शुक्रवार, 29 जून 2012

संतान- सुख



ज्योतिर्मयी पन्त

वे झुके काँधे
हाथी घोड़े बने  जो  
अंगुली थामें
चलाया  खड़ा किया 
शब्द बोलना
भावी सुख हित वे
बोझ सर पे 
जिम्मेदारियाँ सदा
ख़ुशी से लिए
हँसी किलकारी पे 
करते रहे
निछावर दिन रैन
हुए निहाल
समय करवट
झुके वे काँधे
झुर्रियाँ भरे मुख
चलें न बोलें
व्यर्थ- सा हो जीवन
आस लगाए
खोजें अपनापन
बच्चे अपने
हँसे बोले उनसे
हाथ थाम लें
चमकती लौ जैसे
क्षीण दीये में
भरें उत्साह -ओज
 संजीवनी दें
पुनर्जीवन मिले
 संतान सुख मिले ।
-0-

गुरुवार, 28 जून 2012

तेरी कोख


रचना श्रीवास्तव

तेरी कोख में
आने से पहले ही
सोचा ,क्या बनू ?
बेटी बन के  चलूँ
साथ निभाऊँ
या रोड़े अटकाऊँ
बन के बेटा l
बनू तेरी ही जैसी
स्नेह की  मूर्ति
लिया निर्णय मैने l
सुन के यह
जालिम है दुनिया
कहा सभी ने ,
नोच लेंगें  ये तेरी
नन्ही सी सांसें
दम तोड़ेगी सभी
अभिलाषाएं
अपनों के ही हाथों
लुटेगी सदा
तुझ पे था  यकीन
मुस्कुराई मै
बन  बिटिया तेरी
कोख में आई 
मेरे आने के  चिह्न
दिखे तुझमें
ख़ुशी से नाची तुम 
पिता भी खुश
जब डाक्टर बोला
है कन्या भ्रूण
चेहरे पे  शाम थी
घर में दुःख
मै थी  अभिशापित l
अन्दर  आया
जहरीला -सा धुँआ
चुभने लगा
बहुत कष्ट हुआ
अम्मा  मै रोई
तुझे पुकारा मैने
दुहाई भी दी
पर धुंआ न रुका
नन्हे से हाथ
अकड़ने लगे है
पकड़ ढीली
आवाज में शिकन
होने लगी है
क्या वो लोग सच्चे  थे ?
मै  थी गलत
क्या ये   पाप था ,मेरा
लड़की होना ?
तू भी तो औरत है
फिर ऐसा क्यों ?
जिस लोक से आई
उसी को चली
अच्छा हुआ न जन्मी
इस भूमि पे
क्या पता बन कर,
औरत मै भी
हत्या बेटी की करती
ओ माँ शुक्रिया
तूने मुझे बचाया
इस महा  पाप से
 -0-

सावन- गीत !


डॉ सरस्वती माथुर
 पुष्प झड़ता
फिर से खिल जाता
शुष्क जंगल
हरा भरा हो जाता
कोयल कूक
सावन को बुलाती
वर्षा बूंदे भी
ताल बजा के गातीं
मन के भाव
अल्पनाएँ रचते
घर- आँगन
मोहक -से लगते
झूले बैठके
नवयौवना गाती
भेजी क्यों नहीं
प्रिय ने प्रेम पाती
ठंडी फुहारें
परदेस से लाती
सन्देश "पी" का
तब पाखी- सा मन
चहचहाता
सावन के रसीले
मधुर गीत गाता !
-0-

मंगलवार, 26 जून 2012

पितरौ वन्दे


डॉoज्योत्स्ना शर्मा

चंदा -सूरज
मुट्ठी में बाँध लिये
सागर सारे
पर्वत नाप लिये
अँधियारों पे
विजय पा गए  हो
उजालों में क्यूँ
यूँ भरमा रहे  हो ?
हवा धूप भी
दासियाँ हों तुम्हारी
ममता नहीं
स्वर्ण की आब प्यारी
ऊँचे भवन
सारा सुख खजाना
खुशियों भरे
प्रीत के गीत गाना
व्यर्थ ही तो हैं
दे ही ना पाये जब
माता पिता को
तुम दो वक्त खाना
भूले गले लगाना ।
           -0-

मन भीगता रहा



रेनु चन्द्रा
     1                   
सावन आया
इन्द्रधनुष छाया
सात रंगों से
रंगीन हुआ नभ
देख हर्षाया मन।
2
मन में छाई
घटा घनघोर- सी
जब बरसी
दु:ख की धरती- सा
मन भीगता रहा ।
-0-

शनिवार, 23 जून 2012

कठपुतली


डॉ सुधा गुप्ता
कठपुतली
बाज़ार में सजी थी
ख़ुश, प्रस्तुत
कि कोई ख़रीदार
आए, ले जाए
उसके तनबँधे
डोरे झटके
हँसा, रुला उसको
रिझा, नचाए
मन मर्ज़ी चलाए
ले गया कोई
गुलाबी साफ़ा उसे
कठपुतली
खुशखुश नाचती
ख़रीदार की
भ्रूभंगिमा देख के
अपना तन
तोड़तीमरोड़ती
थिरकती थी
बल खाखा जाती थी
ऐसा करते
बहुत दिन बीते
जोड़ चटखे़
नसें भी टूट गई
बिखर गई  
वो चीथड़ाहो गई
वक्त़ की मार :
टूटीफूटी चीज़ों का
भला क्या काम ?
सो घूरेफेंकी गई
अब विश्राम में है।
 -0- 
( सभी चित्र गूगल से साभार)

गुरुवार, 21 जून 2012

दिल का द्वार


डॉ हरदीप कौर सन्धु

दूर बैठे ही 
देखा  मन आँगन 
ज्यों दी आवाज़ 
तुम बैठे थे पास 
बहते आँसू 
बुझाने लगे प्यास

सहेज रखे 
मिले जो पल -पल 
फूल हों जैसे 
फुलकारी बिखरे 
मीठी खुशबू 
दिल -आँगन भरे  

दिल का द्वार 
कभी बन्द न होगा  
दस्तक -चुप्पी 
झट से तोड़ देगी 
तेरी खुशबू 
हवा में ढूँढ़ लेगी
अमर ज्योति !
रौशनी चली आए 
 आँधी-तूफ़ान 
टकरा, लौट जाए 
दूरियाँ नहीं ,
ये ज़मीनी फासले 
रूह, मन से मिले
-0-

रविवार, 17 जून 2012

बसी सीख मन में


पिता को समर्पित पाँच ताँका  ( पितृ-दिवस के अवसर पर)
सुशीला शिवराण
1
तेरा अँगना
मेरी नन्हीं दुनिया
बसी मुझमें
खोल ह्रदय-पट
लेती झाँक जिसमें ।
2
बाबुल मेरे
तेरा लाड़-दुलार
अनुशासन
जब भी बिखरती
लेता मुझे सँभार ।
3
भोर की जाग
श्रम,श्रद्धा, सम्मान
स्वदेश
-प्रेम
ऐसे दिए संस्कार
सफलता के द्वार ।
4
निर्भय बनो
चलो आदर्शों पर
रुणा मन में
सिखाते यही पिता
बसी सीख मन में

5
फ़ौज़ की बातें
कुर्बानी की गाथाएँ
वो काली रातें
उजली ममता से
पिता देव-तुल्य
- से
-0-

शनिवार, 16 जून 2012

भोर सुवासित



-सुशीला शिवराण
1
भोर सुवासित आए
कूकी कोयलिया
मन में मोद समाए !

2
उसने  प्रेम कहा है
मन वासंती में
झर-झर मेह  बहा है ।
3
जब खिलता है उपवन
मीत बता मेरे
बहका -सा क्यों है मन !
4
उन्माद भरी लहरें
देतीं नाम मिटा
 सुधियाँ  तेरी ठहरे !
5
 इन रेत - घरौंदों में
दो पल का जीवन
जी लेते यादों में !
-0-


गुरुवार, 14 जून 2012

मन अम्बर


ॠता शेखर ‘मधु
1
आखर-मोती बिखरें
मधुरिम  भाव सजे
मन अम्बर -सा निखरे ।
 2
है जग की रीत यही ।
मीठी वाणी से
दिल में  है प्रीत बही  ।
3
कुछ खर्च नहीं होता
मीठा बोल  सदा
स्नेहिल रिश्ते बोता
 4
ओ बादल मतवाले
प्यासी है धरती
, उसको अपना ले  ।
5
किरणें रवि की आईं
खिलखिल करता दिन
कलियाँ भी मुसकाईं ।
 6
दो हाथ जुड़े रहते
बल और विनय का
हैं भाव सदा कहते  ।
7
अंक बराबर पाते
कर्म-बही में तो
ना होते हैं नाते 
 8
तितली उड़ती जाती
फूल भरी चूनर
धरती की लहराती ।
 9
चाह रखो चलने की
हारेगी बाधा
राह मिले खिलने की ।
-0-

बिखरें रंग


डॉ अनीता कपूर
1
बिखरें रंग
फूलों से झरे हुए
धूप फागुनी
सजा जमीं आकाश
जग मनभावन ।
2
रेशमी धूप
सपनो के आँगन
हुआ उजाला
साँसों की सरगम
छेड़े सुर सितार ।
3
बसंती रुत
है प्यार बेशुमार
प्रेम चाशनी
छिड़को जीवन की
सूखी वाटिका पर ।

-0-

सोमवार, 11 जून 2012

मोहक सागर


तुहिना रंजन
1
विधु-सी बाला सुन्दर ।
नैन उठाये जो 
उमड़े मोहक सागर ।
2
नाच हिया उठता तब ।
रूठे  मुखड़े   पर 
मुस्कानें  खिलती  जब ।
3
जीवन- मधुरिम सपने ।
जी लूँ जब तक ये 
प्राण न निकलें अपने ।
4
बाबुल कह दे अब तो-
‘धन  न  पराया थी 
दिल का टुकड़ा  थी वो ।’
5
जो हर पल हैं बहते-
झरने औ'   नदियाँ,
‘रुकना न कभी’ -कहते
-0-

प्रेम-परागा मन


स्वाति वल्लभा राज
1
मुरली वाले
गिरधर नागर 
दर्शन ईहा 
लालायित नयन 
प्रेम-परागा मन
2
पंथ निहारूँ
खुद को समझाऊँ
बंशी बजैया 
श्याम सलोना मुख 
दर्शन में ही सुख ।
-0-

बुधवार, 6 जून 2012

सोचे चिड़िया



डॉoभावना कुँअर
1
नोंचे किसने
पेड़ों से ये गहने,
कैसे आएगी
वो मधुर कोकिला
सुख-दुख कहने
2
आसमान से
टूट पड़ा झरना
नहाने लगे
बाग और बगीचे
जंगल में हिरना
3
दुष्ट हवा ने
उजाड़ डाले फिर
बसे घरौंदे
बिना खता के पंछी
क्यूँ हैं इसने रौंदे ?
4
नीम का पेड़
बहुत शरमाए
नटखट -सी
निबौंलियाँ,जी भर
उसे, गुदगुदाएँ
5
गुमसुम है
गा न पाए कोयल
मीठी -सी तान
सदमें में शायद
है भूली पहचान
6
दो कबूतर
आकर बैठ जाते
रोज सवेरे
बीती रात की फिर
हैं कहानी सुनाते
7
चारों तरफ
फैला बाढ़ का पानी
सोचे चिड़िया
जुटाऊँ कैसे अब
मैं दाना और पानी
-0-

दो घूँट पानी


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
चिड़िया पूछे-
कहाँ है दाना -पानी
बड़ी हैरानी
फिर मैं कैसे गाऊँ ?
आकर तुम्हें जगाऊँ ।
2
दो घूँट पानी
चुटकी भर दाने
दे दो मुझको
आ जाऊँगी मैं नित
हर भोर में गाने ।
3
जगे गगन
खिलता है आँगन
ज्यों उपवन
पंछी गीत सुनाएँ
आरती बन जाए  ।
4
चिड़िया पूछे-
बता पेड़ क्यों काटे ?
घर था मेरा
अधिकार क्या तेरा
मर्यादा सब खोई ।
5
काटे हैं वन
धरती का जीवन
सिमट गया
नदिया भूखी-रूखी
लगती विकराल ।
6
नीड़ है खाली
झुलसे तरुवर
बरसी आग
पसरा है सन्नाटा
विषधर ने काटा ।
7
बिखरी रेत
चिड़िया है नहाए
मेघ भी देखे
चिड़िया यूँ माँगे है
सबके लिए पानी ।
-0-