भीकम सिंह
नदी - 13
कुछ पहाड़
बहुत-सी नदियाँ
वक्त के साथ
ठोकरें खाते रहे
गाँव- जवार
तमाशा बने रहे
शहर सभी
ऊँचे-ऊँचे उठके
हवा के साथ
बनाने लगे बात
घुमा-घुमाके हाथ ।
नदी - 14
आजकल में
गंगा पे होने लगी
बिना बात के
ये बात कैसी- कैसी
हस्तिनापुर,
करता खुलेआम
ऐसी की तैसी
नमामि गंगे से भी
सुधरे नहीं,
नालों की जात ऐसी
गंगा, वैसी की
वैसी ।
नदी - 15
बीहड़ नदी
पहाड़ से निकली
आवेग में ज्यों
पानी का वेग खोला
तटों के गिरे
सारे गठरी-झोला
पेड़ों ने कुछ
सँभाले फटे-टूटे
कुछ को रोका
लग्गी लगा-लगाके
खड़े मान बचाके ।
नदी- 16
नदी खुद को
आज और कल में
गँवाती रही
नालों के दिये जख़्म
छिपाती रही
बारिशों में नहाके
जीने के पल
सागर को मगर
दिखाती रही
वो सौन्दर्य अपना
झूठ बोले कितना ।
1-रश्मि विभा त्रिपाठी
1
मिला उन्हीं से
मधुमय संगीत
मौन की तोड़ी रीत
मेरी उनकी
जन्म- जन्म की प्रीत
मन को बाँचें मीत।
2
मीठी वाणी से
मेरा विषाद हरें
मोह का भाव भरें
वे मंत्रमुग्धा
जादू मन पे करें
बोलें तो फूल झरें।
3
नेह तुम्हारा
न्यारा इत्र लुटाए
जीवन महकाए
मन- मरु में
मधुमास ले आए
प्रिय! प्राण हर्षाए।
4
धन्य जो पाया
प्रिय का प्रोत्साहन
प्रेम- भाव पावन
दुर्भाग्य! देखूँ
द्वेष का ही हवन
धू- धू औरों का मन।
5
प्रिय तुमने
प्रार्थना गीत गाए
प्राण मेरे जिलाए
भावप्रवण
मन तुमको ध्याए
मोल चुका न पाए।
6
समृद्ध हुआ
मन का कोना रिक्त
मधु भाव, न तिक्त
मिला प्रिय का
आशीष नेहसिक्त
माँगूँ क्या अतिरिक्त।
7
मुझे देते हैं
नित नव आशाएँ
करके कामनाएँ
ये उपकार
प्राण कैसे चुकाएँ
प्रिय की लें बलाएँ।
8
रोक लेता है
पीड़ाओं का प्रहार
प्रिये तुम्हारा प्यार
धमनियों में
नित्यप्रति संचार
होता हर्ष अपार।
9
प्रिय तुम्हीं से
मेरा जीवन- सार
मिला मुझे आधार
भूलकरके
मैं सकल संसार
तुम्हीं में एकाकार।
10
दुख का रोग
जो हो असरदार
मेरा तीमारदार
पल में करे
पीड़ा का उपचार
प्रिये तुम्हारा प्यार।
11
सादा मन पे
चले रंग लगाने
हरगिज न माने
मैं सराबोर
आए प्रिय लुटाने
आनंद के खज़ाने।
-0-
2-कपिल कुमार
1
नापों अगर
लेके प्रेम-पैमाना
मिलेगा सदा
प्रेम से भरपूर
हृदय मेरा
इसके अतिरिक्त
तुम्हारे लिए
ईर्ष्या का क्षेत्रफल
शून्य से थोड़ा नीचे।
2
कर रहा हूँ
प्रेम-अनुप्रयोग
बना रहा हूँ
प्रेम त्रिज्याएँ
खींच
सुन्दर से दो
संकेंद्री-प्रेम-वृत्त
जिसके मध्य
परिधि-परिबद्ध
समस्त भाग
रखेगा सदा शून्य
ईर्ष्या का
क्षेत्रफल।
3
छोड़के गंगा
पंच प्रयाग, घूमें
देश-विदेश
हिमालय से लेके
बंगलादेश
पीछे छोड़के गई
तटों की पीड़ा
अकेली ही दौड़ती
ना कोई वीजा
होकरके उदास
गंगा के घाट
भगीरथ की देखें
आठों पहर बाट।
-0-
भीकम सिंह
नदी -8
फिर से मची
सिन्धु में खलबली
रुकी हुई-सी
एक नदी ज्यों चली
कुछेक लाश
लेकर अधजली
कोरोनाओं की
जब आँधी-सी चली
झूठ ने बोला
लेकर गंगा जल
नदी की कहाँ चली ।
नदी - 9
एक है व्यास
बेशुमार सपने
उसने देखे
बरफ़ की चादर
हटा-हटाके
धूप के पल सेंके
कुल्लू से मण्डी
ज्यों हवा बही ठंडी
झूमके दौड़ी
तट के पेड़ बड़े
तरसे खड़े-खड़े ।
नदी - 10
हुम्म-हुम्म-सा
बोलके कराहती
दम तोड़ती
तड़पती थी नदी
सिन्धु लपेटे
साँझ का झुरमुट
निहारता था
मिलने को आतुर
तट पर ही
हाथ-पाँव मारती
लहरें पुकारतीं ।
नदी - 11
नदी की पीड़ा
ज्यों घनीभूत हुई
हवा निश्चल
पेड़ों पे गुम हुई
छिटक गए
रास्ते के पाथर भी
डेल्टा पे लगे
सागर के पहरे
सहानुभूति
जताने को उमड़ी
तट पर लहरें ।
नदी- 12
रुग्ण हो गई
दो किनारों के बीच
सदी की नदी
बालू से पीठ लगा
फूँकती साँस
सुबह से उठती
दिशा-मैदान
कछारों में करती
पानी रखती
उगी दूब के पास
श्याम में जगी आस ।
भीकम सिंह
नदी - 6
बाढ़ ओढ़के
खींच लेती है नदी
तट की बाहें
गुजरे समय की,
याद करके
कुछ भूली - सी राहें
छोड़के आई
सावन में बहाके
तोड़ी गई वो
तमाम वर्जनाएँ
नदी को याद आएँ ।
नदी
-7
निजी
मानके
तटों
ने बीचों-बीच
बहती
नदी
गहरे
कोहरे में
कभी-कभी
यूँ
सोचकर
हैरान
बड़बड़ाती
शायद
हो हूबहू
पहले
जैसा
ऋषि
का कोई रास
पैदा
हो वेदव्यास ।
-0-
रश्मि
विभा त्रिपाठी
कोई अपना
भरोसे पर बना
छोड़के घर
नए सफर पर
निकलता है
करके रुख सख्त
विदा के वक्त
मन दरकता है
पाँव के तले
जब सरकता है
एक टुकड़ा
जमीन का,
था खड़ा
उठाए सर
उम्मीद का महल
वहाँ केवल
बचता खंडहर
स्वप्न बेघर
सर पे छत नहीं
नींव से बही
आँसू की नदी खारी
मन की आशा
भँवर बीच हारी
उठा तूफान
आफत में जी, जान
आई जो आज
सम्बन्धों की सुनामी
स्नेह में क्या थी खामी?
-0-