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बुधवार, 21 मार्च 2012

मुखर हुए शब्द



डॉ0मिथिलेशकुमारी मिश्र
1
मत तोड़िए
किसी का हौसला यों
भँवर से वो
हाथ-पाँव मार के
निकल ही जाएगा
2
जीवन भर
चलता नहीं कोई
किसी के साथ
भरोसा खुद पर
अकेला चल आगे
3
मेमने हैं तो
भेड़ियों से बचाना
मीठी बोली में
किसी भी हालत में
कभी फँस न जाना
4
राह में दीये
जलाते हुए चल
भूल जो गए
अपनी सही राह
रौशनी उन्हें दिखा
5
छली जा रहीं
हर मोड़ पे सीता
आ जाओ राम !
अब एक नहीं है
अनेक हैं रावण
6
अच्छी लगती
धूल पाँव में सदा
आँख में पड़ी
इसे सिर न चढ़ा
अंध-सा कर देगी
7
सुख या दुख
बाहर से न आते
मन की बातें
जैसे भी समझ लो
महसूस कर लो
8
इच्छा यही है
प्यार से शुरू होके
ज़िंदगी बीते
प्यार के पड़ावों का
अंत ही प्यार
9                                                                                                                                                                                                                                                                         
आँख-मिचौली
खेले, पूनो का चाँद
बादलों के संग
तारे ढूँढ़ा करें
उसको सारी रात
10
पढ़ लिया है
मैंने तेरी आँखों में
छिपा वो सच
कहा नहीं जो तूने
जुबाँ से आज तक
-0-
( शीघ्र प्रकाश्य तांका -संग्रह -‘मुखर हुए शब्द’ से )
प्रस्तुति- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु;

रविवार, 20 नवंबर 2011

स्वर्ग बने ये न्यारा


डॉ0 मिथिलेशकुमारी मिश्र
1
नारी नहीं है
कोई खेल खिलौना
वो प्रतिष्ठा है
घर-परिवार की
सकल समाज की
2
किसी को कोई
सुधारेगा क्या भला
खुद को गर
सुधारे हर कोई
स्वर्ग बने ये न्यारा
3
सुख या दु:ख
बाहर से न आते
मन की बातें
जैसे भी समझ लो
महसूस कर लो
4
खाली जो बैठें
प्राय: बुरा ही सोचें
व्यस्त जो रहे
उसे समय कहाँ
जो बैठ बुरा सोचे
5
माँ तो होती वो
विकल्प न जिसका,
समझें न जो
उसे जीते जी बच्चे
बाद में पछताते
-0-