितने
रुखे चेहरे
दिलो-दिमाग तक
देते जख़्म गहरे
9
अंदाज़ा न था
डूबने से पहले
गहराई का
तैर के ऊपर ही
चलता कैसे पता?
10
बेड़ियाँ डाले
रिश्तों की पैरों में
पड़े हैं छाले
प्यार का मरहम
करेगा दर्द कम
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