रचना श्रीवास्तव
तेरी कोख में
आने से पहले ही
सोचा ,क्या बनू ?
बेटी बन के चलूँ
साथ निभाऊँ
या रोड़े अटकाऊँ
बन के बेटा l
बनू तेरी ही जैसी
स्नेह की मूर्ति
लिया निर्णय मैने l
सुन के यह
जालिम है दुनिया
कहा सभी ने ,
नोच लेंगें ये तेरी
नन्ही सी सांसें
दम तोड़ेगी सभी
अभिलाषाएं
अपनों के ही हाथों
लुटेगी सदा ।
तुझ पे था यकीन
मुस्कुराई मै
बन बिटिया तेरी
कोख में आई
मेरे आने के चिह्न
दिखे तुझमें
ख़ुशी से नाची तुम
पिता भी खुश
जब डाक्टर बोला
है कन्या भ्रूण
चेहरे पे शाम थी
घर में दुःख
मै थी अभिशापित l
अन्दर आया
जहरीला -सा धुँआ
चुभने लगा
बहुत कष्ट हुआ
अम्मा मै रोई
तुझे पुकारा मैने
दुहाई भी दी
पर धुंआ न रुका
नन्हे से हाथ
अकड़ने लगे है
पकड़ ढीली
आवाज में शिकन
होने लगी है
क्या वो लोग सच्चे थे ?
मै थी गलत
क्या ये पाप था ,मेरा
लड़की होना ?
तू भी तो औरत है
फिर ऐसा क्यों ?
जिस लोक से आई
उसी को चली
अच्छा हुआ न जन्मी
इस भूमि पे
क्या पता बन कर,
औरत मै भी
हत्या बेटी की करती
ओ माँ शुक्रिया
तूने मुझे बचाया
इस महा पाप से
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